भारत ने बनाया ‘ग्लाइड बम, ओडिशा में हुआ परीक्षण

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देश को एक अनूठी उपलब्धि प्राप्त हुई है। देश के रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) ने अपना ‘ग्लाइड बम’ बनाने में सफलता हासिल की है। शुक्रवार को उसका ओडिशा के चांदीपुर में परीक्षण किया गया। वह 70 किलोमीटर दूर निशाने पर जाकर सटीक लगा। यह ‘स्मार्ट एंटी एयरफील्ड वेपन’ (सॉ) कहलाता है।
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रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने वायु सेना व डीआरडीओ के अधिकारियों को बधाई दी है। सरकार का कहना है कि इसे सशस्त्र सेनाओं के सिपुर्द कर दिया जाएगा। इससे सेनाओं की मारक क्षमता में व्यापक बढ़ोतरी हो जाएगी। मामले से जु़ड़े लोगों का कहना है कि दूर के निशाने को भेदने में सॉ का कोई जोड़ नहीं है। अभी इसका परीक्षण किया गया है।
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वायु सेना ने भी अहम योगदान दिया है
इसमें कुछ और सुधार करने के बाद ही सेना के सिपुर्द किया जाएगा। परीक्षण के दौरान सबसे अहम बात यह रही कि बम के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किया गया था वह पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। इसे बनाने में वायु सेना ने भी अहम योगदान दिया है।
सुखोई-30एमकेआइ लड़ाकू विमानों से दागा जा सकता है
रिसर्च व डेवलपमेंट महकमे के सचिव एस क्रिस्टोफर व डीआरडीओ के मिसाइल व रणनीतिक सिस्टम के महानिदेशक जी। सतीश रेड्डी का कहना है कि इसे लेकर कुल तीन परीक्षण किए गए, जो सफल रहे। उनका कहना है कि बम काफी हल्का है, जिससे इसे लाने और ले जाने में परेशानी नहीं होगी।’सरकार ने कहा, जल्द सेना के सिपुर्द किया जाएगा सॉ को राफेल लड़ाकू विमान से दागने के लिए शोध हो रहा है। अभी इसे जगुआर और सुखोई-30एमकेआइ लड़ाकू विमानों से दागा जा सकता है।
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जगुआर में तो ऐसे छह बम लेकर उड़ने की क्षमता विकसित कर ली गई है। पहला परीक्षण 23 मई, 2016 को बेंगलुरु में जगुआर लड़ाकू विमान से किया गया। दूसरा परीक्षण 24 दिसंबर, 2016 को ओडिशा में सुखोई-30एमकेआइ विमान से किया गया।
50 सुदर्शन लेजर गाइडेड बम मांग भी लिए
भारत के पास अभी सुदर्शन नामक लेजर गाइडेड बम किट है। इसे डीआरडीओ की एरोनॉटिकल डेवलपमेंट इस्टैब्लिश्मेंट लैब (एडीई) ने बनाया है। इसका वजन 450 किग्रा और फायरिंग रेंज नौ हजार मीटर है। 2006 से इसका निर्माण शुरू हुआ और जनवरी व जून 2010 में इसके परीक्षण किए गए। जनवरी 2013 में वायुसेना ने एडीई से 50 सुदर्शन लेजर गाइडेड बम मांग भी लिए।
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