भगवान भोलेनाथ को समर्पित की जाती है बीएचयू में बनने वाली औषधि

भिक्षाटन कर बनाया गया है यह मंदिर

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वाराणसी- सावन में काशी के हर स्थान पर हर हर महादेव बोल बम का जयकारा गुंजायमान है. गुंजे भी क्यों नहीं यह महादेव की नगरी जो है. कहते हैं कि काशी के कण कण में भगवान शिव वास करते हैं. यहां 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित है और सबकी अपनी अलग-अलग महिमा है. यहां हम बात करेंगे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में स्थापित रसेश्वर महादेव मंदिर की. वैसे तो शिवालय के लोग फूल, बेलपत्र, धतूरा, दूध माला आदि मादेव को समर्पित करते हैं परंतु इस शिवलिंग पर औषधि समर्पित की जाती है. आर्युर्वेदिक औषधियों के निर्माण प्रक्रिया के तहत भस्मों के पाक के क्रम में अघोरेश्वर शिव की आराधना के लिए 1950-60 में प्रो. दत्तात्रेय अनंत कुलकर्णी ने पुराने आर्युवेदिक फार्मेसी विभाग में मंदिर का निर्माण कराया था. भगवान भोलेनाथ को औषधियों का जनक कहा जाता है. इसी उद्देश्य से “रसेश्वर महादेव मंदिर” का निर्माण कराया गया. मंदिर में भगवान शिव, मां पार्वती, कार्तिकेय और गणेश जी के साथ ही महामना की प्रतिमा स्थापित की गयी है.

महामना द्वारा स्थापपित परंपरा का पालन

काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी. उन्होंने लोगों से दान लेकर इसकी स्थापना की थी. उनके इसी बात को आत्मसात करते हुए चिकित्सा विज्ञान संस्थान के आर्युवेद संकाय के रस शास्त्र विभाग के प्रोफेसर आनंद कुमार ने दान के पैसे से रसेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना की. इस मंदिर का निर्माण 2016 में शुरू हुआ और 17 फरवरी से 21 फरवरी 2018 में बनकर तैयार हुआ.

 

बता दें कि महामना पं. मदनमोहन मालवीय समाज को शिक्षित करने के साथ ही लोगों को स्वस्थ रखने के लिए आर्युवेद चिकित्सा की स्थापना 1922 से 1932 के बीच बीएचयू में की थी. महामना अपने दैनिक दिनचर्या के तहत आर्यवेदिक फार्मेसी का निरिक्षण भी करते थे. प्रोफेसर आनंद कुमार ने बताया कि रस शास्त्र विभाग में जो भी औषधि दवा बनती है उसे सर्वप्रथम औषधि के देवता भगवान भोलेनाथ और भगवान धन्वंतरि को समर्पित किया जाता है. इसके बाद ही यह लोगों को कष्ट निवारण के लिए दिया जाता है. यह महामना के द्वारा स्थापित परंपरा में से एक है, जिसका निर्वहन आज भी किया जा रहा है.

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कोविड काल में बनाया गया था काढ़ा

उन्होंने बताया कि कोविड काल में जिस समय देश परेशान था. उस समय हम लोगों द्वारा औषधि काढ़ा बनाया गया था और लोगों को प्राण दान दिया जा रहा था. रिसर्च स्कॉलर वैशाली गुप्ता ने बताया कि हम काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आयुर्वेद डिपार्टमेंट के रस शास्त्र विभाग में रिसर्च कर रहे हैं और हम हर्बल क्रीम बना रहे हैं. हम लोग जो भी आयुर्वेदिक औषधि द्वारा दवा बनाते हैं या भस्म बनाते हैं उसे सबसे पहले हमारे कैंपस में स्थित रसेश्वर महादेव को अर्पित करते हैं. हम लोगों का मानना है हम लोगों द्वारा जो भी औषधि बनाते हैं उसे सर्वप्रथम महादेव को समर्पित करते हैं. उन्होंने कहा कि हम लोगों के आराध्य देव भगवान शिव शंकर है और हम लोगों का विश्वास है कि जो भी दवा हम लोग बनाते हैं उसका असर लोगों पर अच्छा और तत्काल हो.

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