घरे-घरे मंथरा अऊर कैकेयी, कब लगा दीहन आग पता नाही

विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला: कोपभवन से छायी श्रद्धालुओं के चेहरे पार उदासी

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बनारसी गमछा, हाथ में छड़ी, बैठने के लिए छोटी चौकी और पीढ़ा या आसनी लेकर लीला प्रेमी कोपभवन की लीला देखने मौके पर पहुंच गये थे. बनारसी मिजाज में बूटी जमाए और मुंह में पान घुलाये, हाथ में रामायण का गुटका लिये श्रद्धालु लीला शुरू होने का इंतजार कर रहे थे. लेकिन प्रभु की लीला से गहराई तक जुड़े नेमी (नियमित लीला देखनेवाले) लीलाप्रेमियों को आज की लीला अखर जाती है. जब वह श्रीराम के राजा बनने से पहले उनके 14 वर्ष के वनवास का संवाद सुनते हैं तो उनके चेहरे पर उदासी छा जाती है. विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला धीरे-धीरे अपने शबाब पर पहुंच रही है. अभी सोमवार को ही जनकपुर में चार बहुओं की विदाई हुई. आयोध्यावासी एक साथ चार बहुओं के आगमन की खुशियों में सराबोर थे. चारो भाइयों और बहुओं की आरती उतारी गई थी.

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आयोध्या के सिंहासन पर साक्षात भगवान श्रीराम विराजमान होनेवाले थे. लेकिन इसी बीच मंथरा और कैकेयी ने सबके सपनों पर बज्रपात कर दिया. इस लीला के समापन के बाद नेमी लीला प्रेमी भी भारी मन से लौटते नजर आये. करीब 25 सालों से लीला में शामिल हो रहे मुन्नु निषाद ने आज के कोपभवन की लीला पर प्रतिक्रिया दी. कहा-का करबा गुरू, होनी के के टाल सकेला, सब विधाता क खेल हौ. मंथरा और कैकेयी मिलके बनल-बनावल खेल बिगाड़ देहलीन. छोटा मिर्जापुर के नरायन ने तपाक से कहा-सब प्रभु क लीला हौ. का करबा भैया घर-घर मंथरा अऊर घरे-घरे कैकेयी बइठल हईन. कब कैकेयी क तिरिया चरित्र सामने आ जाई, अउर कब मंथरा घरे में आग लगा दी कोई नाही जानत. भगवान क लीला में बहुत ज्ञान छिपल हौ, लेवे के हौ त ला नही त जा मजा ला. उन्होंने एक शेर सुनाया-घर में आग लग गई, घर के चिराग से….

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