वाराणसी: नहीं रहे अंग्रेजों को नाको चना चबा देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बीके बनर्जी

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वाराणसी: अंग्रेजों को नाको चना चबा देने वाले खोजवा निवासी स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉक्टर बीके बनर्जी का देहावसान हो गया. उनका अंतिम संस्कार राष्ट्रीय सम्मान के साथ हरिश्चंद्र घाट पर किया गया. इस दौरान पुलिस ने गार्ड ऑफ़ ऑनर दिया. डॉ बीके बनर्जी का स्वतंत्रता संग्राम के दौरान काफी योगदान रहा. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया था.

थाने में आग लगाकर फहराया था झंडा, 100 बेंत की सजा

जब अंग्रेजी हुकूमत द्वारा अपना झंडा फहराया जा रहा था तो बीके बनर्जी ने थाने में आग लगा दी थी और भारत का झंडा लहराने का कार्य किया था. ब्रिटिश झंडे को उखाड़ फेंका था. बीके बनर्जी ध्वज फहराते अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिए गए थे. उन्हें विभिन्न प्रकार से टार्चर किया गया था. लगभग 100 बेतो की सजा दी गई थी. इतना ही नहीं उनके हाथों का नाखून भी अंग्रेजों द्वारा उखाड़ लिया गया था.

14 साल की उम्र में कूद पडे थे आंदोलन में

उनके दामाद शांतनु कुमार मुखर्जी और उनके पुत्र दिव्येंदु बनर्जी ने बताया कि बीके बनर्जी जब 14 साल के थे तो गांधी जी के आह्वान पर आंदोलन में भाग लिया था. उनके मन में भी स्वतंत्रता आंदोलन की ललक जग गयी थी और इस आंदोलन में भाग लिए. उन्होंने बताया कि जहां पर यह आंदोलन हो रहा था उस थाने को इन लोगों ने जला दिया था. सारे क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया था और उन्हें जेल में डाल दिया गया था. इनको करीब डेढ़ साल तक जेल में रखा गया था जेल से छुटने के बाद यह वाराणसी चले आए और खोजवा में अपना आवास बनाकर रहने लगे. आगे चलकर जब देश आजाद हुआ तो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को इंदिरा गांधी के द्वारा सम्मानित किया. इसके बाद पेंशन प्रारंभ हुई. सम्मान के रूप में ताम्रपात्र भी दिया गया था.

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जगाते थे देशभक्ति की भावना

पड़ोस में ही रहने वाले उत्तम सिंह ने बताया कि बनर्जी दादा बहुत से मिलनसार थे. हम लोग जब भी आते थे तो हम लोगों में देशभक्ति की भावना जागते थे. इस दौरान स्वतंत्रता आंदोलन की भी घटना का जिक्र किया करते थे. उन्होंने किस तरह से आंदोलन को मूर्त रूप दिया, कैसे लोग इकट्ठा होते थे, कैसे कार्य करते थे, इसके विषय में भी बातचीत करते थे.

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