वाराणसी: पांच सितंबर को ही क्यों मनाते हैं शिक्षक दिवस, बीएचयू से क्या है नाता
वाराणसी: काशी हिदू विश्वविद्यालय का पूरे विश्व में नाम है. इस विश्वविद्यालय का नाता शिक्षक दिवस से भी है. ऐसा इसलिए क्योंकि जिसके जन्म दिवस पर इसका आयोजन होता है उनका जुडाव यहीं से था. यूं तो दुनियाभर में 5 अक्टूबर को टीचर्स डे मनाया जाता है लेकिन भारत में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के मौके पर इसको मनाया जाता है. बीएचयू में अनेकों महान पुरुषों ने अपना योगदान दिया है. महात्मा गांधी, लाल बहादुर, शास्त्री, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, के एन उडप्पा, महाराज काशी नरेश सहित अनेकों ऐसे महान पुरुष हैं जिनका बीएचयू और पंडित मदन मोहन मालवीय से गहरा नाता रहा है.
विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के दूसरे राष्ट्रपति बने थे. यह उपलब्धि विश्वविद्यालय की गरिमा को और भी बढ़ा देती है. बीएचयू की स्थापना और संचालन के दायित्व के साथ पंडित मदन मोहन मालवीय के स्वास्थ्य कारणों के चलते डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने बतौर कुलपति का पद 1939 से लेकर 1948 तक संभाला था. इसके बाद उन्होंने अपनी जयंती पर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने को कहा था. तब से आज तक पूर्व राष्ट्रपति के जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.
इस अवसर पर बीएचयू में विभिन्न प्रकार की आयोजन कराए जाते हैं. जिसमें छात्र अपने पूर्व कुलपति को याद कर उनके योगदान के बारे में एक दूसरे को जानकारी देते हैं. इसके साथ ही विश्वविद्यालय द्वारा छात्र-छात्राओं को उनके योगदान के बारे में बताया जाता है. विश्वविद्यालय के मालवीय भवन, भारत कला भवन में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बहुत सी स्मृतियां रखी हुई हैं. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को लेकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रवीण राणा डिपार्मेंट आफ टूरिज्म बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से खास बातचीत के दौरान उन्होंने विस्तार से जानकारी दी……
महामना के आग्रह के बाद बने कुलपति
महामना ने अपने गिरते स्वास्थ्य के साथ ही विश्वविद्यालय को संभालने के लिए एक ऐसे व्यक्ति को चुना जो बाद में जाकर देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति बने. विश्वविद्यालय की स्थापना के समय से महामना ने बतौर कुलपति निःस्वार्थ भाव से इस कार्य को किया. महामना जब अस्वस्थ हो रहे थे. ऐसे में सबसे बड़ा उनके लिए यह कार्य था कि उनके बाद कौन विश्वविद्यालय का कुलपति होगा. ऐसे में उन्होंने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को पत्र लिखा था. साथ ही विश्वविद्यालय के कुलपति का पदभार ग्रहण करने के लिए कहा, लेकिन सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने मना कर दिया था. दूसरी बार जब फिर महामना ने आग्रह किया तो वह खुद को रोक नहीं पाए. इसके बाद उन्होंने बीएचयू में 9 साल तक अपनी सेवा दी.
बीएचयू के कुलपति पद पर रहते हुए नहीं लिए थे वेतन
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1939 से लेकर 1948 तक लगातार 9 वर्षों तक विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. इस दौरान उन्होंने 1942 के दौर में स्वतंत्रता आंदोलन में भी विश्वविद्यालय में एक प्रहरी के रूप में रक्षा की. इसके साथ ही उन्होंने बतौर कुलपति पद पर वेतन लेने से इनकार कर दिया था. इस वेतन को उन्होंने विश्वविद्यालय की प्रगति के निर्माण में दे दिया था
स्वतंत्रता सेनानियों के साथ थे सर्वपल्ली राधाकृष्णन
प्रोफेसर ने बताया जब वे विश्वविद्यालय के कुलपति थे. उस समय स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था. ऐसे में उन्हें पता चला कि छात्रों को पकड़ने के लिए ब्रिटिश पुलिस विश्वविद्यालय में प्रवेश करने जा रही है. इस दौरान छात्रों के गार्जियन के रूप में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन छात्रों और कर्मचारियों के साथ ही अंग्रेजों को रोकने के लिए सबसे आगे खड़े हो गए. राष्ट्र के नाम उन्होंने संदेश दिया कि वह देश के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले. उन्होंने बताया कि इस दौरान अंग्रेजों को वापस लौटना पड़ा.
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कुलपति का कार्यभार संभालने का फोटो है संरक्षित
उन्होंने बताया कि आज भी भारत रत्न डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बहुत सी स्मृतियों को विश्वविद्यालय में संजोकर रखा गया है. विश्वविद्यालय में उनके द्वारा लिखे हुए बहुत से पत्र हैं. कुलपति का दायित्व ग्रहण करते हुए ली गईं उस समय की फोटो भी संभालकर रखी गई है. इससे आने वाली पीढ़ी विश्वविद्यालय की गरिमा को जान सकेगी. यहां के कुलपति देश के राष्ट्रपति हुए हैं. महामना द्वारा सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 7 सितंबर 1939 को विश्वविद्यालय में अपनी सेवा अर्पित करने को पत्र लिखा गया था. मालवीय भवन एवं भारत कला भवन, ये सब चीजें आज भी सुरक्षित हैं. उनकी स्मृति में यहां कला संकाय में एक व्याख्यान सभागार है. जिसका नाम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन सभागार है. महामना, सर्वपल्ली राधाकृष्णन और विश्वविद्यालय इन तीनों का आपस में बहुत ही गहरा संबंध रहा है. जिसे लोग आज भी याद करते हैं.