Varanasi: आज की रात चिताओं के सामने नृत्य करेंगी नगरवधुएं
Varanasi: वाराणसी में मोक्ष की कामना के लिए महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर रात के अंधेरे में जलती चिताओं के समक्ष नगरवधुएं नृत्य करेंगी. धर्म व संस्कृति की नगरी काशी की अनोखी परंपराओं में यह भी एक परंपरा है. इस दौरान नगरवधुओं के गीत संगीत के जरिए महाश्मशान के राजा श्मशान नाथ को खुश किया जाएगा. ऐसा आयोजन पूरे देश में शायद यहीं देखने को मिलता है. इसका साक्षी बनने के लिए लोग नवरात्र की सप्तमी को महाश्मशानपर खींचे चले आते हैं.
मोक्ष के लिए साधना की पंरपरा
मोक्ष के लिए साधना की पंरपरा में त्रिदिवसीय श्मशान नाथ महोत्सव नवरात्र की पंचमी तिथि यानी शनिवार को महाश्मशान में स्थापित मंदिर में वैदिक रीति से रुद्राभिषेक के साथ शुरू हो चुका है. इस कार्यक्रम के दौरान मंदिर को फूल मालाओं से आकर्षक ढंग से सजाया गया है. मंदिर में सुबह से रात तक बडी संख्या में श्रद्धालु जुट रहे हैं. महोत्सव के दूसरे दिन रविवार को भंडारा और रात्रि भजन जागरण में कालाकर मां काली स्त्रोत, शिव तांडव, ठुमरी, दादरा, ककरहवा और सुफियानी गीतों से समा बांधा जाएगा .
अंतिम दिन यानी सोमवार 15 अप्रैल की रात पूर्वांचल के विभिन्न जनपदों से नगरवधुओं के महाश्मशान पर संगीत साधना के जरिए मोक्ष प्राप्त करने के लिए पहुंचने से एक बार फिर अनूठा दृश्य आकार लेगा. मान्यता है कि जलती चिताओं के सामने नटराज को साक्षी मानकर वे यहां अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन करेंगी तो उन्हें अगले जन्म में नगरवधू का कलंक नहीं झेलना होगा.
Also Read: BYJU’S के सीईओ अर्जुन मोहन ने दिया इस्तीफा…
मुगलकाल से शुरूआत
महाश्मशान पर नृत्यांजलि की परंपरा अकबर काल में आमरे के राजा सवाई मानसिंह के समय से शुरू होकर अब तक चली आ रही है. मान सिंह ने ही 1585 में मणिकर्णिका घाट पर मंदिर का निर्माण कराया था. कहा जाता है कि यहां नृत्य व संगीत के लिए कोई तैयार नहीं हुआ तो मान सिंह ने नगरवधुओं को निमंत्रण भेज कर बुलवाया था. इसके बाद यह परंपरा चल पडी. वहीं अब सरकार महाश्मशान मणिकर्णिका घाट का कायाकल्प करा रही है. करोडों रुपये खर्च कर घाट का विकास किया जा रहा है. यहां चिता की आग कभी बुझती नहीं है. अब नृत्य के रूप में भावांजलि काशी की परंपरा बन गई है.