पुत्रदा एकादशी आज, जानें पूजन विधि और कथा…
आज पुत्रदा एकादशी मनाई जा रही है, यह हर वर्ष सावन में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. इसको लेकर मान्यता है कि, पुत्रदा एकादशी का संतान सुख की प्राप्ति और संतान की समस्याओं का निवारण करने के लिए किया जाता है. इस उपवास को नियमित रूप से पालन करने से संतान से जुड़ी हर चिंता और समस्या दूर हो जाएगी. आइए जानते है पुत्रदा एकादशी की कथा, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि….
व्रत के नियम
पुत्रदा एकादशी व्रत को दो तरह से रखा जाता है, पहला फलाहारी या जलीय व्रत और दूसरा निर्जल व्रत रखा जाता है. ऐसे में पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति को ही निर्जल व्रत रखना चाहिए, बाकी सामान्य आदमी को फलाहारी या जलीय व्रत करना चाहिए. अच्छा होगा कि, इस व्रत के दिन आप सिर्फ जल और फल का ही सेवन करें. इसके साथ ही संतान की मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए एकादशी के दिन भगवान कृष्ण या श्री हरि की पूजा करें.
संतान की मनोकामना पूरी करने का उपाय
पुत्रदा एकादशी के दिन पति-पत्नी मिलकर श्रीकृष्ण की पूजा करें. साथ ही श्रीकृष्ण को पीले फल, पीले फूल, तुलसी दल और पंचामृत अर्पित करे और फिर संतान गोपाल मंत्र का जाप करें. मंत्र जाप करने के बाद पति पत्नी मिलकर भोजन करें.
व्रत में ये न करें
पुत्रदा एकादशी के दिन घर में किसी भी तरह का तामसिक भोजन या लहसुन-प्याज नहीं बनाना चाहिए. एकादशी पूजा पाठ में सिर्फ साफ कपड़ों का प्रयोग करें, परिवार में शांति बनाए रखें, ईश्वर को सम्मान दें . साथ ही सात्विक रहें और झूठ बोलने से बचें.
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इस व्रत की कथा
पौराणिक कहानियों के अनुसार, द्वापर युग में एक नगरी थी, जिसका नाम था महिष्मती, इस नगरी में एक राजा महीजित राज्य किया करते थे. लेकिन उस राजा के कोई भी संतान नही थी. ऐसे में संतान प्राप्ति के लिए राजा ने कई सारे प्रयास किए, लेकिन उसे संतान सुख नहीं मिल पा रहा था. ऐसे में राजा ने हारकर राज्य के सभी ऋषि-मुनियों को बुलाकर संतान प्राप्ति का उपाय पूछा. राजा की बात सुनकर ऋषि-मुनियों ने कहा कि राजन, आप पहले जन्म में एक व्यापारी थे और सावन की एकादशी पर अपने तालाब से एक गाय को जल नहीं पीने दिया था, इसलिए उस गाय ने तुम्हें पुत्र सुख से वंचित रहने का श्राप दिया था.
हे राजन! पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से आपको इस श्राप से छुटकारा मिल सकता है. इसके बाद आप संतान से प्राप्त कर पाएंगे, यह सुनकर राजा ने पत्नी के साथ पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने का फैसला किया और इसके बाद राजा ने इसके बाद श्राप से छुटकारा पाया और संतान की प्राप्ति हुई.