शहादत के बाद भी भगत सिंह को शहीद का दर्जा क्यों नहीं ?

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शहीद-ए-आजम के नाम से जाने जाने वाले भगत सिंह की आज देशभर में जयंती मनाई जा रही है, लोग अब भी उनकी शहादत को याद कर अपने देश के उस वीर सपूत पर फक्र करते हैं जिसने महज 23 साल की उम्र में देश को आजादी दिलाने के नाम पर खुशी – खुशी अपनी जान दे दी. उनकी शहादत और वीर गाथाओं को लेकर बॉलीवुड में कई सारी फिल्में भी बनी जो कि काफी सफल रही हैं, इन सबके बावजूद भी उन्हें वो हासिल न हो सका जिसके वे हकदार थे यानी आधिकारिक तौर पर शहीद का दर्जा. यह सुनने में अविश्वसनीय प्रतीत होता है लेकिन अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि, यह बात बिल्कुल सच है और यह हमारे आजाद भारत की सरकारों को लिए काफी शर्म की बात है, लेकिन सवाल है कि, आखिर ऐसा है क्यों ?

साल 2013 में माना गया था शहीद, लेकिन नहीं बदली स्थिति

जब इस सवाल का जवाब खंगालने के लिए हम बैठे तो पाया कि, साल 2013 अगस्त में कांग्रेस की मनमोहन सरकार ने राज्यसभा में भगत सिंह को शहीद का दर्जा देना स्वीकार किया था, मनमोहन सरकार की इस कार्यवाही की एक रिपोर्ट मिलती है. लेकिन इसके बाद भी अब तक सरकारी दस्तावेजों में सुधार नहीं किया गया. वहीं इसके बारे में तत्कालीन पूर्व गृहमंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने दिलचस्पी ली थी, लेकिन आज तक शहीद भगत सिंह को सरकारी रिकॉर्डों में शहीद का दर्जा नहीं दिया गया और अब भी हमारा देश उन्हें वही मानता है जो अंग्रेज शासक उनको माना करते थे ‘क्रांतिकारी आतंकी’ . इसका उल्लेख कई सारी किताबो में मिलता है. यही वजह है कि, भगत सिंह के वंशजों ने उन्हें शहीद का दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन शुरू किया था.

भगत सिंह के वंशज ने उठाया मुद्दा

शहीद भगत सिंह ब्रिगेड के प्रमुख एवं भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू इस मुद्दे को लेकर सरकार से सवाल करते हुए कहते हैं कि, आखिर भगत सिंह को ‘शहीद’ घोषित करने में सरकार को परेशानी क्याि है?. क्याह सरकार को कोई डर है? इसके आगे वे कहते है कि, “आजादी के बाद सभी सरकारों ने सिर्फ नरम दल वालों को सम्मा न दिया, जबकि गरम दल वाले क्रांतिकारी हाशिए पर रहे.”

उन्होंने इसके आगे कहा है कि, “वह इस मामले को लेकर भाजपा अध्योक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी से मिल चुके हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाये जा रहे ‘भारत का स्वतंत्रता संघर्ष’ नामक पुस्तक में शहीद भगत सिंह को जगह-जगह क्रांतिकारी आतंकवादी कहा गया था. यदि वे दस्ताकवेजों में शहीद घोषित होते तो ऐसा लिखने की हिम्मेत किसी की न होती.”

आरटीआई ने दिया हैरान करने वाला जवाब

साल 2013 में केंद्रीय गृह मंत्रालय में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को शहीद का दर्जा दिए जाने को लेकर आरटीआई डाली गयी थी और पूछा गया था कि, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद का दर्जा कब दिया जाएगा, यदि नहीं तो उस पर क्या काम चल रहा है ? इस पर 9 मई 2013 को गृह मंत्रालय का चौंका देने वाला जवाब सामने आया था. जिसमें कहा गया था कि, ”इस संबंध में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है”

वहीं जब यह मामला मीडिया में तूल पकड़ने लगा तो, तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को सफाई देनी पड़ी. वही 19 अगस्त 2013 को राजसभा सांसद केसी त्यागी ने सदन में यह मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि, गृह मंत्रालय के लेख और अभिलेखों में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद का दर्जा नहीं दिया गया. सदन में त्यागी का समर्थन करने वालों में कुसुम राय, जय प्रकाश नारायण सिंह, राम विलास पासवान, राम गोपाल यादव, शिवानंद तिवारी, अजय संचेती, सतीश मिश्र और नरेश गुजराल शामिल थे.

साल 2016 में भी आरटीआई की मिला ये जवाब

इसके बाद केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद साल 2016 में एक बार फिर से आरटीआई से यह सवाल किया गया और एक बार फिर से वही जवाब हासिल हुआ. पीएमओ ने इस सवाल को गृहमंत्रालय को रेफर कर दिया था और गृहमंत्रालय ने इसके जवाब में कहा कि, इसके बारे में उनके पास फिलहाल कोई रिकॉर्ड नहीं है. इसके साथ ही यह मुद्दा आज भी अधर में लटका हुआ है और देश का शहीद अपने हक की लड़ाई लड़ रहा है और दूसरी तरफ सरकारें अपने राजनीतिक फायदे के लिए सरबजीत जैसे आम नागरिक जो कि अपनी गलती से पाकिस्तान की जेल में सालों तक कैद रहा था, उसे शहीद का दर्जा दे देती है.

सरकार किन्हें देती है शहीद का दर्जा ?

वास्तव में, देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान देने वाले सभी सैनिकों को शहीद कहते हैं. लेकिन डॉक्यूमेंट में शहीद कहना और आम बोलचाल में शहीद कहना बहुत अलग है. भारत सरकार शहीद घोषित किए गए जवानों और उनके परिवार को कई सुविधाएं प्रदान करती है. वहीं जानकारी के अनुसार, यह दर्जा सिर्फ सेना के जवानों को दिया जाता है, इसके अलावा अग्निवीर जवानों, पुलिसकर्मियों को भी ऑपरेशन, सैन्य दुर्घटना या आतंकी हमले मारे जाने पर भी शहीद का दर्जा नहीं दिया जाता है.

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शहीद का दर्जा पाने वाले को मिलती है यह सुविधाएं

जवानों के किसी हमले में शहीद होने पर सरकार उनके परिवार को कई अतिरिक्त सुविधाएं प्रदान करती है. इसमें जमीन या घर, शहीद की पत्नी को पूरा वेतन, शहीद के परिवार वालों को रेलवे और हवाई किराया में 50 प्रतिशत तक की छूट आदि शामिल हैं. साथ ही, राज्य सरकार से आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी सहित कुछ अतिरिक्त सुविधाएं भी देती है.

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