श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर की 358 वर्ष प्राचीन परंपरा टूटी, महंत आवास के बाहर लगा दी गई फोर्स
हर साल पूर्व महंत आवास से पंचबदन प्रतिमा अंतिम सोमवार को झूलनोत्सव के लिए जाती थी मंदिर
वाराणसी के इतिहास में श्रावण के अंतिम सोमवार को काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन या यह कहलिजिए कि सत्ता के इशारे पर काशी विश्वनाथ मंदिर में 358 वर्ष प्राचीन परंपरा मंदिर न्यास प्रशासन ने विराम लगा दिया. मंदिर प्रशासन की इस कार्रवाई की जानकारी होते ही काशी की जनता स्तब्ध रह गई. इसके विरोध में मंदिर के पूर्व महंत कुलपति तिवारी की धर्मपत्नी ने कड़ा एतराज जताते हुए अनशन शुरू कर दिया. पुलिस प्रशासन की ओर से पहुंची महिला अधिकारी ने अपनी ड्यूटी की औपचारिकता निभाई और आश्वासन दिया कि वह उनकी बात को शासन तक पहुंचाएंगी. जैसे बिना शासन की मर्जी के यह सब हो गया. फिर भी सावन मास की पूर्णिमा और आखिरी सोमवार को महंत अवास में ही इस परम्परा का पालन किया गया. उधर, मंदिर प्रशासन ने भी अपनी नयी पंच बदन प्रतिमा के पूजन आदि की जानकारी मीडिया को दे दी. यह देखकर तो काशी में लोग सत्ता के एकाधिकार और मनमानी के आरोप लगाने लगे हैं. उधर, कथित रूप से एक विज्ञप्ति जारी कर पंचबदन प्रतिमा के पूजन और शाभायात्रा का दावा किया गया. इसमें महंत परिवार के भी शामिल होने के दावे किये गये. इन सारे मामलों को देखते हुए अब यह चर्चाएं तेज हो गई हैं कि आखिर बाबा के दरबार के क्या चल रहा है.
Also Read: वाराणसी : जंसा में रिंग रोड पर जबर्दस्त एक्सिडेंट, दम्पती समेत बच्ची की मौत, मचा कोहराम
पति के जीवन काल के संघर्षों का खड़ित होना काशी के परंपरा का अपमान-मोहिनी देवी
हालांकि भगवान शिव के पंचवदन प्रतिमा के पारम्परिक ढ़ंग से मंदिर जाने और झूलनोत्सव की जानकारी एक दिन पहले जारी की गई थी. अचानक पुलिस प्रशासन द्वारा पालकी रोकने की नोटिस दे दी गई और आवास के बाहर फोर्स लगा दी गई. ताकि पालकी यात्रा निकाली न जा सके. इसके बाद महंत आवास टेढ़ीनीम पर ही महंत परिवार के वाचस्पति ने सांकेतिक झुलनोत्सव कर परंपरा का निर्वाह किया. उधर, पूर्व महंत कुलपति तिवारी की धर्मपत्नी मोहिनी देवी ने पुलिस प्रशासन से कहाकि कि महंत परिवार की महिलाएं कभी पर्दे के बाहर नही आयीं, लेकिन पूर्वजों की व्यवस्था और पति के जीवन काल के संघर्षों जिससे काशी की पहचान है का खड़ित होना काशी के परंपरा का अपमान है.
कांग्रेस ने कहा-भाजपा सरकार असली सनातन विरोधी
वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में 358 वर्ष प्राचीन परंपरा पर शासन के इशारे पर मंदिर न्यास प्रशासन ने विराम लगा दिया. इस मामले को शहर कांग्रेस कमेटी ने गंभीरता से लिया है. कांग्रेस पार्टी की ओर से कहा गया कि पूर्व महंत आवास से मंदिर परिसर तक वर्षों से जाने वाली पंचबदन चल रजत प्रतिमा इस बार नहीं जाने दी गई. काशी को छलने वाली बीजेपी सरकार को बाबा विश्वनाथ जी कभी माफ़ नहीं करेंगे “सनातन विरोधी है बीजेपी. शहर कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे ने कहाकि मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के निधन के बाद अनवरत चली आ रही परंपरा को परिवार की चौथी पीढ़ी नहीं निभा सकेगी. मंदिर प्रशासन अब महंत आवास की प्रतिमा को झूलनोत्सव में शामिल नहीं करेगा.
बनारसीपन को खत्म करने पर उतर गई भाजपा
इस प्रकरण कर निंदा करते हुए कांग्रेस ने कहाकि काशी की परंपरा को ख़त्म करने में मोदी – योगी सरकार तुली है. कहा कि बीजेपी सनातन विरोधी है. वह काशी की सभ्यता, संस्कृति व बनारसीपन को ख़त्म करने पर उतर गई है. काशी पौराणिक शहर है और यहां की पुरानी परंपरा काशी के महत्व की पूरक है. बीजेपी इसी पुरानी परंपरा को लगातार ख़त्म कर रही है. बता दें कि प्रत्येक वर्ष श्रावण पूर्णिमा पर अपराह्न तीन बजे सप्तर्षि आरती के बाद बाबा का झूला शृंगार होता है. शृंगार के लिए बाबा की शिव-पार्वती और गणेश प्रतिमा का टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पर विशेष पूजन किया जाता था, जिसमें नाट्यकोट क्षत्रम् का मंगलवाद्य दल और विश्वनाथ मंदिर के अर्चकगण में सम्मिलित हो पूजन करते थे. शिव, पार्वती और गणेश की रजत प्रतिमा सायं सवा पांच से साढ़े पांच के मध्य साक्षी विनायक, ढुंढिराज गणेश, अन्नपूर्णा मंदिर होते हुए विश्वनाथ मंदिर ले जाई जाती थी. इसमें काशी के लोग हर्षोल्लास के साथ शामिल होते थे. लेकिन अब भाजपा सरकार के इशारे पर मंदिर प्रशासन अब महंत आवास की प्रतिमा को झूलनोत्सव में शामिल नहीं करेगा. मंदिर परिसर के झूले पर काशी विश्वनाथ न्यास अब अपनी प्रतिमा सजाएगा. मंदिर के वर्षों पुराने इतिहास में यह पहली बार होगा जब महंत आवास पर झूलनोत्सव में शामिल प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में नहीं रखी गई.
बीजेपी ही असली सनातन विरोधी
मंदिर न्यास की ओर से इसकी जानकारी साझा करते हुए पूर्णिमा यानी अंतिम सोमवार को अपनी स्वयं की प्रतिमा रखने की बात कही. ऐसे में हम काशी के वासी इस फैसले पर आपत्ति जताते है. ऐसे लोगों को काशी कभी माफ नहीं करेगी. धर्म के नाम पर राजनीति करने वाली बीजेपी ही असली सनातन विरोधी है. उन्होंने कहाकि लगातार मांग व संघर्ष के बाद श्रावण माह में प्रशासन द्वारा काशीवासियों को काशी द्वार से सुबह शाम एक घंटा दर्शन की अनुमति दी. जिसे हम काशीवासी स्वीकार कर लिए, लेकिन हम फिर मांग करते हैं कि प्रशासन काशीवासियों को प्रातः 4 बजे से सुबह 9 बजे तक व सायंकाल 4 बजे से शयन आरती तक दर्शन की सुविधा काशी द्वार से प्रदान करें. अन्यथा यह लड़ाई आगे भी जारी रहेगी.
दिवंगत पूर्व महंत पत्नी ने दिनभर किया अनशन
वाराणसी जिला प्रशासन और काशी विश्वनाथ मंदिर प्रबंधन द्वारा महंत परिवार की परंपरा से छेड़छाड़ के विरोध में दिवंगत महंत डॉ. कुलपति तिवारी की धर्मपत्नी मोहिनी देवी सोमवार को अनशन पर बैठ गईं. दृष्टिबाधित मोहिनी देवी ने परिवार की परंपरा से छेड़छाड़ किए जाने से आहत होकर यह कदम उठाया. एक तरफ पूरे दिन टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास के बाहर पुलिस का पहरा रहा तो दूसरी तरफ आवास के अंदर मोहिनी देवी का अनशन जारी रहा. परिवार के सदस्य उन्हें पूरे दिन समझाते रहे लेकिन उन्होंने अन्न-जल ग्रहण नहीं किया. इस बात की जानकारी एसीपी दशाश्वमेध प्रज्ञा पाठक को हुई तो वह सायंकाल करीब साढ़े पांच बजे टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पहुंची. उन्होंने सरकारी नौकरी के तहत मिले आदेश का पालन करते हुए मोहिनी देवी को समझाने का प्रयास किया. इसपर मोहिनी देवी ने डॉ. कुलपति तिवारी के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से भेजा गया शोक संवेदना वाला पत्र दिखाते हुए एसीपी से कहा कि एक तरफ प्रधानमंत्री कहते हैं मेरे पति को विश्वनाथ मंदिर की परंपराओं का संवाहक बताते हैं और दूसरी तरफ वाराणसी के जिला प्रशासन ने हमारे परिवार की परंपरा पर कब्जा कर लिया.
एक सप्ताह में नही शुरू हुई परम्परा को आमरण अनशन
यह दोहरी नीति दिखा का आखिर वर्तमान सरकार क्या साबित करना चाहती है ? ऐसे में प्रशासन की रटे रटाये ज्ञान को एसीपी प्रज्ञा पाठक ने झोंका. प्रशासन की प्रचिलित बातें बताते हुए कहाकि आप की बात शासन तक पहुंचाई जाएगी लेकिन आप अनशन समाप्त कर दें. सहानुभूति भी दिखाई कि यह आप की सेहत के लिए ठीक नहीं है. परिवार के सदस्यों ने भी उनसे बार-बार अनशन समाप्त करने का अनुरोध किया. सभी के बार-बार अनुरोध पर मोहिनी देवी ने फल का रस ग्रहण किया. साथ ही उन्होंने शर्त रख दी की एक सप्ताह के भीतर महंत परिवार की परंपरा की बहाली का पत्र शासन की ओर से उन्हें नहीं मिला तो वह अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ जाएंगी.