वाराणसी: षष्ठी तिथि पर ललिता घाट पर भगवान स्कन्द के विग्रह की हुई आराधना
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास की ओर से धाम में कराये गये विशिष्ट अनुष्ठान
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास की ओर से भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानि रविवार को काशी विश्वनाथ धाम में विशिष्ट पूजन अनुष्ठान संपन्न किए गए. षष्ठी तिथि सनातन पौराणिक परंपरा के अनुसार एक महत्वपूर्ण तिथि है. भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) की तारकासुर पर विजय की एवम् द्वापर युग में श्री हरि कृष्ण के बड़े भाई शेषावतार भगवान बलभद्र (बलदेव जी) के प्राकट्य की तिथि के रूप में मनाया जाता है. शैव मत में स्कन्द छठी और ब्रज में बलभद्र छठी के रूप में यह सनातन तिथि उत्सव पूर्वक अनुष्ठान के साथ मनाई जाती है. आज ही के दिन माता ललिता षष्ठी भी मनाई जाती है.
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शेषनाग की आराधना के साथ मनाया गया बलभद्र प्राकट्य उत्सव
इस अवसर पर ललिता घाट स्थित भगवान स्कन्द के विग्रह पर आराधना की गई. साथ ही भगवान शेषनाग की आराधना के द्वारा बलभद्र प्राकट्य उत्सव भी मनाया गया. भगवान शेषनाग कैलाश पर्वत पर छत्र फैला कर महादेव की निरंतर सेवा करते हैं. कैलाश के निकट स्थित शेषनाग झील पौराणिक मान्यता के अनुसार शेषनाग का मूल स्थान है. वहीं भगवान स्कन्द स्वयं महादेव से उत्पन्न हैं. भगवान स्कंद समस्त सात्विक शक्तियों के प्रधान योद्धा देव सेनापति के रूप में भी पूजे जाते हैं. प्रतिदिन श्रीविश्वेश्वर की आरती, श्रृंगार में भगवान शेषनाग के रजत छत्र से महादेव के साथ शेषनाग की उपस्थिति श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शायी जाती है. भगवान शेषनाग ने ही त्रेतायुग में भगवान राम के अनुज लक्ष्मणजी के रूप में अवतार लिया था. श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास की ओर से समस्त सनातन बांधवों एवम् भगिनियों को इन तीनों पर्वों की अशेष शुभकामनाएं दी गईं. भगवान स्कंद की आराधना से सर्वविजय एवम भगवान शेषनाग की आराधना से श्री हरि विष्णु और महादेव दोनों की कृपा प्राप्त होती है. वहीं ललिता छठी की आराध्य मां ललिता की आराधना त्रिपुरसुंदरी स्वरूप में शाक्त तंत्र मार्ग की सर्वाेच्च साधना है.
भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर राक्षस का वध किया था
भाद्रपद शुक्लपक्ष स्मृतिकौस्तुभ के अनुसार चम्पाषष्ठीव्रत और व्रतराज के अनुसार ललिताषष्ठी का व्रत करना चाहिए. भगवान मुरुगन के भक्तों के लिए स्कंद षष्ठी का बहुत महत्व है. यह उस दिन की याद दिलाता है जब भगवान मुरुगन ने राक्षस सुरपदमन को हराया था, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर राक्षस का वध किया था. इसलिए कार्तिकेयजी के विजय के उपलक्ष्य में स्कंद षष्ठी मनाई जाती है. स्वामी स्कंद के विग्रह दर्शन से मनुष्य को कुमार शरीर की कांति प्राप्त होती है और स्कंदलोक में पुण्यवास का फल व मृत्युलोक से मुक्ति का लाभ मिलता है. इस उत्सव आयोजन में श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में ललिता घाट स्थित स्कंद भगवान के विशाल विग्रह पर समारोह पूर्वक पूजन संपन्न कर भगवान शेषनाग की शोभायात्रा मंत्रोच्चार एवम शंखनाद के साथ निकाली गई. पूजन एवं शोभायात्रा में न्यास के अर्चक, शास्त्री गण, न्यास के अधिकारी, कार्मिक सहित श्रद्धालु सम्मिलित हुए.