पुत्र की दीर्घायु के लिए महिलाओं ने रखा निराजल व्रत, जीवित्पुत्रिका पर ममता का उमड़ा सैलाब
मां और संतान के प्रेम का प्रतीक जीवित्पुत्रिका यानी ज्युतिया व्रत का त्योहार अत्यंत धूमधाम से मनाया जा रहा है.
वाराणसी में आज ममता की श्रद्धा का सैलाब उमड़ा है. जहां मां और संतान के प्रेम का प्रतीक जीवित्पुत्रिका यानी ज्युतिया व्रत का त्योहार अत्यंत धूमधाम से मनाया जा रहा है. महिलाएं निराजल व्रत रखकर अपनी संतान के दीर्घायु की कामना कर रही हैं. इस क्रम में वाराणसी के लक्ष्मीकुंड समेत विभिन्न लक्ष्मी मंदिरों में महिलाओं ने मां लक्ष्मी की विशेष पूजा आराधना कर बच्चों समेत परिवार के सुख समृद्धि की कामना की.
16 दिनों से चल रहे सोरहिया मेले का समापन
इस पर्व पर लक्ष्मी कुंड पर 16 दिनों से चल रहे सोरहिया मेला का भी समापन जीवित्पुत्रिका व्रत से होता है जिसमें 16 दिनों तक मां लक्ष्मी की आराधना और पूजा की जाती है. इसमें पारिवारिक दरिद्रता, आर्थिक उलझने और संतान प्राप्ति के लिए व्रत पूजन किया जाता है. जीवित्पुत्रिका यानि जिउतिया पर्व के साथ इस कठिन व्रत तप की समाप्ति होती है.
हज़ारों संख्या में महिलाएं माता लक्ष्मी के मंदिर में लगाती है हाज़िरी
मां लक्ष्मी को 16 अलग-अलग प्रकार के फल, फूल और अन्य सामग्री अर्पित की जाती है. इस दिन इस स्थान पर हज़ारों की संख्या में महिलाएं माता लक्ष्मी के मंदिर में हाज़िरी लगाती हैं.
साथ ही यहां स्थापित कुंड के किनारे बैठ कथा सुनने के साथ अपनी संतान के दीर्घायु की कामना करती हैं. इसके लिए महिलाएं अपने पुत्र की दीर्घायु के लिए निराजल व्रत रखती हैं.
पौराणिक मान्यता
मान्यता के अनुसार, महराज जीमूत का विवाह मलयवती से हुआ था. संतान प्राप्ति न होने पर उन्होंने मां लक्ष्मी की आराधना की थी.स्वप्न में मां ने दर्शन देकर उन्हें 16 दिनों तक व्रत रहने को कहा था. महाराज के 16 दिनों तक व्रत रहने से संतान की प्राप्ति हुई थी.
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जिसकी वजह से इसका नाम सोरहिया मेला पड़ा. जीमूत के व्रत की वजह से आखिरी दिन महिलाएं संतान प्राप्ति को जीवित्पुत्रिका यानि जिउतिया का व्रत रखने लगी.