विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला का दूसरा दिन : प्रभु श्रीराम ने लिया अवतार, खुशी से झूमी अयोध्या नगरी
सच हुई आकाशवाणी, एक साथ चार बच्चों की महल में गूंजी किलकारी
यूनेस्को की सूची में धरोहर के रूप में दर्ज वाराणसी के रामनगर की रामलीला के दूसरे दिन नेमी लीला प्रेमियों के अलावा दूर-दराज से पहुंचे श्रद्धालुओं का हजूम उमड़ पड़ा था. ठेंठ बनारसी अंदाज और पारम्परिक पहनावे के साथ आन-बान और शान के साथ भक्ति के सागर हिलोरे ले रहा था. बिना माइक के होनेवाली यह लीला शुरू हुई तो वातावरण शांत हो चुका था. लीला इन प्रसंगों के साथ शुरू होती है-अयोध्या में सब कुछ था. धन, धान्य, ऐश्वर्य, समृद्धि सब कुछ. लेकिन फिर भी राजा अवसादग्रस्त थे. चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि थी लेकिन घर आंगन सूना था. इतना बड़ा महल बच्चों की किलकारी बिना सूना-सूना सा था. गुरु वशिष्ठ ने उपाय बताया और फिर क्या था. कल जो अकाशवाणी हुई थी उसे सच साबित होना था, सो हुआ. प्रभु ने खुद तो अवतार लिया ही साथ तीन अन्य भाइयों को भी साथ ले कर आये. जब चार बच्चों की किलकारियां किसी सूने घर आंगन में गूंजेगी तो खुशियों का सागर तो हिलोरे मरेगा ही. कुछ ऐसे ही प्रसंग शनिवार को रामलीला के दूसरे दिन बुधवार को मंचित किये गए. मंचन का केंद्र आज अयोध्या नगरी थी.
गुरु वशिष्ठ को राजा दशरथ सुनाया दुखड़ा, हुआ प्रत्रेष्ठि यज्ञ
अयोध्या के राजा दशरथ गुरु वशिष्ठ के पास पहुंचते हैं. उनसे अपने मन की व्यथा कहते हुए बिलख पड़ते हैं. कहते हैं कि उम्र का चौथा पन आ गया. लेकिन कोई संतान न होने से मन बड़ा व्यथित और उदास रहता है. तब वशिष्ठ उन्हें समझाते हुए कहते हैं कि पूर्व जन्म में तुम्हारा नाम मनु और कौशल्या का नाम सतरूपा था. तुम लोगों ने भगवन्त को अपना पुत्र होने का वर मांगा था. परमात्मा ने अपने अंशो समेत अवतार लेने का वर दिया है. धीरज रखो तुम्हे चार पुत्र होंगे. वशिष्ठ की सलाह पर राजा दशरथ पुत्रेष्टि यज्ञ करते हैं. अग्निदेव प्रकट हो उन्हें एक हव्य सौंप उसे तीनों रानियों को बांटने को कहते हैं. दशरथ वैसा ही करते हैं.
भगवान श्रीराम ने दिखाया विराट रूप
हव्य मिल जाने के बाद बाद विराट झांकी होती है. यानी भगवान श्रीराम ने अवतार लेते ही अपना विराट रूप दिखा दिया. देवतागण और कौशल्या उनकी स्तुति करती हैं. श्रीराम कहते हैं कि तुमने हमारे जैसा पुत्र मांगा था उसे सत्य करने के लिए हम आपके घर में प्रकट हुए हैं. कौशल्या उनसे यह रूप छोड़ बाल लीला करने का आग्रह करती हैं. श्रीराम बाल रूप धारण कर रोने लगते हैं. अयोध्या में खुशियां छा जाती है. लोग खुशी से झूम उठते हैं. बैंड बजाए जाते है. बधाई गीत गाये जाते हैं. राजा दशरथ ब्राह्मणों को दान देते हैं. गुरु वशिष्ठ चारों बच्चों का नामकरण श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के रूप में करते हैं. चारों बच्चों का यज्ञोपवीत संस्कार होता है. गुरुकुल में शिक्षा सम्पन्न होती है. श्रीराम एक हिरण का शिकार कर के राजा दशरथ को बताते हैं कि इसे मैंने मारा है. इसके बाद कौशल्या चारों भाइयों की आरती उतारती है. इसी के साथ दूसरे दिन की लीला को विश्राम दिया जाता है.
लीला अकेली महिला पात्र रीता देवी, गाती है सोहर और देती है गारी
विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला पुरूष प्रधान है. यहां हर भूमिका पुरुष ही निभाते हैं. चाहे वह राजा दशरथ की रानियों कौशल्या, कैकेई, सुमित्रा की भमिका हो, राजा जनक की पत्नी सुनयना की हो या फिर रावण की पत्नी मन्दोदरी की. या फिर बाली की पत्नी तारा की, ये सारी भूमिकाएं पुरूष ही निभाते हैं. सीता की भूमिका बच्चे निभाते हैं. पूरी रामलीला में रीता देवी ही एक मात्र महिला है जो रामलीला में कुछ भूमिकाओं में दिखती हैं. वे बुधवार को अयोध्या में श्रीराम जन्म के बाद सोहर गाती हैं तो श्रीराम विवाह के बाद जब खिचड़ी खाने बैठते हैं तो रीता ही गारी गाती हैं. सुपर्णखा नासिका छेदन में वह खूबसूरत सुपर्णखा की भूमिका निभाती हैं तो रावण के महल में भी नृत्यांगना की भूमिका में भी वही नजर आती है. इस रामलीला की खासियत है कि इसके अलावा कोई अन्य महिला पूरी रामलीला में कोई भूमिका नही निभाती. रीता के पहले ये सारी भूमिकाएं उनकी मां मुन्नी देवी निभाती थीं. उन्होंने दो दशक से भी ज्यादा समय तक रामलीला में काम किया. तीन साल पहले उनके निधन के बाद अब रीता उनकी भूमिका को आकार दे रहीं हैं. मुन्नी देवी से भी पहले रामनगर के रामपुर की रहने वाली उर्मिलाबाई यह भूमिका निभाती थीं. उधर बुधवार को श्रीराम जन्म की लीला में चार छोटे बच्चों ने भी श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुध्न की बाल भूमिका निभाई. इन बच्चों का प्रबंध रामलीला के व्यास करते हैं.
चारों भाइयों की हुई पहली बार आरती, अयोध्या मैदान में उमड़ी भीड़
रामनगर की रामलीला में श्रीराम जन्म की लीला के दिन पहली बार ऐसा होता है जब चारों भाइयों की आरती होती है. वैसे भी रामनगर की रामलीला में आरती को सबसे खास दर्जा प्राप्त है. अयोध्या में श्रीराम के साथ तीनों भाई भी जन्म लेते हैं. इसलिए चारों भाइयों श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुध्न की पहली आरती आज ही के दिन होती है. चारों भाइयों के जन्म से पहले विराट दर्शन की झांकी होती है. लिहाजा विराट झांकी और चारों भाइयों की पहली आरती लेने के लिए भारी भीड़ उमड़ी. अयोध्या मैदान पूरा भरा था तो सड़कों पर भी लोग डटे नजर आए.
पिता की विरासत संभालने पहुंचे पुत्र, नेमी लीला प्रेमियों की पांचवीं पीढ़ी हैं संजीव जौहरी
रामनगर की रामलीला में परंपराओं को सहेजने की पीढ़ी दर पीढ़ी प्रथा सी चलती आ रही है. मंचन में, पात्र परम्परा में साथ-साथ रामलीला प्रेमियों में भी. इस साल रामलीला के दो नियमित लीला नेमियों लखन लाल जौहरी और सुरेश मिश्रा का निधन हो गया था. दोनों कुछ न कुछ विशिष्ट वजहों से रामलीला की अलग ही पहचान बन गए थे. इस बार उनके न रहने पर उनके पुत्रों अरविंद कुमार मिश्रा और संजीव जौहरी ने उनकी विरासत संभाली और लीला में पहुंचे. हालांकि पूर्व में भी रामलीला में विभिन्न वजहों से जुड़े रहे हैं. अरुण मिश्रा ने कहा राम व्यक्ति को नहीं वृत्ति को प्राप्त संज्ञा है. रामलीला मात्र राम को नहीं रामत्व को प्राप्त करने का उपागम है. सहज भाव से राम तत्व को पीढ़ियों से प्राप्त करना पूर्वजों के पुण्य कर्मों का प्रतिफल है. रामचरित मानस ही हमें सिखाता है कि पिता के संकल्प और प्रतिज्ञा को स्वप्रेरणा से ही समझ लेना और आज्ञा को आत्मसात कर लेना चाहिए. परम्परा और अनुशासन को अंगीकार कर लेना ही इस लीला का भाव और हमारा भी भाव है. वहीं, संजीव जौहरी ने कहा कि लगभग दो सौ साल से चली आ रही इस नेमी परम्परा का मैं पांचवी पीढ़ी का प्रतिनिधि हूं. पिता लखन लाल जौहरी के साथ मैं लगभग दस साल से लगातार आ रहा था. इस वर्ष उनकी भौतिक उपस्थिति के बिना इस परम्परा का निर्वहन परिवार का गुरुतर दायित्व है. छोटे भाई विशाल जौहरी के साथ यह क्रम चलता रहेगा. श्रीराम जी का आशीर्वाद माह भर मिलना साल भर का ऊर्जा स्त्रोत है.
कोपभवन और सीताहरण की लीला नहीं देखते महाराज
रामलीला में राजसी परंपराओं का पूरा ख्याल रखा जाता है. परंपरा के अनुसार काशिराज कैकेयी कोपभवन और सीताहरण की लीलाएं नहीं देखते. ऐसी मान्यता है कि एक राजा दूसरे राजा का दुःख नहीं देख सकता. उसी तरह श्रीराम राज्याभिषेक के दिन काशिराज पैदल चलकर लीला स्थर पर पहुंचते हैं और श्रीराम को राजतिलक लगाते हैं. क्योकि कोई राजा ही किसी होने वालो राजा का राजतिलक कर सकता है.
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