‘पिता ने जाकिर के कान में फूंकी थी तबले की धुन”, पढें उनकी जिंदगी का यह दिलचस्प किस्सा…

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इस बात से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है कि, उस्ताद जाकिर हुसैन को तबला वादन का हुनर विरासत में मिला था. इसकी तालिम उनके पिता अल्ला रक्खा से मिली थी. लेकिन इस तालिम के सफर की शुरूआत उनके जन्म से ही कर दी गयी थी, जिस समय उनकी मुठ्ठी भी न खुली थी उस समय उनके पिता ने उनके कानों में तबले की थाप फूंक दी थी. इस किस्से का जिक्र जाकिर हुसैन ने आज से करीब आठ साल पहले एक इंटरव्यू के दौरान किया था. आइए जानते है जाकिर और तबले के अटूट संबंध का क्या है दिलचस्प किस्सा…

प्रार्थना की जगह पिता ने फूंकी थी तबले की थाप

आज से करीब आठ साल पहले जाकिर हुसैन ने अपने और तबले की तालिम के संबंध में एक दिलचस्प किस्सा साझा किया था, जिसमें उन्होने बताया था कि, उनके परिवार में जन्म के बाद जब बच्चे को पिता को सौंपा जाता है तो, इस समय पर एक विशेष परंपरा हुआ करती थी. जिसमें पहली बार जब पिता बच्चे को गोद लेता था तो, उसके कान में प्रार्थना पढ़ता था. इस दौरान बच्चे के कान में प्रार्थना के अलावा कोई भी अच्छा शब्द, ईश्वर का नाम लिया जाता था. लेकिन जब जाकिर हुसैन का जन्म हुआ और उनके पिता को जब उन्हें सौंपा गया तो, उनके पिता ने उनके कानों में तबले की लय सुनाई थी. हालांकि, पिता की इस हरकत पर उनकी मां ने काफी गुस्सा करते हुए कहा था कि, यह क्या कर रहे हो ?

मां के इस सवाल पर उनके पिता जी ने कहा था कि, संगीत ही मेरी साधना है और यही सुर और ताल मेरे बेटे के लिए मेरी दुआ है मैं देवी सरस्वती और भगवान गणेश का उपासक हूं. जाकिर हुसैन ने कहा था कि, जो ज्ञान पिता को अपने शिक्षकों से मिला है और वह इसे अपने बेटे को देना चाहते थे.

11 साल की उम्र में किया था पहला कॉन्सर्ट

इसके आगे जाकिर हुसैन बताते है कि, जब वे महज 11 साल के थे, तब उन्होने अपने पिता के साथ पहला कॉन्सर्ट किया था. जिसमें पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज जैसे दिग्गज संगीतकारों ने हिस्सा लिया था और इसमें उन्होने अपने पिता के साथ तबला वादन किया था. जिसके लिए हुए पांच हजार रूपए दिए गए थे. इस पहली कमाई को लेकर जाकिर हुसैन कहते है कि, ‘मैंने अपने जीवन में बहुत पैसा कमाया है, लेकिन वे पांच रुपये सबसे मूल्यवान थे.’

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आरक्षित बोगी में यात्रा का सपना था अधूरा

उस्ताद जाकिर हुसैन ने 11-12 साल की उम्र में तबला वादन की यात्रा शुरू की थी और देशभर में अपने कॉन्सर्ट के लिए यात्रा करते थे. एक बार उन्होंने बताया था कि, उस समय उनके पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वह आरक्षित बोगी में यात्रा कर सकें, इसलिए उन्हें ट्रेन के सामान्य डिब्बों में सफर करना पड़ता था. सीट न मिलने पर वह अखबार बिछाकर नीचे बैठ जाते थे और तबले को अपनी गोद में रखते थे ताकि किसी का पैर या जूता उस पर न पड़े. वह इसे एक बच्चे की तरह गोद में उठाए रखते थे, जब तक सफर खत्म नहीं हो जाता था.

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