क्या बंद हो जाएगा दुनिया का इकलौता ‘संस्कृत अखबार’

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भारत में अग्रेजी का प्रभाव इस कदर बढ़ रहा है कि आज हिंदी जहां अपनी शुद्धता के लिए संघर्ष कर रही है, वहीं संस्कृत अपने अस्तिव की लड़ाई लड़ रही है। देश की सवा अरब की आबादी में शायद ही गिने-चुने लोग होंगे जो संस्कृत की जानकारी रखते हैं। कुछ अपवादों को छोड़ दे तो कई स्कूलों में छात्रों को संस्कृत तो पढ़ाई जाती है, लेकिन इसमें भविष्य न दिखता देख बच्चे खुद ही इससे दूरियां बना रहे हैं।

आर्थिक तंगी से जूझ रहा सुधर्मा 

भारतीय भाषा हो या बोली, सभी का अस्तित्व हमारे समाज के लिए बेहद जरूरी है। अगर ये खत्म हो गईं, तो भाषाओं में फैली विविधता भी समाप्त हो जाएगी। कुछ लोग हैं जो इन भाषाओ को जिंदा रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अब वो खुद मुसीबत में हैं। दुनिया की प्राचीनतम भाषा संस्कृत आज भारत में ही अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है। 47 साल से संस्कृत भाषा में प्रकाशित होने वाला ‘सुधर्मा’ समाचार पत्र खराब आर्थिक हालातों के चलते बंद होने की कगार पर आ गया है। शायद आपकी मदद से ये समाचार पत्र 14 जुलाई को अपनी 47वीं वर्षगांठ मना पाए।

मोदी सरकार से भी नहीं मिल रही मदद

संपादक के मुताबिक संस्कृत के प्रचार-प्रसार का काम करने वाली मोदी सरकार भी यूपीए की राह पर चलती दिख रही है। अखबार के मालिक ने कहा कि लगभग एक वर्ष पहले हमने मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी और पीएम मोदी को इस संकट से उबारने के लिए पत्र लिखा था। लेकिन आज तक उन्हें पत्र का जवाब नहीं मिला। कोई रास्ता न मिलता देख उन्होंने ‘सुधर्मा’ में ही एक अपील प्रकाशित कर लोगों से समाचार पत्र को जिंदा रखने के लिए अनुदान देने की प्रार्थना की है।

पाठकों के सपोर्ट की दरकार

कर्नाटक के मैसूर से प्रकाशित होने वाला समाचार पत्र ‘सुधर्मा’ के संपादक ने कहा कि ‘सुधर्मा’ चलाने के लिए हमें लोगों के सपोर्ट की जरूरत है, जो संस्कृत भाषा को प्यार करते हैं। उन्होंने कहा कि यह अखबार हमारे लिए पैसा कमाने का जरिया नहीं है, बल्कि वो संस्कृत और पत्रकारिता के प्रति हमारा जुनून है। पर हमारा जुनून संकट के दौर से गुजर रहा है, जिसे बचाने के लिए पाठकों के सहायता की जरूरत है।

एक हजार कम हो गया सर्कुलेशन

मात्र एक पेज का यह दैनिक अखबार राजनीति और खेल सहित योग, वेद और संस्कृति से जुड़ी खबरों को प्रकाशित करता है। बीते एक साल में इसका सर्कुलेशन 4,000 से गिरकर 3,000 हो गया है। इस अखबार का वार्षिक सदस्यता शुल्क महज 400 रुपए है। ये समाचार आप ऑनलाइन भी पढ़ सकते हैं। आपको बता दें कि इस अखबार को लगभग एक लाख लोग इंटरनेट पर पढ़ते हैं, जो कि नि:शुल्क उपलब्ध है। इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से समाचार पत्र को कोई आय नहीं होती।

अंग्रेजी का बोलबाला

वर्तमान परिस्थिति को देखें तो आज हर जगह अंग्रेजी का बोलबाला है। अगर आपको अंग्रेजी भाषा में अच्छी पकड़ है तो आपको नौकरी मिल जाएगी। यही वजह है कि स्कूलों में भी इसी भाषा पर जोर दिया जा रहा है। बदलते समाज को देखते हुए परिवार वाले भी अपने बच्चों से एक, दो, तीन नहीं, बल्कि वन, टू, थ्री सुनना ज्यादा पसंद करते है। उन्हें गर्व होता है, जब उनका बच्चा चार लोगों के बीच में अंग्रेजी में कविता सुना देता है।

संस्कृत से हो रहा मोहभंग

आज छात्रों का संस्कृत से मोहभंग हो रहा है। विश्वविद्यालयों में संस्कृत की शिक्षा पर बात करें, तो आपको ऐसे बेहद कम छात्र मिलेंगे जो खुद ही संस्कृत को विषय के रूप में चुनना चाहते हैं। आज हालात ये हैं कि 50 और 40 प्रतिशत अंक पाने वाले विद्यार्थियों को किसी और विषय में सीट मिले या न मिले, पर हिंदी और संस्कृत भाषा में जरूर मिल जाती है। जाहिर सी बात है कि इनकी सीट खाली रहती है, क्योंकि आधुनिकता के दौड़ में छात्र अग्रेजी की तरफ तेजी भाग रहे हैं।

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