बाल विवाह जीवनसाथी चुनने के अधिकार का उल्लंघन… जानिए सुप्रीम कोर्ट का क्या है इशारा…
भारत में हर 1 मिनट में होता है 3 बाल विवा
# बाल विवाह की दर मौजूदा समय में 23 फीसदी
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देश में बाल विवाह की याचिकाओं पर सुनवाई की और कहा कि बाल विवाह जीवनसाथी चुनने के अधिकार का उल्लंघन है. इसमें स्वतंत्र पसंद और बचपन दोनों का उल्लंघन होता है. इस मामले पर CJI DY चंद्रचूड़ ने अहम् टिप्पणी की है.
कोर्ट ने दिया संसोधन का आदेश…
बाल विवाह की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए CJI की पीठ ने कहा, संसद से बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 में संशोधन करके बाल विवाह पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने पर विचार करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अनिल कुमार सिंह श्रीनेत कहते हैं कि सुप्रीम टिप्पणी से वैवाहिक मामलों में भी मुस्लिमों के पर्सनल लॉ से जुड़े कानून के खात्मे का संकेत मिलता है.
बाल विवाह को रोका जाए, मुकदमों पर ही न हो फोकस
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून लागू करने वालों को बाल विवाह को रोकने और निषिद्ध करने के लिए सर्वोत्तम प्रयास करना चाहिए. केवल मुकदमों पर ही ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए. भारत में हर 3 मिनट में एक बाल विवाह होता है. यह बहुत ही भयावह स्थिति है. यानी बचपन को कुचला जा रहा है.
समुदायों की जरूरतों के अनुसार बने रणनीति…
फैसले में कहा गया है कि बाल विवाह के मूल कारणों जैसे गरीबी, लिंग, असमानता, शिक्षा की कमी को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा निवारक स्ट्रैटेजी को अलग-अलग समुदायों की विशिष्ट जरूरतों के मुताबिक बनाया जाना चाहिए.
जानें क्या है बाल विवाह से नुकसान…
बता दें कि चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट भुवन रिभु की किताब ‘व्हेन चिल्ड्रन हैव चिल्ड्रन’, बाल विवाह से बचपन छिन जाता है. उनकी आजादी और गरिमा पर चोट पहुंचती है. बाल विवाह का मतलब यह है कि 18 साल से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के की शादी बाल विवाह की कैटेगरी में आती है. बाल विवाह से लड़कियों के स्कूल छूट जाते हैं. उनकी आजीविका और आत्मनिर्भरता पर चोट पहुंचती है.
बाल विवाह एक तरह से रेप ?…
गौरतलब है कि चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट भुवन रिभु की किताब ‘व्हेन चिल्ड्रन हैव चिल्ड्रन’ के अनुसार, बाल विवाह का नतीजा बच्ची का रेप होता है. इससे कम उम्र में प्रेग्नेंसी और बड़ी संख्या में मौतें भी होती हैं. यहां तक कि कुछ समुदायों और समाजों में इसे सही भी ठहराया जाता है.
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मुस्लिम पर्सनल लॉ में बाल विवाह जायज …
बता दें कि इतना ही नहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ में बाल विवाह को जायज ठहराया गया है. सितंबर, 2022 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने यह नियम दिया था कि कि अगर कोई मुस्लिम लड़की 15 साल की हो जाती है तो उसे मान लिया जाता है कि वह शादी के काबिल हो गई है. वह अपनी सहमति से शादी कर सकती है. ऐसी शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मान्य होगी.
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बाल विवाह में आ सकती है गिरावट
कहा जा रहा है कि यदि किताब चिल्ड्रन हैव चिल्ड्रन के अनुसार, अगर जागरूकता अभियानों को बढ़ाया जाए और कानूनों से सख्ती बरती जाए तो अगले 25 साल में भारत में बाल विवाह की दर मौजूदा 23 फीसदी से गिरकर 9 फीसदी पर आ जाएगी.