बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध में भारत का योगदान बांग्लादेश के लिए बना काला सच

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बांग्लादेश में हुए सरकारी तख्तापलट से कैसे कोलकाता की मार्केट और वहाँ पर रहने वाले लोगों पर आसर पड़ा है इसके बारे में जानने के लिए Journalist Cafe की टीम ने कोलकाता प्रेस क्लब के अध्यक्ष स्नेहआशीष सुर से बात की…

बांग्लादेश में हुए सरकारी तख्तापलट से कैसे कोलकाता के मार्केट में असर पड़ा है?

बांग्लादेश में जो हुआ है वह बांग्लादेश का निजी मामला है लेकिन आपको यह भी सोचना होगा कि, भारत का बांग्लादेश के साथ करीब 4000 किलोमीटर की सीमा है. जिसमें पश्चिम बंगाल की सीमा बहुत ज्यादा है और इतिहास उठाकर देखिए कि बंगाल में जो बंगाली लोग है और बांग्लादेश में जो लोग है वो भी बंगाली है उनके रिति – रिवाज, परंपराएं करीबन एक ही है. यह हम सभी  जानते है कि, धर्म के नाम पर देश का बटवारा हुआ था लेकिन बांग्लादेश में भी सभी धर्म के लोग है और कुछ संख्या है जो अल्पसंख्यक है लेकिन बहुत ज्यादा नहीं है तो ये जो राजनैतिक स्थित हुई वो क्यों हुई, लोग सत्ता के खिलाफ क्यों हुए और सरकार बदल गयी यह सब एक अलग चीज है. लेकिन उसके बाद जो स्थित आयी है कि, कौन सा कानून कब लागू होगा ?

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बांग्लादेश से लोग काफी बड़ी संख्या में भारत आते है इसकी कई वजह है, जिसमें से एक है इलाज.  बंगाल के अस्पतालों में बांग्लादेशी लोग छाए रहते है. उनके अलग काउंटर होते है, अलग बंदोबस्त होते है. यह सब एजेंट्स द्वारा तय किया जाता है, इन अस्पतालों के एजेंट इन मरीजों को बांग्लादेश से भारत भेजते है और सबकुछ तय रहता है. वही दूसरी वजह बड़े त्योहार जैसे ईद, क्रिसमस आदि में लोग शॉपिंग के लिए बांग्लादेश से भारत आते है. जिसमें बंगाल के न्यू मार्केट इलाके के होटल में ज्यादातर बांग्लादेशी लोग ठहरते है और जो बांग्लादेश की जो बस जाती है वह भी इसी इलाके से होकर जाती है और आपको पता होगा कि, ढाका, कुर्लना के साथ बंगाल के ट्रेन कनेक्शन है, जिसकी वजह से कई सारे लोग आते है. लेकिन वीजा बांग्लादेश मिशन है वह एक तरह से बंद हो गया है जिसका भारत पर काफी असर हुआ है और इसका सबसे ज्यादा असर मार्केट पर पड़ा है क्योंकि बांग्लादेश के लोग बड़ी संख्या में लोग शॉपिंग करते है.

बांग्लादेश की आज़ादी में भारत का बड़ा योगदान था, लेकिन आज बांग्लादेश में रहने वाले लोगों के भारत के योगदान को बड़ी निम्न नज़रों से देखते है. आखिर ऐसा क्यूँ?

यह एक ऐतिहासिक बात है जो बांग्लादेश की लड़ाई जिसको वो लोग मुक्ति युद्ध भी कहते है, उसमे भारत का बड़े पैमाने का योगदान रहा था. सिर्फ दिसंबर महीने में जो फौजी कार्रवाई हुई थी उसको छोड़कर लेकिन उस समय के तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी दुनिया भर में गए और बांग्लादेश के लोगों पर जो हिंसा और हमला फौजियों द्वारा कराए जा रहे थे, जो मानवाधिकार उल्लंघन के काम हो रहे थे. उसके सारी दुनिया को उन्होने बताया और समझाया. साथ ही जितने देश का हो सका उनका समर्थन बांग्लादेश के लिए जुटाने का काम किया. इसके बाद करीब एक करोड़ शरणार्थी भारत आ गए और वे यहां रहे, उसके बाद जो मुक्ति योद्धा थे उनको ट्रेनिंग दी गयी औऱ उसके बाद भारतीय जवान लोग बांग्लादेश गए औऱ पाकिस्तानी फौजियों के खिलाफ युद्ध किया. आपको याद होगा कि, जब हमारे भूतपूर्व पीएम अटल बिहार बाजपेई संसद में बोले थे कि, ”मुक्ति योद्धा के खून और भारतीय सेना का खून मिलकर ….. से लेकर सागर तक पहुंच गया है.” यही संबंध बहुत अच्छा था. साथ ही बांग्लादेश के लोग उसकी आजादी के लिए भारतीय लोगों के बहुत अभारी भी थे. लेकिन यह बात भी सोचनी होगी की उस समय भी कुछ लोग थे जो बांग्लादेश के लोग उसकी आजादी नहीं चाहते थे, वे चाहते थे कि, बांग्लादेश पाकिस्तान का एक अंग राज्य बनकर उसके आधीन होकर एक सेकेंड कैटेगरी का सिटीजन बनकर रहे. बांग्लादेश की आजादी के खिलाफ बांग्लादेश के कुछ अपने ही लोग थे. जिसकी वह से वो लोग उस समय से लेकर भारत के विरूप प्रचार करते थे और हर समय भारत के साजिश चलती है कि,भारत बिग ब्रदर व्यवहार करता है , ये नही करते वो नहीं करते जैसे आरोप लगाते रहे है.

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लेकिन भूतपूर्व सरकार के समय यह इतना चलता नहीं था क्योंकि, आप जानते है कि, उस समय सरकार मुक्ति युद्ध के अनुसार ही थे. बंग बंधु जी की बेटी शेख हसीना तो उसी के लिए भारत के अच्छे सबंध थे, क्योकि वे व्यक्तिगत तौर पर भारत के काफी अभारी थे. क्योकि, जब बंग बंधु की हत्या हुई तो, अगस्त 1975 में तब उनको भारत ने शरण दी थी. यही वजह थी वो भारत काफी अभारी थे और वह दौरा भारत और बांग्लादेश की मित्रता का स्वर्ण युग भी कहा जाता है. हमारे पीएम मोदी ने एक भाषण में कहा था कि, ”इन दोनों देशों के बीच के संबंध का स्वर्ण युग चल रहा है.” लेकिन बाद में जो हुआ है वह उस समय के खिलाफ हुआ है आज कल जो है सत्ता में है और शेख हसीना को जो सत्ता से हटाया गया है तो, भारत विरोधी मनुभाव अधिक ही है. लेकिन एक चीज है दो पड़ोसी देश है और इन दो पड़ोसी देशों के संबंध सही होने ही चाहिए क्योंकि ये दो देशों की जरूरत है औऱ दूसरी बात है कि, जो ट्रेड और कॉमर्स है उसमें हम लोग लगे हुए है, साथ ही दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में शांति रखने के लिए दोनो देशों को शांति से एक जुट होना होगा और मेरे अनुसार एक समय के बाद उग्रों भारत विरोधिता मनोभाव जो है काम करते हुए ट्रेड और कॉमर्स में योगदान को देखते हुए यह कम होना चाहिए.

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