बिहार में बाढ़ से त्राहिमाम, 13.5 लाख लोग प्रभावित…

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जीवनदायनी नादियां आज जीवन नाशक के रूप में बिहार वासियों को डराने का काम कर रही हैं. उनका रौद्र रूप घर, सड़क, पुल और ऊंची इमारतों को निगलने के बाद भी शांत नहीं है. ये नदियां अभी क्या क्या तबाह करेंगी इसकी कल्पना भर से लोगों की रूह कांप रही है. इन दिनों बिहार के कई जिले किसी टापू की तरह प्रतीत हो रहे हैं जिसके चारों तरह बस पानी और सिर्फ पानी है. कहीं किनारा नजर ही नहीं आता है. ये नजारा बिहार के किसी एक स्थान का नहीं है बल्कि पूरे 13 जिलें इस तरह से नजर आ रहे हैं. दूसरी ओर यह तबाही दिन प्रतिदिन और भयावह रूप लेती जा रही है. इस प्रलय की स्थित को देखकर लोगों में 1968 और 2008 की तबाही की यादें ताजा हो जा रही हैं…

बिहार के ये जिले हैं बाढ़ की चपेट में…

राज्य के कई जिले जैसे दरभंगा, मोतिहारी, शिवहर, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, अररिया, किशनगंज, गोपालगंज, सुपौल, सिवान, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया और मधुबनी में बाढ़ का प्रकोप लगातार जारी है. शिवहर जिले के तरियानी छपरा में बागमती नदी पर बना तटबंध टूट गया है. दरभंगा जिले के किरतपुर प्रखंड में भी एक तटबंध टूटने की खबर है. राज्य में कोसी, बागमती और गंडक नदियां कहर ढा रही हैं. वहीं बिहार सरकार ने 24 घंटे तटबंधों की निगरानी रख रही है. मूसलाधार बारिश के बाद निचले इलाकों में नदियों के बढ़ते जलस्तर से लगभग 13.5 लाख लोग प्रभावित हुए हैं. प्रभावित जिलों से बहुत से लोग निकालकर राहत शिविरों में भेजे गए हैं.

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कई गांव हुए जलमग्न

वर्तमान परिस्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुजफ्फरपुर के कटरा में बकुची पावर प्लांट में पानी घुस गया है. इसकी वजह विभिन्न नदियों के तटबंधों का टूटना भी जारी है. कई सड़कें जलमग्न हैं, वहीं कई पुल बह गए हैं और लोगों के घरों में पानी भर रहा है. कई सारे गांव पानी में डूब गए हैं. ऐसे में वहां के लोगों को स्थानांतरित किया जा रहा है.

24 घंटे तैनात हैं अधिकारी व कर्मचारी

जल संसाधन विभाग की टीमें 24 घंटे तटबंधों की निगरानी करती हैं ताकि किसी भी कटाव या खतरे का पता चलते ही तुरंत कार्रवाई की जा सके. विभाग के तीन प्रमुख इंजीनियर, 17 एक्जक्यूटिव इंजीनियर, 25 असिस्टेंट इंजीनियर और 45 जूनियर इंजीनियर 24 घंटे 7 घंटे तैनात हैं और उच्च सतर्कता से काम कर रहे हैं. राज्य के जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि, घबराने की कोई जरूरत नहीं है.

राहत व बचाव के लिए लगीं एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें

एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें हालात को सुधारने के लिए लगातार काम कर रही हैं. इस बार बचाव कार्य को लेकर पहले से ही अलर्ट मोड पर काम हो रहा था. लोगों को सूचित करने के साथ ही स्थिति की निगरानी की जाती थी. हालांकि, राहत की खबर है कि नेपाल में बारिश थम गई है, जिससे बिहार में भी परिस्थितियां जल्द ही सामान्य हो सकती हैं.

2008 में आई थी ऐसी ही तबाही

इन दिनों बिहार में बाढ के हालत को देखकर कर लोगों को आंखों में 2008 की तबाही का मंजर कौंध गया है. साल 2008 में आई बाढ़ ने प्रदेश भयंकर तबाही मचाई थी. पूरे के पूरे गांव तबाह हो गए थे. वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2008 की भयंकर बाढ़ में कुछ 526 लोग की मौत हुई थी तथा कई हजार किसानों की खेती बर्बाद हो गई थी. बाढ़ से खेतों में बालू भर गई थी. लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यह बाढ़ का कहर मात्र बारिश का नहीं हुआ था, बल्कि नेपाल की तरफ से 2-3 लाख क्यूसेक पानी भी छोड़ा गया था. इसकी वजह से बिहार के गांव के गांव तबाह हो गए थे.

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इस बार 2008 से भी ज्यादा तबाही के क्यों है आसार ?

इस बार खतरा अधिक चर्चा में है क्योंकि बीरपुर (नेपाल) बैराज से कोसी नदी पर 6.61 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया है, जो पिछले 56 वर्षों में सबसे अधिक है. यह साल 2008 से लगभग तीन गुना ज्यादा है. वहीं साल 1968 में 7.88 लाख क्यूसेक के बाद ये आंकड़ा सबसे बड़ा है. इसके पूर्व 2003 के बाद वाल्मिकीनगर बैराज से 5.62 लाख क्यूसेक पानी गंडक नदी में छोड़ा गया था.

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