जानें क्या होता है मल्टीपल मायलोमा ? जिसने ली शारदा सिन्हा की जान…
बीते लम्बे समय से मल्टीपल मायलोमा बीमारी से ग्रसित बिहार की स्वरकोकिला के नाम से जानी जाने वाली लोकगायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार को निधन हो गया और आज राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार को उनको अंतिम विदाई दी गई है. वहीं उनके निधन के साथ ही इस घातक बीमारी की चर्चा भी शुरू हो गयी है, जिससे लोगों की चिंता बढ़ी है. ऐसे में जानना जरूरी हो जाता है कि यह बीमारी आखिर क्या है, इसके लक्षण क्या और इससे किस प्रकार से बचाव किया जा सकता है ?
मल्टीपल मायलोमा यानि ब्लड कैंसर ?
मल्टीपल मायलोमा एक प्रकार का ब्लड कैंसर होता है, जिससे शरीर की प्लाज्मा कोशिकाओं में असामान्य बढ़ोतरी होती है. प्लाज्मा कोशिकाएं सामान्यतया इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए होती है. ऐसे में इस बीमारी में ये कोशिकाएं हड्डियों और शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित करने लगती है. वहीं इसको लेकर डॉक्टर का कहना है कि यह बीमारी आमतौर पर 60 वर्ष उम्र के बाद अधिक होती है, लेकिन भारत में इन मामलों की उम्र 50 की उम्र के बाद देखने को मिल रहे हैं.
इसके लक्षण और पहचान ?
इस बीमारी को कई लक्षणों से पहचाना जा सकता है जो कि निम्नलिखित प्रकार से हैं…
-इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के हाथों और पैरों में कमजोरी और सुन्नपन का एहसास होता है.
-शरीर की हड्डियों में दर्द रहना शुरू हो जाता है.
-इस बीमारी में रीढ़ की हड्डियां प्रभावित होती है और वे सिकुड़ जाती है. इससे रीढ़ पर दबाव बनता है और उसमे असहनीय दर्द होता है.
-इसका रोगी काफी थकान महसूस करता है और उसे एनिमिया हो जाता है.
-रोगियों को मतली और उल्टी भी बहुत होती है. इसके अलावा उसकी भूख भी कम हो जाती है, साथ ही जीवाणु संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.
इलाज
इस बीमारी को कोई भी स्थायी इलाज नहीं होता है, लेकिन इसे कीमोथेरेपी और आधुनिक दवाइयों की मदद से मरीज को कम से कम 5 से 7 सालों तक जीवित रखा जा सकता है. वहीं कुछ केस में यह अवधि 10 से 15 साल भी हो जाती है. इसको लेकर डॉक्टर्स का कहना है कि आज मार्केट में कई सारी आधुनिक दवाईयां मौजूद हैं जिनसे इस बीमारी पर पूरा तो नहीं लेकिन काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है. इससे पहले इस बीमारी के मरीज दो या तीन साल बाद मर जाया करते थे , अब स्थित बेहतर हो पाई है.