रामनगर की रामलीलाः जब सुननी पड़ी प्रभु को भी गारियां, राजा दशरथ ने दिया नेग

प्रभु खिचड़ी खाने बैठे तो रीता देवी ने किया मायका पक्ष का प्रतिनिधित्व

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विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के सातवें दिन सनातनियों के वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान बेहद महत्वपूर्ण रस्म खिचड़ की निभाई जाती है. यह रस्म बरात की विदाई के पहले होती है. ससुराल और मायके पक्ष के लोगों का एक तरह से मिलन भी हो जाता है. इस दौरान मायके पक्ष की महिलाएं दूल्हे समेत परिवार के सगे-सम्बंधियों को ‘गारी‘ देती है. मार्यादा और परम्परा का यह अनूठा संगम शहरों से तो लुप्त होता जा रहा है लेकिन आज भी गांवों में यह देखने को मिलता है.

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आज की युवा पीढ़ी शायद ही यह जानती हो कि वैवाहिक रस्मों की कड़ी में कभी एक जरुरी और महत्वपूर्ण कड़ी खिचड़ी खाने की रस्म है. इस रस्म में दूल्हा दुल्हन के सात फेरे लेने के अगले दिन दूल्हा सपरिवार दुल्हन के आंगन में खिचड़ी खाने बैठता है तो दुल्हन के मायके की महिलाएं जी भर के दूल्हे के पूरे परिवार को ‘गारियां‘ देती हैं.

पूरी शिद्दत से हुई रस्म की अदायगी, डोली में विदा हुईं बहुएं

दूल्हे का परिवार हंसी खुशी इसे सुनता भी है. बदले में नेग भी देता है. श्रीराम विवाह में भी इस रस्म की पूरी शिद्दत से अदायगी हुई. लोगों ने कहा खिचड़ी खाने बैठेंगे और गारी भी नही सुनेंगे, ऐसा कैसे होगा प्रभु ? मायके पक्ष जनकपुर की महिलाओं का प्रतिनिधित्व रीता देवी ने किया. जब प्रभु श्रीराम पिता दशरथ समेत मिथिला नरेश के आंगन में खिचड़ी खाने बैठे तो रीता ने ‘खा लो-खा लो खिचड़ी मेरे राम लला‘…..जैसे गीतों के जरिये उन्हें गारियों से नवाजा. हिन्दू परंपराओं के मुताबिक राजा दशरथ ने उन्हें नेग भी दिया. वहीं हिन्दू विवाहों से लुप्त हो चले डोली-कहांर कहीं दिखे न दिखे रामनगर की रामलीला में आज भी दिख जाते हैं. सीता समेत अन्य दुल्हनें जब जनकपुर से विदा होकर अयोध्या के लिए रवाना होती हैं तो डोली में ही विदा होती हैं. अयोध्या के मुख्य द्वार पर पालकी में श्रीराम सीता की आज होने वाली झांकी रामनगर के रामलीला की सर्वाधिक मनोरम झांकियों में से एक मानी जाती है. इसे देखने के लिए अयोध्या के इर्द गिर्द भारी भीड़ उपस्थित थी. इनमें महिलाओं की संख्या भी ज्यादा थी. क्योंकि रामनगर में लोग यह मानते हैं कि घर में बहू आई है. इसलिए महिलाएं उसे देखने आती हैं. बहू के ससुराल आने पर पूड़ी बखीर बनाये जाने की रस्म भी रामनगर के कई घरों में निभाई गई.

 

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