रहने को घर नहीं फिर भी उनके लिए “अपना घर” है ठिकाना

काशी की सड़कों पर दर दर की ठोकरें खाने वाले और भटकने वाले असहाय अब काशी में प्रभुजी बन गए हैं.

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काशी की सड़कों पर वैसे तो लोग घूमते नजर आ जाते हैं परंतु यहां पर गरीब और असहाय भी इधर-उधर भटकते हुए मिल जाएंगे. काशी की ऐसी महिमा है कि लोग मां अन्नपूर्णा और बाबा विश्वनाथ की नगरी में बिना भोजन के नहीं सो सकते. यहां पर एक से बढ़कर एक धर्मात्मा लोग हैं जो गरीब असहाय लोगों को निशुल्क भोजन और रहने के लिए घर उपलब्ध कराते हैं. इसीलिए लोग काशी को तीनों लोकों से न्या री कहते हैं. काशी की सड़कों पर दर दर की ठोकरें खाने वाले और भटकने वाले असहाय अब काशी में प्रभुजी बन गए हैं. प्रभुजन बनने के साथ ही वे लोग बाकायदा आत्मनिर्भर बनने का गुण सीख रहे हैं. यही नहीं इस नए हुनर के जरिए वह अपना जीविकोपार्जन भी कर रहे हैं. जी हां सही सुना आपने धर्मनगरी काशी यानी बनारस में अलग-अलग चौराहे पर जो मांग कर अपना जीवनयापन करते थे, अब वही सम्मान पाने के साथ ही हुनर के जरिए अपनी नई पहचान बना रहे हैं. जिनमें उनके साथ काशी के डॉक्टर निरंजन दे रहे हैं जिससे लोग आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बन रहे हैं. बता दें कि, डॉक्टर निरंजन सामने घाट क्षेत्र में अपना घर नाम की संस्था का संचालन करते हैं. जहां पर हजारों की संख्या में सड़क किनारे घूमने व भिक्षा मांगने वाले बेसहारा को शरण दी जाती है. इसके साथ ही सड़कों पर गरीब असहाय और रोग से ग्रसित होते हैं. उनको वाहन द्वारा अपना घर आश्रम लाकर उनका समुचित इलाज किया जाता है. इसके साथ ही उन्हें आश्रम में ही निशुल्क भोजन दिया जाता है.

खानपान और चिकित्सा संग हूनर का ज्ञान

सिर्फ इतना ही नहीं उन्हें आश्रम में लाने के बाद नहलाना धुलाना साफ सफाई एवं कपड़े भी उपलब्ध कराए जाते हैं. उन्हें सामान्य जीवन जीना सिखाया जाता है. इसी के तहत अब इन असहायों को प्रभुजी बनाकर के बकायदा स्वावलंबी बनाया जा रहा है. यहां अगरबत्ती बनाना, साबुन बनाना, दोना पत्तल व अन्य सामानों को बनाना सीख रहे हैं.

खास बात यह है कि इसमें महिला व पुरुष दोनों शामिल हैं. इस आश्रम में आए लोगों को रहने के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं रहती हैं. इनमें पुरुषों के लिए अलग और महिलाओं के लिए अलग रूम बना रहता है. जहां पर इनके दैनिक जीवन की समस्त चीज उपलब्ध रहती है.

जिनका कोई नहीं उनको बनाया जा रहा है आत्मनिर्भर

अपना घर आश्रम के संचालक डॉक्टर निरंजन ने जर्नलिस्टउ कफे से रूबरू के दौरान बताया कि, हम सड़क पर घूमने वाले बेसहारा भिक्षा मांगने वाले लोगों का रेस्क्यू कर वाहन द्वारा आश्रम में लाते है, उनके रहने खाने सभी तरीके की व्यवस्था की जाती है. आश्रम में आने के बाद हम उनका नाम प्रभु जी रखते हैं. यहां आने पर सबसे पहले उनका इलाज किया जाता है.

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स्वस्थ होने के बाद यदि वह लोग अपने घर का पता बता देते हैं तो उन्हें अपने घर भेज दिया जाता है, यदि नहीं बताते और नहीं जाना चाहते तो उन्हें यहीं रखा जाता है और उनके जीवन को बेहतर करने के लिए उनके कौशल विकास को बेहतर करने का प्रयास किया जाता है. इसके तहत ये लोग अगरबत्तियां साबुन, दोना पत्तल बनाने का काम, करते हैं और यह सभी बेहद बेहतरीन क्वालिटी के होते हैं. जिन्हें बाजारों में भेजा जाता है.

उन्होंने बताया कि, अगरबत्तियों में चार तरीके की अगरबत्ती बनाई जाती है जो की फुल व लकड़ी के जरिए तैयार की जाती है.इसमें रोज, बेलपत्र, सैंडल, केवड़ा शामिल है. इसके साथ ही जो साबुन बनाए जाते हैं वह भी पूरी तरीके से प्राकृतिक होते हैं. इनमें ग्लिसरीन का बेस होता है उसमें हल्दी, नीम, गुलाब शामिल होता है. साथ ही घरों से हम लोग निष्प्रयोग अखबारों को लेकर के महिला प्रभु जी के जरिए पैकेट बनवाकर इनको दावों की दुकानों पर वितरित किया जाता है.हर दिन दोपहर 12 से 4 भी तक सभी लोग इस काम में लगे रहते हैं. आगे वो बताते हैं, हमारा उद्देश्य है कि कल को यदि ये लोग अपने घर जाते हैं या अलग से अपना जीवन यापन करना चाहते हैं तो उनके पास हुनर हो जिसके जरिए यह अपने जीवन और अपने परिवार को बेहतर बना सके.

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उन्होंने बताया कि,इनके द्वारा बनाए गए सभी सामानों में भिखारी मुक्त शहर का संदेश भी दिया जाता है और हमारे लोगों से अपील रहती है कि यदि आपको भिखारी दिखे तो आप उसे भीख देने के बजाय उसे पके हुए भजन दे. क्योंकि यदि हम भीख देना बंद कर देंगे तो धीरे-धीरे भिखारी समाप्त हो जाएंगे. और ज्यादा से ज्यादा लोग स्वावलंबी बनेंगे.

अब तक 1700 से ज्यादा लोगों का किया है रेस्क्यू

संस्था के संस्थापक डॉ निरंजन ने बताया कि यहां साबुन और सामान को हम बेचते नहीं हैं बल्कि सहयोग के लिए अधिकतम 30 और 25 रुपए में इसे सहायता के लिए लोगों को दिया जाता है, जिसकी बाकायदा दान की रसीद बनाई जाती है. हमारे यहां 1700 से ज्यादा प्रभु जी हैं, जिनमें पुरुष महिलाएं शामिल है. 700 से ज्यादा लोगों को रेस्क्यू कर हम घरों तक पहुंचा चुके हैं.

आश्रम में रहकर आत्मनिर्भर बनने वाले प्रभु जी बताते हैं कि, अब उनका जीवन पहले से बेहतर है.पहले वह ट्रेन में सड़कों पर घूम करके भीख मांगते थे और इधर-उधर अपना गुजारा कर लेते थे.

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लेकिन आश्रम में आने के बाद अब वह आत्मनिर्भर बन रहे हैं और बाकायदा नया हुनर सीख रहे हैं जिससे उनका काम में मन भी लगा रहता है और वह स्वस्थ हो रहे हैं.

इसके साथ ही डॉक्टर निरंजन आश्रम में आने वाले लोगों के घरों से संपर्क करते हैं और उनसे बातचीत कर उन्हें उनके परिजनों को सौप देते हैं.

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