‘सुंदर बिहान होई’ भोजपुरी ग़ज़ल संग्रह में प्रेम तत्व की रागात्मक चेतना मौजूद: प्रो. वशिष्ठ अनूप
वाराणसी: नई किताब प्रकाशन समूह के तत्वावधान में हिंदी उत्सव पुस्तक लोकार्पण एवं परिचर्चा क्रम के तहत प्रसिद्ध ग़ज़लकार प्रो. वशिष्ठ अनूप के भोजपुरी ग़ज़ल संग्रह ‘सुन्दर बिहान होई’ पुस्तक पर परिचर्चा का आयोजन आचार्य रामचंद्र शुक्ल सभागार, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रकाशक आदित्य माहेश्वरी एवं वरुण भारती के संयोजकत्व में सम्पन्न हुआ.
ग़ज़ल संग्रह का शीर्षक ‘सुंदर बिहान होई’ ग़ज़लकार के उस आशान्वित दृष्टि का प्रतीक है जिसके माध्यम से अपने मातृभाषात्मक क्षेत्र में वो नित नवीन ऊँचाई की ओर अग्रसर होते रहेंगे और भोजपुरी ग़ज़ल के शिखर पर विराजमान होंगे. जब मैं इसमें संकलित ग़ज़लों को पढ़ रही थी तब भाषा से जो अपनत्व का एहसास हैं , भीतर से आवाज़ आई, इसकी भाषा है ‘सौम्य भोजपुरिया’. विश्वविद्यालय के परंपरानुसार कुलगीत ‘मधुर मनोहर अतीव सुंदर यह सर्वविद्या की राजधानी’ का गायन शोध छात्राएं दिव्या शुक्ला, रुक्मणि राय और स्मिता पांडेय ने किया.
डॉ. दयानिधि मिश्र ने की अध्यक्षता…
बता दें कि कार्यक्रम की अध्यक्षता विद्याश्री न्यास के सचिव डॉ. दयानिधि मिश्र ने किया . उन्होंने कहा कि ‘सुंदर बिहान होई’ का मूल तत्व गेयता है. इन ग़ज़लों में जन-जन की संवेदना मौजूद है. इसमें ग़ज़ल के आंतरिक तत्वों का रेशा-रेशा मौजूद है. वशिष्ठ अनूप स्वयं में ग़ज़ल के एक स्कूल हैं, संस्था हैं। रूप, रंग, बोली-बानी से यह साफ़ ज़ाहिर है उनका लेखन तो है ही.
भोजपुरी साहित्य का इतिहास 7 वीं सदी से शुरू
हीरालाल मिश्र ‘मधुकर’ ने बताया कि भोजपुरी साहित्य का इतिहास 7 वीं सदी से शुरू होता है और हिंदी साहित्य की शुरुआत 9 वीं सदी से प्रारंभ होता है। हम देख सकते हैं कि भोजपुरी लोककंठ में पहले से ही विद्यमान है. भोजपुरी ग़ज़ल सबसे पहले तेग अली तेग की ‘बदनाम दर्पण’ में भोजपुरी की मात्र 35 ग़ज़लें शामिल थी, पहली बार इतनी तादाद में भोजपुरी ग़ज़ल इस संग्रह में समाहित है. वशिष्ठ अनूप राष्ट्रीय स्तर के गज़लकार हैं. इनके ग़ज़लों में मनुष्य के संरक्षण की प्रतिबद्धता है. भोजपुरी में यह ग़ज़ल संग्रह छांदस विधान पर खरा उतरा है जैसे भिखारी ठाकुर की बिदेसिया.
इसमें ‘बिहान’ शब्द का सात बार प्रयोग है, ऐसे कवि की हम आशावादी ही कह सकते हैं. इसमें मानवीय मूल्यों को बनाए रखने की उत्कंठा है. इसका विषय पक्ष एवं अभिव्यक्ति पक्ष दोनों ही सुदृढ़ और सुगठित है.‘सुंदर बिहान होई’ भोजपुरी ग़ज़ल की दुनियाँ में कालजयी कृति साबित होगी. वशिष्ठ अनूप दुष्यंत कुमार की परम्परा के ग़ज़लकार हैं.
“झुलसती बूँद को पानी मिला है, हमें बादल सरीखा महादानी मिला है.”
बतौर विशिष्ट वक्ता प्रो. बलिराज पाण्डेय ने बताया कि अपने किताब में अनूप जी ने स्वीकार किया है कि आज भोजपुरी के विस्तार की ज़रूरत है; माने भोजपुरी भाषा को हिन्दी, उर्दू,संस्कृत, अंग्रेजी भाषा के शब्दों को अपनाने में गुरेज नहीं करना चाहिए. अनूप जी ने छंद के क्रम को बिठाने हेतु किसान की जगह कृषक शब्द का प्रयोग किया है. गाँव की स्थिति पर ख़ासकर वर्तमान स्थिति पर ग़ज़लकार की गहरी नज़र है.
‘गाँव क हाल-चाल मत पूछ, सबक बिगड़ल बा ताल मत पूछ’ शैतानी संस्कृति के खिलाफ़ आवाज़ उठानी होगी.
‘तम से हरदम भिड़े के पड़ेला, बनि के दीपक जरे के पड़ेला.
हक न मँगले से कब्बो मिलेला, एकरे खातिर लड़े के पड़ेला.’
कविता सच्चाई की पक्षधर होती है ऐसा हार्वर्ड फास्ट ने कहा था और केदारनाथ सिंह जी ने कहा था कि कविता में जो अनुपस्थित हो उसकी शिनाख्त करे.