Muharram 2024: 16 या 17 जुलाई कब है मोहर्रम ?
जानें मनाने की वजह और महत्व ...
Muharram 2024: मुस्लिम धर्म के विशेष पर्व में से एक है मोहर्रम. इस पर्व नए साल के तौर पर मनाया जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, मोहर्रम इस्लाम धर्म का पहला महीना होता है जिसकी शुरूआत इस साल 7 जुलाई से हो चुकी है. वहीं माना जाता है कि इसके 20 दिन के बाद मोहर्रम को मनाया जाता है. इसके साथ ही मोहर्रम की तिथि भी ईद की तरह ही चांद देखने से तय होती है. इस पर्व को भी रमजान की तरह ही काफी पाक माना जाता है. ऐसे में इस बात को लेकर लोगों में संशय है कि इस साल मोहर्रम कब मनाया जाएगा, 16 या 17 जुलाई को ?
कब मनाया जाएगा मोहर्रम ?
इस्लामिक कैलेंडर का आखिरी माह जिलहिज्जा 1445 7 जुलाई पड़ा था. हालांकि, 6 जुलाई को मगरिब के बाद चांद नहीं देखा गया था, इसलिए 7 जुलाई को जुल हिज्जा का आखिरी दिन माना गया. वहीं, मुहर्रम के 10वें दिन 17 जुलाई को आशूरा मनाया जाएगा. इसके अलावा मुहर्रम भी बकरीद के 20 दिन बाद मनाया जाता है. शिया मुस्लिम मुहर्रम को इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मनाते हैं. शिया मुस्लिम पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में इस महीने मातम मनाया जाता है. साथ ही इस दिन जुलूस भी निकाले जाते हैं.
मोहर्रम का क्या है महत्व ?
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, मोहर्रम का पर्व नव वर्ष के तौर पर मनाया जाता है, लेकिन वहीं कुछ मुस्लिम लोग इस महीने को गम के माह की तौर पर मनाते हैं. दरअसल इस महीने की 10 वीं तारीख को यौम-ए-आशूरा कहा जाता है. यह कोई आम तारीख नहीं होती है. इस तारीख को मुस्लिम धर्म के पैगबंर हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. यही वजह है कि मोहर्रम के 10 वें दिन लोग शोक मनाते हैं और इसे ही आशूरा कहा जाता है.
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मोहर्रम को क्यों मनाया जाता है खास ?
सन 61 हिजरी में आखिरी नबी पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को उनके 71 साथियों के साथ इराक के करबला के मैदान में तीन दिन तक भूखा और प्यासा रखा गया था. इसकी वजह से उन सभी की मौत हो गयी थी. इसी की याद में मोहर्रम मनाया जाता है और इस्लाम धर्म के लोग इस माह को बहुत पाक मानते हैं. वहीं मोहर्रम का मतलब ‘निषिद्ध’ या ‘अनुमति नहीं होना’ होता है. मोहर्रम की 10वीं तारीख को रोज-ए-आशूरा कहा जाता है. भारतीय उपमहाद्वीप आज ताजियादारी करता है. इस मौके पर सुन्नी मुसलमान चमकीले पेपर से बनी ताजिया और इमाम हुसैन के मकबरे की आकृति वाली बांस की खिम्चियों को निकालते हैं.