माता सीता का पता मिलने पर लंका फतह को निकली श्रीराम की सेना
वाराणसी- रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के 20वें दिन रविवार को हनुमानजी ने माता जानकी का श्रीराम को पता बता दिया तो वानरी सेना उत्साह से भर उठी. हनुमान ने सीता का पता बताकर श्रीराम को उनका अभीष्ट दे दिया. फिर क्या था. प्रभु का आदेश हुआ और वानरी सेना निकल पड़ी उस लंका के फतह के लिए जिसका सर्वनाश युगों-युगों के लिए यह दृष्टांत निर्धारित करने वाला था कि बुराई ही अंत में हारती है.
लंका पर वानर सेना ने की चढाई
देवताओं की जय-जयकार के बीच श्रीराम की वानरी सेना लंका पर चढ़ाई करने के लिए चल पड़ती है. वानरी सेना के साथ श्रीराम समुद्र के किनारे पहुंचते हैं. उधर, रावण का दूत उसे बताता है कि राम सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंच गए हैं. यह जानकार रावण अपने मंत्रियों से विचार विमर्श करने लगा तभी वहां विभीषण पहुंचे. रावण ने उनकी सलाह मांगी तो विभीषण ने उसे समझाया कि राम से बैर करना ठीक नहीं है. भाई के मुंह से दुश्मन की बड़ाई सुनकर रावण क्रोधित हो उठा और एक लात मारकर विभीषण को लंका से बाहर निकाल दिया. वहां से निकलकर विभीषण राम की शरण में जा पहुंचते हैं.
विभीषण की आगवानी के बाद श्रीराम उनसे समुद्र पार करने का उपाय पूछते हैं. विभीषण कहते हैं कि वैसे तो आपका बाण ऐसे करोड़ों समुद्र सोख सकता है, लेकिन समुद्र आपके कुल का बड़ा है. आप विनती करिए समुंद्र ऐसा उपाय करेगा कि आप पार चले जाएंगे. श्रीराम विनती करते हैं. जब देर तक समुद्र कोई उत्तर नही देता तो श्रीराम अग्निबाण निकाल कर प्रत्यंचा पर चढ़ा लेते हैं. यह देख समुंद्र उनके सामने प्रकट होकर क्षमा मांगने लगा. समुद्र राम को बताते हैं कि आपकी सेना के नल और नील नाम के बंदरों को बचपन में ही ऋषि का आशीर्वाद मिला है कि वह जिस पत्थर या पहाड़ को छू देंगे वह पानी में तैरने लगेंगे.
आप इस विधि से सेतु का निर्माण कराइए. जामवंत की सलाह पर सभी वानर, भालू, पहाड़ और पेड़ उखाड़ लाते हैं. इसके बाद सेतु का निर्माण शुरू हो जाता है. यह देखकर राम वहां की रमणीक भूमि पर शिव स्थापना करते हैं. शिव स्थापना एवं पूजा करने के बाद वह कहते हैं कि शिव के समान हमें कोई प्यारा नहीं है. शिव का द्रोही मुझे सपने में भी नहीं मार सकता. जो मेरे द्वारा स्थापित रामेश्वरम का दर्शन करेगा, वह हमारे धाम को जाएगा और जो सेतु का दर्शन करेगा वह भवसागर पार कर जाएगा. यहीं पर आरती के बाद लीला को विश्राम दिया गया.