पॉलीग्राफ टेस्ट को कानूनी मान्यता नहीं, फिर भी क्यों होता है
सीबीआई के अधिकारी कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई रेप और हत्या की घटना की जांच में लगातार जुटे हुए हैं. इस दौरान सीबीआई के मांग के साथ ही चर्चा में आया पॉलीग्राफी टेस्ट. काफी मांग के बाद सियालदह कोर्ट ने आखिरकार सीबीआई को आरोपी संजय रॉय समेत छह अन्य लोगों के पॉलीग्राफी टेस्ट की मंजूरी दे दी थी.
इसमें संजय के अलावा प्रिंसिपल संदीप घोष और चार अन्य ट्रेनी डॉक्टरों का पॉलीग्राफी टेस्ट किया गया है. इस टेस्ट के बाद बड़े खुलासे भी किए गए, लेकिन क्या आपको मालूम है कि इस टेस्ट को कराने की कानूनी मान्यता नहीं है. इसके नतीजों को कोर्ट वैध नहीं मानता है. ऐसे में जांच एजेंसियां इसे क्यों कराती है पॉलीग्राफी टेस्ट. क्या होता है यह टेस्ट ? ऐसे तमाम सवालों के जवाब इस लेख में हम जानने का प्रयास करेंगे…
क्या होता है पॉलीग्राफी टेस्ट
पॉलीग्राफी टेस्ट को लाई डिटेक्टर टेस्ट के नाम से भी जाना जाता है. यह ऐसी प्रकार की जांच प्रक्रिया होती है, जिसमें इस बात को निर्धारित किया जाता है कि जवाब देने वाला शख्स झूठ बोल रहा है या सच. विशेष रूप से यह पूछताछ की शारीरिक प्रतिक्रिया को मापता है. पॉलीग्राफ टेस्ट के पीछे का सिद्धांत यह है कि दोषी व्यक्ति अपराध के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में झूठ बोलने के बारे में अधिक चिंतित होता है, जो कि उसके अंदर एक उत्तेजना की स्थिति को पैदा करता है, जिसे पॉलीग्राफी टेस्ट के परिणामों को पढ़ने वाले विशेषज्ञ द्वारा पकड़ा जाता है.
जांच के लिए इन प्रक्रिया से होता है गुजरना
बता दें कि पॉलीग्राफी टेस्ट के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना होता है. इस टेस्ट के लिए न सिर्फ कोर्ट बल्कि कोर्ट के समक्ष आरोपी की सहमति की भी अवश्यकता होती है,तभी इसे कोई जांच एजेंसी करवा सकती है. साथ ही इस टेस्ट को लेकर आरोपी के पास अधिकार होता है कि वह इसके लिए मना भी कर सकता है. हालांकि, खुद को सही साबित करने के लिए आरोपी इस टेस्ट के लिए हामी भर देते हैं. ऐसे में यदि आरोपी इस टेस्ट के लिए हां नहीं करता है तो उसकी जांच नहीं कराई जा सकती है. इससे साफ हो जाता है कि, पॉलीग्राफी टेस्ट आरोपी की सहमति के बिना संभव ही नहीं है.
कब कराना पड़ता है पॉलीग्राफी टेस्ट
बताया जाता है कि पॉलीग्राफी टेस्ट जांच एजेंसियों द्वारा तब कराया जाता है, जब जांच एजेंसियों को आरोपी और अपराधी के सच और झूठ का पता लगाना होता है, जिस मामले में कोई और शामिल है या नहीं ? इसके अलावा जब मामले का कोई साक्ष्य नहीं हो और एक अभियुक्त सामने हो और आगे जांच में कुछ सूझ न रहा हो.
आरोपी झूठ बोलने में माहिर और सधा हुआ अपराधी हो और कुछ बोलने को तैयार न हो तो, ऐसी स्थिति में जांच एजेंसियां पॉलीग्राफी टेस्ट की ओर रूख करती है. एजेंसियां इस टेस्ट के माध्यम से इस बात का पता लगा पाती है कि जो वे सवाल कर रही है उसका आरोपी जो जवाब दे रहा है वह सही है या नहीं. यदि आरोपित सच कहता है तो उसकी मान्यता अलग है, लेकिन अगर वह झूठ बोलता है तो ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं ताकि पता लगाया जा सके कि अपराध में और कौन शामिल है ?
कैसे जांची जाती है अपराधी की प्रतिक्रिया ?
पॉलीग्राफी टेस्ट के दौरान आरोपी व्यक्ति को वाइटल्स जांचने वाली मशीनें उसके शरीर से जुड़ी होती हैं और उससे प्रश्न पूछे जाते हैं. सीबीआई या किसी अन्य जांच एजेंसी के विशेषज्ञ पहले से ही इन सवालों की सूची बना लेते हैं. यदि वह झूठ बोलता है तो इस दौरान उसका ब्लड प्रेशर, दिल की धड़कन, सांसों की गंध और पेट में घूमने वाले द्रव्य में बदलाव होता है. इससे जांचकर्ता को पता चलता है कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है. ब्रैन मैपिंग टेस्ट भी इसी तरह का होता है, लेकिन नॉर्को टेस्ट में किसी व्यक्ति को कुछ दवाएं दी जाती हैं, जिससे वह चाह कर भी कुछ छिपाने में लाचार हो जाता है.
टेस्ट की कानून में कोई वैधता नहीं
आपको बता दें कि पॉलीग्राफी टेस्ट के दौरान प्राप्त अपराधी के जवाब की कोई कानूनी वैधता नहीं होती है. डॉक्ट्रिन ऑफ सेल्फ-इन्क्लिनेशन को संविधान के पैरा 20 की उपधारा 3 में इसे निर्धारित किया गया है. इसका अर्थ है कि किसी को अपने खिलाफ गवाही देने के लिए किसी भी तरह से मजबूर नहीं किया जा सकता है. पुलिस या किसी अन्य जांच एजेंसी के सामने दिया गया बयान कोर्ट में वैध नहीं ठहराया जा सकता, जब तक वह मजिस्ट्रेट के सामने प्रमाणित नहीं हो जाता है.
वादी या प्रतिवादी मजिस्ट्रेट के सामने जांच एजेंसियों को दिए गए बयान को भी बदल सकते हैं. वैसे भी जब कोई व्यक्ति किसी तरह का बयान या शपथ पत्र देता है, तो उसे घोषणा करनी चाहिए कि वह पूरी तरह से सोच समझकर सब कुछ कह रहा है. ऐसे में पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान कुछ कहने या न कहने से कानूनी तौर पर कुछ फर्क नहीं पड़ता है. ऐसे किसी भी दावे को पुष्ट करने के लिए स्पष्ट प्रमाण की आवश्यकता होती है.
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फिर क्यों कराया जाता है पॉलीग्राफी टेस्ट ?
पॉलीग्राफ टेस्ट जैसे टेस्ट की कोई कानूनी वैधता नहीं होती, लेकिन वे सिर्फ इसलिए कराए जाते हैं, जिससे जांच एजेंसियां को सच जानने में मदद मिल सके. ऐसी जांच में संदिग्ध, आरोपित या अपराधी से कोई ऐसा संकेत मिलने की पूरी संभावना रहती है, जो जांच को आगे बढ़ाने की अनुमति देती है या फिर जांच एजेंसी को कोई संदेह होता है और उसके समर्थन में कोई सबूत या गवाह नहीं मिलता, तो भी अपने संदेह को पुष्ट करने के लिए ऐसा परीक्षण करती है.