श्रीराम का खड़ाऊ सिर पर रख चित्रकूट से अयोध्या को निकले भरत

श्रीराम द्वारा दिए गए खड़ाऊ को सिर पर धारण कर चित्रकूट से अयोध्या प्रस्थान करते भरत...

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विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के 14 वें दिन श्रीराम द्वारा दिए गए खड़ाऊ को सिर पर धारण कर चित्रकूट से अयोध्या प्रस्थान करते भरत की भक्ति देख सभी लोग आनंदित हो उठे. भरत का चित्रकूट से विदा होकर अयोध्या जाना व नंदीग्राम निवास की लीला देखने के लिए लीलाप्रेमियों की भारी भीड़ रही. लीला के प्रारंभ में भरत ने श्रीराम से कहा कि गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से आपके राज तिलक के लिए सभी तीर्थों का जल लाया हूं उसे क्या करूं? भरत द्वारा तीर्थ वन, पशु, पक्षी तालाब आदि स्थानों को देखने की इच्छा प्रकट करने पर श्रीराम कहते हैं कि अत्रि मुनि की आज्ञा लेकर निर्भय हो वन में भ्रमण करो. ऋषि राज जहां आज्ञा दें उसी स्थान पर तीर्थों के जल को रख देना.

संसार के लिए कल्याणकारी कूप को अब जाना जाएगा भरत कूप

अत्रि मुनि के आदेश पर भरत ने पहाड़ के निकट एक सुंदर कूप के पास राजतिलक के लिए जल को रख दिया. अत्रि मुनि ने कहा कि यह अनादि स्थल जिसे काल ने नष्ट कर दिया था, इस पवित्र जल के संयोग से यह स्थल संसार के लिए कल्याणकारी हुआ. इस कूप को आज से भरत कूप कहा जाएगा.

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ऋषि श्रीराम को भी भरत कूप की महिमा बताते हैं. श्रीराम व मुनि की आज्ञा मानकर भरत पांच दिनों तक चित्रकूट की प्रदक्षिणा करते हैं. प्रातः काल भरत सभी लोगों के साथ प्रभु श्रीराम से आज्ञा मांगते हैं और उनके द्वारा दिए गए खड़ाऊ को सिर पर बांध कर आनंदित होकर विदा मांगते हैं. इस पर श्रीराम गले लगाते हुए भरत को विदा करते हैं.

श्रीराम हुए उदास, कहा- नहीं की जा सकती भरत की तुलना

लीला के दूसरे चरण में श्रीराम उदास होकर लक्ष्मण और सीता से कहते हैं कि भरत की दृढ़ता, स्वभाव व मधुर जबान की तुलना नहीं की जा सकती. देवतागण श्रीराम से कहते हैं कि जो अत्याचार देवताओं ने आप पर किया है उसे क्षमा करें.

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श्रीराम देवतागणों से कहते हैं कि अपने कल्याण के लिए काम कर रहे हैं, इसलिए धीरज धारण करिए. यहीं पर लीला की प्रथम आरती होती है.

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