वाराणसी में बुनकरों ने निभाई सैकड़ों वर्ष पुरानी रवायत, जानें इतिहास ?

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करीब 450 साल पुरानी रवायत आज बुनकरों ने निभाई. उन्होंने पुरानापुल पुलकोहना ईदगाह में अगहन महीने के जुमे की नमाज अदा कर समृद्धि की कामना की. बनारसी बुनकर बिरादराना की ओर से मुल्क की खुशहाली और अमन-चैन दुआ के लिए ऐतिहासिक अगहनी जुमे की नमाज आयोजित की गई. इस मौके पर बुनकरों द्वारा मुर्री बंद रखी गई. ऐसा कहा जाता है कि जब देश में सूखे ने सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया, तब काशी के बुनकरों ने एक अद्वितीय प्रयास किया.

इस नमाज की अदायगी के साथ ही बारिश की बूंदें गिरीं और समृद्धि की किरणें फैलीं. आज भी यह परंपरा जारी है, जब हर साल अगहन माह के दूसरे जुमे को इस ईदगाह में मुल्क की तरक्की और खुशहाली के लिए नमाज पढ़ी जाती है। इस नमाज में हजारों बुनकर एकत्रित होते हैं और आज के दिन मुर्री (कारोबार) भी बंद रहती है. यह परंपरा काशी के बुनकरों की एकता और समृद्धि की कामना का प्रतीक है.

450 साल पुरानी है परंपरा

बुनकर तंजीम बाईसी के सरदार ने बताया कि अगहनी जुमे की नमाज अदा करने की परंपरा 450 साल से अधिक पुरानी है. यह परंपरा उस समय शुरू हुई जब देश में अकाल पड़ा और कारोबार ठप हो गए थे. लोग दाने-दाने को मोहताज हुए तो उस समय के लोगों ने इस ईदगाह में अगहनी जुमे की नमाज अदा की.

 

उन्होंने बताया कि अल्लाह की बारगाह में बारिश और मुल्क की तरक्की के लिए हाथ बलंद किया तो उसने भी मायूस नहीं किया और जमकर बारिश हुई. तभी से यह परंपरा शुरू हुई और आज हम उसे निभाते आ रहे हैं. इस नमाज में बुनकर समाज के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए और तरक्की और समृद्धि की कामना की.

कारोबार बंद रखा, दुआख्वानी की

अगहनी जुमे के दिन मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपने कारोबार बंद रखे और नमाज अदा की. इसके बाद, सभी तंजीमों के सरदार और सदस्यों ने मिलकर बनारस के बुनकारी के कारोबार से जुड़े लोगों के साथ बैठक की. इस बैठक में कारोबार में हो रही दिक्कतों के बारे में चर्चा की गई और उनके समाधान के लिए रणनीति बनाई गई. इस बैठक की खास बात यह रही कि इसमें मुल्क की तरक्की और खुशहाली के लिए दुआख्वानी के साथ ही साथ आगे की रणनीति भी बनाई गई. इस बैठक में जो फैसला हुआ उसे सर्वसम्मति से माना गया.

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गंगा जमुनी तहजीब का है त्यौहार

बनारस में एक अनोखी परंपरा है, जहां हिन्दू और मुस्लिम मिलकर सभी त्योहार मनाते हैं. चाहे ईद हो, दिवाली हो या होली, सभी त्योहार एकता और सौहार्द के साथ मनाए जाते हैं. आज का दिन भी इसी एकता का प्रतीक और गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है, जहां हजारों की संख्या में लोग नमाज अदा करते हैं और इसके साथ ही गन्ने की बिक्री भी होती है. ईदगाह पुलकोहना के आसपास मेले जैसा माहौल है, जो इस एकता का प्रतीक है. यह परंपरा बुजुर्गों की देन है, जिन्होंने इसे शुरू किया और आगे बढ़ाया.

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