बाबा लाट भैरव ने अष्ट भैरव संग खिचड़ी खाई, आज पागफेरी की रस्म, माता भैरवी को लेने जाएंगे ससुराल

शादी के बाद की रस्में भी पूरे रीति- रिवाज के साथ की गई जिसमें बाबा लाट भैरव ने अष्ट भैरव संग खिचड़ी खाई.

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भगवान शंकर की प्रिय नगरी काशी में रुद्रावतार भैरव और स्कंदपुराण के काशी खण्ड में वर्णित बाबा श्री कपाल भैरव की शादी माता भैरवी संग बड़े ही धूमधाम के साथ की गई. शादी के बाद की रस्में भी पूरे रीति- रिवाज के साथ की गई जिसमें बाबा लाट भैरव ने अष्ट भैरव संग खिचड़ी खाई. इस रस्म में पूड़ी-सब्जी, खिचड़ी, खीर, चटनी आदि का भोग बाबा को चढ़ाया गया. जहां वैवाहिक समारोह के बाद खिचड़ी खवैया के दिन विग्रह पर विराजमान बाबा की शोभा देखते ही बन रही थी.

भैरवी कूप का भव्य श्रृंगार

बाबा श्री के सामने स्थित भैरवी कूप का भव्य श्रृंगार भी किया गया था. माता को पीले वस्त्र, लाल चुनरी से सजाया गया. वहीं इस दौरान मां अन्नपूर्णेश्वरी को याद करके भंडारे को भी शुरू किया गया. जहां देर रात तक मंदिर के चारों ओर भक्तों की लाइनें लगी रहीं.

श्रीरामचरित मानस का अखंड पाठ का आयोजन

भंडारे में भक्तों को काफी बड़ी संख्या में प्रसाद वितरित किया गया. वहीं भक्त लगातार मंदिर में दर्शन व पूजन भी कर रहे थे. इसके साथ ही धूप, दीप, पुष्प, कपूर, जल, चंवर आदि से बाबा की विधिवत आरती उतारी गई.

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अगले दिन यानी आज पागफेरी की रश्म निभाई जाएगी जिसमें नउआ पोखर में श्रीरामचरितमानस का अखंड पाठ किया जाएगा. साथ ही सहभोज का भी आयोजन किया जाएगा.

खिचड़ी खवाई और पगफेरे की रस्म

विवाह में जब फेरे हो जाते हैं, तो दुल्हन और दुल्हा के परिवार रिश्तेदार बन जाते हैं, इसलिए वे इसे साबित करने के लिए खिचड़ी खाते हैं. खिचड़ी रस्म में दुल्हन पक्ष की तरफ से खाने की तमाम चीजें परोसी जाती है. वहीं कहीं यह भी मान्यता है कि ये चीजें दूल्हा तब तक नहीं खाता, जब तक वह अपनी पसंद का तोहफा न ले ले.

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शादी के बाद दुल्हबन के मायके वालों की तरफ से पगफेरे की रस्म निभाई जाती है जिसमें दुल्हन को दो या तीन दिन अपने मायके में रहना पड़ता है. दुल्हन का भाई आम तौर पर उसे अपने घर वापस ले जाने के लिए आता है. जब समारोह समाप्त हो जाता है, तो दूल्हा अपनी पत्नी को लेने आता है और उसके माता-पिता से आशीर्वाद लेता है.

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