यह है जादुई कुआं, परछाई न दिखे तो समझ लीजिये संकट आने वाला है!

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वाराणसी यानि शिव की नगरी में एक जादुई कुआं है। कुएं की खासियत यह है कि अगर आपकी परछाई दिख गई तो ठीक और अगर नहीं दिखी तो दुनिया में आप बहुत कम दिन के मेहमान हैं। वाराणसी भगवान शिव की नगरी है। काशी के कण कण में शिव है। इस कुएं को शिव के ही एक चमत्कार के रुप में भी लोग मानते हैं। इस कुएं को धर्मकूप  को नाम से जाना जाता है।
युधिष्ठर ने इस कुएं को स्थापित किया था
इतना ही नहीं स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस कुएं में देखने से लोगों के पाप और कष्टों को भगवान शिव हर लेते हैं। स्‍थानीय वरिष्‍ठ पत्रकार संदीप त्रिपाठी बताते हैं कि जो भक्ति और धर्म भाव से इस कुएं में देखता है उसके पापों और बुरे कर्मों का नाश हो जाता है। उनका कहना है कि पौराणिक मान्यता है कि इस कुएं में लोग परछाई देखते हैं, जिस किसी की परछाई नहीं दिखाई देती, उसकी मौत जल्द होने वाली होती है। कहा जाता है कि महाभारत काल में युधिष्ठर ने इस कुएं को स्थापित किया था। इतना ही नहीं इस कुएं के आस पास कई शिवलिंग भी हैं। स्थानीय लोग धर्मकूप  को भगवान शिव से जोड़कर मानते हैं।

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शास्त्रों में साफ तौर पर अंकित है कि काशी में सभी देवी देवता, यम यामिनियां, यक्ष और यक्षिणियों ने भगवान शिव की पूजा की और अपना नाम प्रदान करने का शिव से निवेदन भी किया। इसी काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर के दक्षिणी भाग में स्थित धर्मेश्वर महादेव का मंदिर व यहां स्थापित धर्मकूप से एक अनूठी किंवदंती जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि इस कुएं में लोगों की परछाई कैद होती है और छः महीनों तक दिखाई देती है। जिसकी परछाई दिखाई नहीं देती उसकी मृत्यु निश्चित होती है। इस कुएं की स्थापना स्वयं मृत्यु के स्वामी यमराज ने की थी। शिव की नगरी काशी में अति प्राचीन धर्मेश्‍वर महादेव का मंदिर मीरघाट की तंग गलियों में स्थित है। गली में विशालाक्षी माता के मंदिर से करीब पांच कदम आगे बढ़ते ही बांये हाथ धर्मेश्वर महादेव का मंदिर है।
इस धर्मकूप का निर्माण यमराज ने कराया था
इस मंदिर प्रांगण में धर्मेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग स्थापित है, जबकि मंदिर के पार्श्‍व भाग में धर्मकूप विद्यमान है। यह कूप आने वाली विपत्तियों की ओर भी इंगित करता है।
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अगर इसमें परछाई नहीं दिखी तो छह माह के भीतर जीवन पर संकट आने का सूचक माना जाता है। यह संकट मृत्यु रूपी भी हो सकता है। कहते हैं पांडव, युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की कृपा से यहां आये और अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति और जीत के प्रति आश्वस्त हुए, साथ ही द्रौपदी को अक्षय सुहाग का वरदान भी यहीं से प्राप्त हुआ। धर्मेश्वर महादेव मंदिर और कुएं के बारे में काशी खण्ड और स्कंद पुराण में भी वर्णित है। मंदिर के पुजारी पं. मनोज उपाध्याय ने बताया कि शास्त्रों में यमराज को सूर्यपुत्र माना जाता है। सूर्यपुत्र यम से यमराज बने और काशी आने के बाद धर्मराज माने गये।
आराध्य के दिव्य स्वरूप का दर्शन होता है
धर्मेश्वर महादेव के रूप में यमराज विराजमान हैं। मंदिर में ज्योतिर्लिंग स्वयंभू हैं और इनकी उत्पत्ति गोपाष्टमी को मानी जाती है।अतिप्राचीन इस मंदिर में धर्मेश्वर महादेव के दर्शन का मुख्य समय ब्रह्ममुहुर्त है। इस समयावधि में आराध्य के दिव्य स्वरूप का दर्शन होता है। इनके दर्शन मात्र से 10 हजार गायत्री जप या सहस्रजप का फल मिलता है। मान्यता यह भी है कि धर्मेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से व्यक्ति को अकाल मृत्यु से मुक्ति मिल जाती है।इसके साथ ही इस कुएं में किए गये तर्पण व कर्मकाण्ड का फल गया की फाल्गुनी नदी में किये गये पूजा-पाठ के समान मिलता है। धर्मकूप के पास गणोश-लक्ष्मी का विग्रह स्थापित है। इसके पश्चिम दिशा की ओर विश्वभुजा माता मंदिर है। कुएं के दांयी ओर वट सावित्री हैं। सभी विग्रहों के गोल घेरे में धर्मकूप है।

संदीप त्रिपाठी  जो पेशे से एक वरिष्ठ पत्रकार, इन्होंने  इस विषय की जानकारी दी है।
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