अदम गोंडवी की पुण्यतिथि आज, जानें उनकी मशहूर सदाबहार रचनाएं…
Adam Gondvi: मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको’… भारत के सामाजिक, राजनीतिक आलोचक के प्रखर कवि शायर अदम गोंडवी की आज पुण्यतिथि है. गोंडवी हमेशा विद्रोही तेवरों के लिए जाने जाते हैं.उनकी रचनाओं और राजनीति और व्यवस्था के लिए किए गए कटाक्ष काफी तीखे हैं. इतना ही नहीं उनकी शायरी में जनता की गुर्राहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य नजर आता है.
अदम गोंडवी का परिचय…
बता दें कि अदम गोंडवी का नाम रामनाथ सिंह था. उनका जन्म 22 अक्टूबर 1947 को उत्तर प्रदेश के गोंडा में हुआ था. साल 1998 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उन्हें दुष्यंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इतना ही नहीं उनकी कई रचनाएं काफी लोकप्रिय हुई. उनकी कृतियों में धरती की सतह पर, समय से मुठभेड़ आदि कविता संग्रह भी शामिल है.
नवंबर 2011 को हुए अलविदा…
बता दें कि साल 2011 में गंभीर बीमारी से ग्रसित होने के बाद अदम गोंडवी को अस्पताल में भर्ती किया गया था. उसी बीच उन्हें लखनऊ के संजय गांधी अस्पताल में भर्ती किया गया जहां काफी समय के उपचार के बाद ताउम्र होने के चलते 18 दिसंबर 2011 को वे जिंदगी की जंग हार गए.
अदम गोंडवी की पांच टाप शायरी…
गौरतलब है कि आज के समय में भी अदम गोंडवी की शायरी प्रचलन में है जो सदाबहार बनी हुई है. तो आइए जानते हैं गोंडवी साहब की 5 रचनाएं जो लोग आज भी गुनगुनाते हैं.
1. मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको
आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको
जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बेचारी कुएं में डूब कर
है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी ….
2. काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में,
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें ….
3. तुम्हाोरी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
उधर जमहूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है
लगी है होड़-सी देखो अमीरी और गरीबी में
ये गांधीवाद के ढांचे की बुनियादी खराबी है ….
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4.हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुरसी के लिए जज्बामत को मत छेड़िए
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
फन है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए
ग़लतियां बाबर की थी, जुम्म न का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए ….
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5.घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है
बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है
भटकती है हमारे गांव में गूंगी भिखारन-सी
सुबह से फरवरी बीमार पत्नी से भी पीली है
बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल की सूखी दरिया में
मैं जब भी देखता हूं आंख बच्चों की पनीली है ….