काशी के पौराणिक घाट, अलग-अलग इतिहास
काशी के घाटों का महत्व
काशी के पौराणिक घाट, अलग-अलग इतिहास
उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के तट पर स्थित काशी शहर को वाराणसी और बनारस भी कहा जाता है. माना जाता है कि यह दुनिया का सबसे प्राचीन शहर है. हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं में काशी का उल्लेख किया गया है. इसे पहले यह भगवान विष्णु की और फिर महादेव की नगरी कही जाने लगी. माना जाता है कि यहां करीबन 84 घाट हैं, जो धार्मिक रूप से इस शहर की मान्यता बढ़ाते हैं. आज हम आपको काशी के कुछ प्रमुख घाटों और उनकी विशेषता के बारे में बताएगे.
अस्सी घाट
अस्सी घाट के पीछे मां दुर्गा की एक रोचक कहानी है. माना जाता है कि शुंभ और निशुंभ नाम के 2 राक्षस थे. उनका वध करने के बाद मां दुर्गा ने अपना अस्त्र जमीन पर फंेक दिया था. इस वजह से धरती की सतह पर गड्ढा बना और वहां से एक जलधारा बहने लगी. इसे ही असी नदी कहा जाता था. हालांकि अस्सी नदी और गंगा के संगम स्थल को अस्सी घाट का नाम मिला.
दशाश्वमेध घाट
दशाश्वमेध घाट धार्मिक-सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मान्यताओं के कारण इसकी गिनती काशी के सबसे प्रसिद्ध घाट में होती है. पुराणों में इस घाट को रुद्रसर कहा जाता है. माना जाता है कि यहां ब्रह्मा जी ने यहां दस अश्वमेघ यज्ञ किए थे, जिसके बाद इसे दशाश्वमेध नाम मिला. इस घाट पर बड़ी संख्या में लोग देश विदेश से गंगा स्नान करने आते हैं.
मणिकर्णिका घाट
मणिकर्णिका काशी के पांच प्रमुख एवं प्राचीनतम तीर्थों में से एक है. घाट पर मणिकर्णिका कुंड है, इसलिए इसे मणिकर्णिका नाम मिला. सदियों पहले इसे चक्रपुष्कर्णी के नाम से जाना जाता था. माना जाता है कि जब शिव-पार्वती तालाब के आस-पास घूम रहे थे, तो पार्वती जी के कान की मणि चक्रपुष्कर्णी में गिर गई थी, जिसके बाद इस स्थान को मणिकर्णिका का मान मिला. ये तीर्थ और श्मशान घाट दोनों के लिए प्रसिद्ध है.
हरिश्चंद्र घाट
हरिश्चंद्र घाट काशी के दो प्रमुख श्मशान घाट (हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका) में से एक है. मान्यता है कि सत्य के प्रतीक और अयोध्या के राजा हरिश्चंद्र ने काशी के इसी श्मशान घाट अपने बेटे का अंतिम संस्कार किया था. इसके लिए उन्होंने अपनी धर्मपत्नी से कर लिया था. क्योकि वह डोमराजा के यहां नौकरी करते थे. इस एतिहासिक घटना कारण से इस घाट का नाम हरिश्चंद्र घाट पड़ा. यह काशी के प्रमुख घाटों में से एक है.
सिंधिया घाट
सिंधिया घाट को प्राचीन काल में वीरेश्वर घाट के नाम से जाना जाता था. इसका उल्लेख गीवर्णपदमंजरी में भी मिलता है. घाट पर वीरेश्वर या आत्मविरेश्वर (शिव) मंदिर भी है. 1835 में इस मंदिर को ग्वालियर के महाराजा दौलतराव सिंधिया की पत्नी बैजाबाई सिंधिया को दिया गया. इसके बाद घाट को पक्का किया गया. तब से इसे सिंधिया घाट कहा जाने लगा.
केदार घाट
घाट पर केदारेश्वर शिव का प्रसिद्ध मंदिर है. इसी कारण से इस स्थान को केदारघाट कहा जाने लगा. काशी के 12 ज्योतिर्लिंगों में केदारेश्वर शिव भी शामिल है. इस घाट की सीढ़ियों पर गौरीकुंड है. यहां चंद्र ग्रहण, निर्जला एकादशी, गंगा दशहरा, मकर और मेष संक्रांति, डालाछठ पर तीर्थयात्रियों की बड़ी भीड़ देखने को मिलती है.
पंचगंगा घाट
पंचगंगा घाट काशी के पांच प्रमुख प्राचीन तीर्थों में से एक है. घाट पर बिंदुमाधव (भगवान विष्णु को समर्पित) मंदिर के कारण इसे बिंदुमाधव घाट कहा जाता था. 17वीं शताब्दी में औरंगजेब ने बिंदुमाधव मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बनवाया था. इसके बाद इसे पंचनद या पंचगंगा कहा जाने लगा. पंचनद या पंचगंगा के संदर्भ में यह माना जाता है कि गंगा अदृश्य रूप से 4 नदियों- यमुना, सरस्वती, किरना और धूतपापा से मिलती है. इसी वजह से इसे पंचगंगा या पंचनद तीर्थ कहा जाता है.
बिंदुमाधव घाट
इस घाट पर मौजूद बिंदुमाधव मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के भवन राव, महाराजा अवध (सतारा) ने करवाया था. घाट पर आलमगीर मस्जिद है, जिसके दक्षिणी भाग में बनी इमारत को कंगन वाली हवेली कहा जाता है. इसे मिर्जा राजा जयसिंह ने राजस्थानी शैली में बनवाया था.
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मानसरोवर घाट
मानसरोवर कुंड और घाट को आमेर (राजस्थान) के राजा मानसिंह ने बनवाया था. माना जाता है कि यहां स्नान करने से हिमालय में स्थित मानसरोवर में स्नान करने जितना पुण्य मिलता है.
मीर घाट
गिरवाणपद्मंजरी में इस स्थान को जरासंध घाट कहा गया है. सन् 1735 में घाट और वहां बने किले का निर्माण काशी के उस समय के फौजदार मीर रुस्तम अली ने कराया था. इसी कारण से इसे मीर घाट कहा जाने लगा.
प्रह्लाद घाट
मान्यता है कि प्रह्लाद घाट के पास भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद को उसके पिता हिरण्यकशिपु के अत्याचारों से बचाया था. प्रह्लाद की तपोभूमि होने के कारण इस स्थान को प्रह्लाद घाट का नाम मिला.
आदिकेशव घाट
आदिकेशव घाट गंगा तट पर स्थित पांच प्रमुख तीर्थों में से एक है. ये काशी का पहला और प्रमुख विष्णुतीर्थ है. मान्यताओं के अनुसार, महादेव के कहने पर भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर पहली बार काशी आए थे. उन्होंने सबसे पहले अपने कदम यहां रखे थे. कहानी ये भी है कि जिस स्थान पर विष्णु ने सबसे पहले अपने कदम रखे थे और गंगा में स्नान किया था, उसे पादोदक तीर्थ कहा जाने लगा. मान्यता है कि घाट पर स्वयं भगवान विष्णु ने अपनी मूर्ति स्थापित की थी.
Written By: Harsh Srivastava