जानें ध्वजारोहण और ध्वजफहराने में क्या है अंतर ?
राष्ट्रीय पर्व यानी स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और गांधी जयंती तो हम हर साल ही मनाते हैं और यह किस उपलक्ष्य में मनाए जाते हैं इसके बारे में भी में हमें बखूबी पता है. इन खास अवसरों को मनाए जाने की तैयारियां कुछ दिन पहले से ही शुरू कर दी जाती है. इसमें कुछ चीजों पर विशेष ध्यान दिया जाता है जैसे ध्वजारोहण और राष्ट्रगान की अवधि. वहीं कई सारी ऐसी बातें होती है जो हर साल हमारी आंखों के सामने होती हैं लेकिन हम उन बारीकियों पर गौर नहीं करते हैं.
इसमें से एक है ध्वजारोहण और ध्वज फहराने का अंतर. स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर जब राष्ट्रपति राजपथ और प्रधानमंत्री लालकिले के कार्यक्रम में शामिल होते हैं तो प्रधानमंत्री ध्वजारोहण करते हैं और राष्ट्रपति ध्वज फहराते है. सामान्य तौर पर भले यह प्रक्रिया एक जैसी ही लगती हो, लेकिन इसमें काफी फर्क होता है. तो, आइए जानते हैं ध्वजारोहण और ध्वजफहराने में क्या अंतर होता है ?
ध्वजारोहण और ध्वजफहराने में क्या होता है अंतर ?
ध्वजारोहण
प्रतिवर्ष 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लालकिले की प्राचीर से देश के प्रधानमंत्री द्वारा ध्वजारोहण किया जाता है. साल 1947 में जब हमारा देश अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ तो, इस दिन ब्रिटिश सरकार का झंडा उतारकर हमारा तिरंगा ध्वज नीचे से ऊपर की तरफ ले जाकर फहराया गया था जिसे ध्वजारोहण कहते हैं. उसके बाद से हर साल देश के पीएम स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ध्वजारोहण करते हैं और ध्वजारोहण को किसी भी राष्ट्र के उदय का प्रतीक माना जाता है.
ध्वज फहराना
जहां स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के प्रधानमंत्री द्वारा ध्वजारोहण किया जाता है, वहीं 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के मौके पर देश के राष्ट्रपति के द्वारा दिल्ली के राजपथ पर ध्वज फहराया जाता है. इस दौरान ध्वज ऊपर ही फूलों के गांठ वाली रस्सी के साथ बंधा होता है और जिसे राष्ट्रपति रस्सी खींचकर उस गांठ को खोलते हैं. गांठ खुलने के साथ फूल हवाओं में उड़ते हैं और ध्वज हवा के साथ लहराने लगता है. इसके ही ध्वज फहराना कहते हैं.
प्रधानमंत्री ही क्यों करते हैं ध्वजारोहण ?
जब 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ था, उस समय पर भारत में कोई भी आधिकारिक राष्ट्रपति नहीं था. इसलिए उस समय पर लार्ड माउंटबेटन भारत के गवर्नर हुआ करते थे और जवाहरलाल नेहरू को भारत का अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया था. स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में उन्होंने ने ही पहली बार देश का राष्ट्र ध्वज का ध्वजा रोहण किया था. उस समय से आज तक देश का प्रधानमंत्री ही स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में ध्वजारोहण करते हैं.
जानें क्या होते हैं ध्वजारोहण के नियम ?
ध्वजारोहण का सम्मान जनक प्रक्रिया मानी जाती है. यही वजह है कि इसका अधिकार हर किसी को नहीं दिया जाता है और इसको करने के लिए विशेष नियमों का पालन करना होता है. तो, आइए जानते हैं क्या हैं ध्वजारोहण के नियम….
-ध्वजारोहण के दौरान झंडे को आधा झुकाकर नहीं फहराना चाहिए.निर्देश के बिना तिरंगा आधा नहीं फहराया जा सकता है.
-राष्ट्रीय ध्वज पर कोई चित्र, पेंटिंग या फोटोग्राफ नहीं होना चाहिए.
-फटा हुआ और मैला झंडा ध्वजारोहण के लिए नहीं लगाना चाहिए. साथ ही ध्वज से किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए.
-तिरंगा किसी की सलामी करने के लिए नहीं झुकाया जा सकता.
-ध्वजारोहण सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही किया जा सकता है. शाम होने के बाद तिरंगा उतार देना चाहिए. तिरंगा हमेशा ऐसे स्थान पर फहराना चाहिए, जहां से वह आसानी से दिखाई दे सके.