बगावत, राष्ट्रीयता और जंग बनी गणेश उत्सव की वजह, ये है इसकी उत्पत्ति की पूरी कहानी ?
दस दिवसीय गणेश उत्सव की आज से शुरूआत हो रही है, मुख्यतः यह पर्व महाराष्ट्र में मनाया जाता था, लेकिन उसके बाद में हिन्दी सिनेमा और पत्रकारिता के माध्यम से समय के साथ यह पूरे देश में मनाया जाने लगा. लेकिन क्या आपको गणेश उत्सव की कहानी के बारे में पता है, आपको पता है कि, देश की आजादी में जितना सहयोग क्रांतिकारियों का रहा है, उतना ही सहयोग गणेश उत्सव का भी रहा है और इसे आजादी के लिए ही शुरू भी किया गया था. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं गणेश उत्सव की उत्पत्ति और आजादी से कनेक्शन के बारे में….
गणेश उत्सव ने जाग्रत की आजादी की ज्योति
साल 1857 की क्रांति में भारतीयों को मिली हार के बाद यह दूसरा मौका था जब भारतीय एक बार फिर से अंग्रेजी शासन के खिलाफ कूच करने के लिए खड़े हुए थे, इस दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस जंग का मोर्चा संभाला था और देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने व समाज को एक जुट करने के लिए वे कई तरीको पर विचार कर रहे थे, जिसमें से एक विचार गणेश उत्सव का भी था.
जिसमें गणेश चतुर्थी पर गणेश पूजन में घर की चार दीवारी से गणपति की मूर्ति निकालकर इस पर्व को सार्वजनिक उत्सव का रूप देना था. इसके लिए उन्होने शौर्य – साहस के नायक छत्रपति शिवा जी का चुनाव किया और उत्सव को आयोजित करके उन्होने युवाओं को संगठित करना और उन्हें स्वतंत्रता के संघर्ष के लिए प्रेरित करने का काम किया और तिलक जी ने इस उत्सव का प्रारंभ तब किया था जब अंग्रेजी हुकूमत ने इस तरह के सार्वजनिक कार्यक्रमों पर रोक लगा रखी थी.
यह देखने में बेशक एक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम की तरह था, लेकिन इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाकर उसे भारत से उखाड़ फेकना था औऱ तिलक की यह तरकीब काम भी आयी थी. इस खतरे को अंग्रेजों ने बखूबी पहचान लिया था और दमन चक्र चला दिया था. जिसकी वजह से तिलक को जेल भी जाना पड़ा था, लेकिन स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है का नारा देने वाले तिलक इससे तनिक भी नहीं घबराए और हर कीमत पर इस प्रयास में लगे रहे.
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पहली बार कब मनाया गया था गणेश उत्सव ?
20 अक्टूबर 1893 को पहली बार पुणे के अपने आवास स्थल केसरीबाडा में तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेश उत्सव का कार्यक्रम आयोजित किया था, यह कार्यक्रम अंग्रेजी हुकूमत के रोक लगाने के बाद भी दस दिनों तक चलता रहा था. वही इतिहासकार बताते हैं कि, बाल्यकाल में शिवाजी महाराज की मां ने ग्रामदेवता कसबा गणपति की स्थापना की थी, जिसके बाद पेशवाओं ने इस परंपरा का पीढी दर पीढी बढाया, लेकिन तिलक जी का गणेश उत्सव का आयोजन सिर्फ धार्मिक कर्मकांडो तक सीमित नहीं था, उन्होने गजानन को राष्ट्रीय एकता का प्रतीक के तौर पर स्थापित किया और सामाजिक कुरीतियों, छुआछूत को दूर करने के प्रभावी संदेश के साथ इस नए गणेश उत्सव की शुरूआत की थी, इन कार्यक्रमों का मूल उद्देश्य सामाजिक एकता और देशभक्ति थी.
धार्मिक अनुष्ठान के बहाने अंग्रेजी शासन की हिला दी नींव
महाराष्ट्र में शुरू हुआ गणेश उत्सव काफी तेजी से देश के अन्य हिस्सो तक भी पहुंचने लगा था, सक्रिय तौर पर देश के की स्थानों पर इस उत्सव से जुड़ने वाले लोगों में इजाफा होने लगा, प्रत्यक्ष रूप से गणेश उत्सव को लक्ष्य आराध्य का पूजन दिखाया जाता था, लेकिन इसके अंतर्गत लोगों को देशभक्ति के गीत गाती भ्रमण करते थे, लोगों को पर्चा बांटा करते थे और अंग्रेजी शासन के खिलाफ लोगों को संगटित करने का प्रयास करते थे.
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साथ ही आपसी मतभेदों को दूर करने और निहित स्वार्थों को त्यागने का संदेश दिया जाता था. ऐसे आयोजनों को सार्वजनिक तौर पर प्रशासन की अनुमति नहीं थी. धार्मिक पूजन—अर्चन के उत्सव के नाम पर सरकार के खिलाफ बनाया गया वातावरण अंग्रेजों को चिंतित कर रहा था, जिसकी चिंता उन्होने जाहिर भी की थी. इसका खुलासा खुफिया रिपोर्ट के माध्यम से किया गया था. इसके चलते कई बार अंग्रेजों ने इस आयोजन के मूल तिलक को बार-बार लक्षित किया.
लेकिन वे अपने उद्देश्य और प्रयासों पर निरंतर अडे रहे और उसका ही नतीजा है कि, यह तस्वीर बदली और आज देश में आजादी से यह उत्सव काफी हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है और इस एकता, प्यार के साथ हमेशा मनाया जाता रहेगा.