रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला कल से, पहले दिन रावण का होगा जन्म

वाराणसी के रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला की शुरूआत 17 सितंबर यानी कल से होनी है.

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सैकड़ों वर्ष पुरानी वाराणसी के रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला की शुरूआत 17 सितंबर यानी कल से होनी है. लीला प्रेमियों के मुताबिक पहले दिन रावण का जन्म होगा. उसी दिन रावण के दिग्विजय, क्षीरसागर की झांकी, देव स्तुति के प्रसंग का मंचन होगा. इसके बाद श्रीहरि विष्णु देवताओं को वचन देंगे कि अत्याचारी रावण के अंत के लिए स्वयं अवतरित होंगे. रामनगर किला प्रशासन की ओर से रामलीला की तैयारी लगभग एक माह पहले से ही की जा रही है.

वाराणसी नगर निगम और जिला प्रशासन भी साफ-सफाई, पेयजल समेत अन्य इंतजामों को दुरूस्त कराने में जुटा है, ताकि लीला प्रेमियों को किसी प्रकार की दिक्कत का सामना न करना पड़े. काशीराज परिवार की ओर से आयोजित होने वाली रामलीला बिना किसी तामझाम, सजावट और लाइटिंग के होती है. इसका क्रेज अब भी लोगों में बरकरार है. सादगीपूर्ण तरीके से इसका मंचन ही इसके आकर्षण का मुख्य कारण है. इसलिए रामलीला देखने के लिए हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है. ऐसे में रामनगर किला प्रशासन एक माह पहले से ही तैयारी में जुटा था.

रामनगर केेेेेेे रामलीला की औपचारिकताएं पूरी

पंच स्वरूपों का चयन, उनका संवाद प्रशिक्षण, गणेश पूजन समेत अन्य औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं. मंगलवार की शाम रामलीला का मंचन शुरू होगा. रामनगर की रामलीला का मंचन यथारूप विभिन्न शोधित स्थलों पर लगभग 10 वर्ग किलोमीटर की परिधि में किया जाता है. प्रसंगानुसार अयोध्या ,जनकपुर ,पंचवटी ,लंका चित्रकूट ,निषादराज आश्रम, अशोक वाटिका ,रामबाग, पंपासर इत्यादि सभी स्थल निर्धारित किए गए हैं.

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यूनेस्को के विश्व धरोहरों में है शामिल

पौराणिक आख्यानों के अनुसार जब महर्षि वेदव्यास काशी में आतिथ्य की उपेक्षा से रुष्ट होकर गंगा के पूर्वी तट पर लोलार्क के आग्नेय कोण में स्थित तपोवन में नई काशी बनाने को उद्यत हुए तब शिवजी ने विनती कर उन्हें रोका तथा आदर के साथ काशीवास की अनुमति प्रदान की.

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तब से यह स्थान व्यासकाशी नाम से प्रतिष्ठित हुआ तथा कालांतर में रामनगर नाम से जाना गया. आजादी से पूर्व 200 वर्षों तक रामनगर काशी की राजधानी रही. काशीराज के संरक्षण, भक्त रूपी जनता और आयोजकों के समर्पण से शुरू की गई रामलीला धीरे – धीरे विश्वप्रसिद्धि के स्वर्णिम सोपान चढ़ती गई और आज यूनेस्को के विश्व धरोहरों की सूची में शामिल होने का भी गौरव प्राप्त कर चुकी है.

उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ से हुई शुरूआत

रामलीला और रामनगर इस तरह से एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं कि अक्सर ही लोग “रामलीला मंचन की वजह से इस नगर का नाम रामनगर पड़ा होगा ” ऐसा माना गया है. आश्चर्यजनक रूप से यह साम्य भवितव्यता का ईश्वरीय विधान ही प्रतीत होता है. यद्यपि कि इस रामलीला की शुरुआत को लेकर तमाम दंतकथाएं व किंवदंतियां विद्यमान हैं, तथापि निर्विवाद रूप से रामनगर की रामलीला काशिराज उदित नारायण सिंह के शासनकाल में प्रारम्भ हुई.

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महाराज उदित नारायण सिंह का शासन काल 1796 से 1835 ईस्वी तक था. इस तरह से रामलीला की शुरुआत उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ से मानी जा सकती है.रामलीला के शुरुआत की कहानी का सच छोटा मिर्जापुर स्थित भोनू और बिट्ठल साव की रामलीला देखने में हुई देरी से उपजा हो अथवा राजकुमार की बिमारी का कारण हो यह कदापि उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितने कि इसकी विश्वप्रसिद्धि तथा अथाह श्रद्धा व समर्पण के कारण – तत्व हैं.

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महाराज उदित नारायण सिंह तथा इनके उत्तराधिकारी ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह दोनों ही धर्मपरायण तथा साहित्य – संस्कृति के अनुरागी थे. महाराज ईश्वरी नारायण सिंह के समय में रामलीला में प्रयुक्त संवादों, रामलीला स्थलों तथा मंचन को केंद्र में रखकर अद्वितीय ढंग से शोधन कार्य किया गया.

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