गया पिंडदान से पुरखो को प्रेतआत्मा योनि से मिलती है मुक्ति

0

ऐसे तो आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष ‘पितृपक्ष’ के प्रारंभ होने के बाद अपने पुरखों की आत्मा की शांति और उनके उधार (मोक्ष) के लिए लाखों लोग मोक्षस्थली गया में पिंडदान के लिए आते हैं। परंतु पिंडदान के लिए विश्व में सर्वश्रेष्ठ इस गया में वे प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान करना नहीं भूलते। मान्यता है कि प्रेतशिला में पिंडदान के बाद ही पितरों को प्रेतात्मा योनि से मुक्ति मिलती है।

read more : पुनर्जन्म : जब भाई ने बहन से राखी बंधवाने से किया ‘इनकार’…

45 वेदियों में से एक वेदी प्रेतशिला वेदी है

आत्मा और प्रेतात्मा में विश्वास रखने वाले लोग आष्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पूरे पितृपक्ष की समाप्ति तक गया में आकर पिंडदान करते हैं। गया में पुराने समय में 365 वेदियां थी जहां लोग पिंडदान किया करते थे, परंतु वर्तमान समय में 45 वेदियां हैं जहां लोग पिंडदान कर तथा नौ स्थानों पर तर्पण कर अपने पुरखों का श्राद्ध करते हैं। इन्हीं 45 वेदियों में से एक वेदी प्रेतशिला वेदी है।

कष्टदायी योनियों से मुक्ति मिल जाती है

गया शहर से करीब आठ किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम में अवस्थित प्रेतशिला पर्वत एक पिंड वेदी है। हिंदू संस्कारों में पंचतीर्थ वेदी में प्रेतशिला की गणना की जाती है।गयावाल तीर्थव्रती सुधारिनी सभा के अध्यक्ष गजाधर लाल जी ने बताया, “प्रेतिशिला वेदी पर अकाल मृत्यु को प्राप्त जातक का श्राद्ध और पिंडदान का विशेष महत्व है।

ऐसी मान्यता है कि इस पर्वत पर पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों तक पिंड सीधे पहुंच जाते है, जिनसे उन्हें कष्टदायी योनियों से मुक्ति मिल जाती है।

876 फीट ऊंचा पुराने परतदार पर्वत पर निर्मित है

इस पर्वत को प्रेतशिला के अलावा प्रेत पर्वत, प्रेतकला एवं प्रेतगिरि भी कहा जाता है पंचतीर्थ वेदी गया तीर्थ के उत्तर एवं दक्षिण में भी है। उत्तर के पंचतीर्थ में प्रेतशिला, ब्रह्मकुंड, रामशिला, रामकुंड और कागबलि की गणना की जाती है। प्रेतशिला 876 फीट ऊंचा पुराने परतदार पर्वत पर निर्मित है।

किवंदतियों के मुताबिक, इस पर्वत पर श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीता भी पहुंचकर अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था। कहा जाता है कि पर्वत पर ब्रह्मा के अंगूठे से खींची गई दो रेखाएं आज भी देखी जाती हैं।

गया शहर प्रेतशिला जाने के लिए 873 उंचे पहाणी पर जाना पड़ता है 

गया शहर से लगभग चार किलोमीटर दूर प्रेतशिला तक पहुंचने के लिए 873 फीट उंचे प्रेतशिला पहाड़ी के शिखर तक जाना पड़ता है। ऐसे तो सभी श्रद्धालु पिंडदान करने वाले यहां पहुंचते हैं, परंतु शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को इतनी ऊंचाई पर वेदी के होने के कारण वहां तक पहुंचना मुश्किल होता है। उस वेदी तक पहुंचने के लिए यहां पालकी की व्यवस्था भी है, जिस पर सवार होकर शारीरिक रूप से कमजोर लोग यहां तक पहुंचते हैं।

पंडा मनीलाल बारीक आईएएनएस से कहते हैं, “प्रेतशिला वेदी के पास विष्णु भगवान के चरण के निशान हैं तथा इस वेदी के पास पत्थरों में दरार है। मान्यता है कि यहां पिंड दान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों या परिवार का कोई सदस्य तक पिंड सीधे उन्हीं तक जाता है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।”

पूर्वज जो मृत्यु के बाद प्रेतयोनि में प्रवेश कर जाते हैं

उन्होंने बताया कि सभी वेदियों पर तिल, गुड़, जौ आदि से पिंड दिया जाता है, परंतु इस पिंड के पास तिल मिश्रित सत्तु छिंटा (उड़ाया) जाता है। उन्होंने बताया कि पूर्वज जो मृत्यु के बाद प्रेतयोनि में प्रवेश कर जाते हैं तथा अपने ही घर में लोगों को तंग करने लगते हैं, उनका यहां पिंडदान हो जाने से उन्हें शांति मिल जाती है और वे मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं।

भगवान राम के यहा आने के बाद यह स्थान प्रेतशिला हुआ

उन्होंने बताया कि पहले प्रेतशिला का नाम प्रेतपर्वत हुआ करता था, परंतु भगवान राम के यहां आकर पिंडदान करने के बाद इस स्थान का नाम प्रेतशिला हुआ। प्रेतशिला में पिंडदान के पूर्व ब्रह्म कुंड में स्नान-तर्पण करना होता है। ब्रह्म कुंड के बारे में कहा जाता है कि इसका प्रथम संस्कार भगवान ब्रह्मा जी द्वारा किया गया था।

नेपाल के महेश लेपचा कहते हैं…

गया में पिंडदान करने आए नेपाल के महेश लेपचा कहते हैं कि मरने के बाद कौन कहां जाता है यह गूढ़ रहस्य है, परंतु सनातन परंपरा के मुताबिक पिंडदान आवश्यक है, जिसका पालन कर रहा हूं। उनका मानना है कि पिंडदान से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More