राजनीति में नारों से होते वारे- न्यारे

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देश की राजनीति में नारों की अपनी कहानी रही है. चाहे वो इंदिरा का दौर हो या मोदी का, देश में हर बार के लोकसभा चुनाव में पार्टियों की तरफ से नारे गढ़े गए. कहते हैं कि चुनाव में नारों का अपना मनोविज्ञान होता है. चुनाव में यह वक्त वह होता है जिसके चलते लोगों के दिलों में नारों की बदौलत पहुंचने की कोशिश की जाती है. 70 के दशक में गरीबी हटाओ, देश बचाओ … के नारे से लेकर अब की बार 400 पार. हर चुनाव के समय राजनीतिक दल नारे का सहारा लेते हैं. इतना ही नहीं कई बार राजनितिक दल इन नारों से जीत जाते हैं और कई बार नहीं…

चुनावी इतिहास के नारे…

बता दें कि देश में इंदिरा सरकार को हटाने के लिए 1970 में जनता दल ने नारा दिया था- इंदिरा हटाओ, देश बचाओ. वहीँ देश में इमरजेंसी के बाद इंदिरा गाँधी रायबरेली से चुनाव हार गयीं थी और 1984 में इंदिरा की मौत के बाद नारा दिया गया था- जब तक सूरज चाँद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा. इतना ही नहीं इस नारे की सहानुभूति के सहारे एक बार फिर सत्ता में कांग्रेस की वापसी हुई.

इंदिरा से अटल के दौर तक…

अगर देश की राजनीति में राजनितिक नारों की बात करें तो इंदिरा के बाद अटल के दौर में भी नारों का साथ लिया गया था. भारत में राजनीतिक नारों में से कई यादगार रहे हैं. जैसे कि “गरीबी हटाओ”, “इंडिया शायनिंग”, “जय जवान, जय किसान”.

साल 1950: देश में 50 के दशक में नेहरू के समय एक नारा बहुत प्रचलित हुआ “हिंदी-चीनी भाई-भाई”. लेकिन1962 में दोनों के बीच युद्ध हुआ.

साल 1965: देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देश के लिए बहुत ही प्रचलित नारा दिया, जिसका नाम था- “जय जवान- जय किसान”. इससे न केवल देश का मनोबल बड़ा बल्कि कांग्रेस को जीत भी मिली.

साल 1971: अगर साल 1971 की बात करें तो इंदिरा गाँधी के दौर में लोकसभा चुनाव में एक नारा दिया गया था जहाँ कहा गया था ” गरीबी हटाओ- इंदिरा लाओ “. कुछ समय देश में गरीबी थी जिसके चलते यह नारा खूब गूंजा और केंद्र में इंदिरा की सरकार बन गई. वहीँ, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उनकी जीत को अवैध बताया और उसके बाद उन्होंने आपातकाल लागू कर दिया.

साल 1975: बता दें कि आपातकाल के बाद विपक्षी पार्टियों ने एक मोर्चा का गठन किया और उसका नाम दिया ” जनता मोर्चा ” दिया. इसके बाद जनता मोर्चा ने ” इंदिरा हटाओ- देश बचाओ और संपूर्ण क्रांति जैसे नारों का नाम दिया. विपक्षी दलों ने इसी के साथ प्रचार किया और 1977 में उनको जीत मिली.

वहीँ,दूसरी तरफ कांग्रेस नेता देव कांत बरुआ ने नारा दिया था, जिसमे उन्होंने इंदिरा का साथ दिया था और कहा था कि- “इंदिरा भारत हैं और भारत इंदिरा है.”

साल 1996: कहते है कि वाजपेयी की भ्रष्टाचार मुक्त छवि को लेकर बनाए गए नारों के साथ BJP सत्ता में आई थी. इस दौरान अटल जी ने नारा दिया था “सबको देखा बारी-बारी, अबकी बार अटल बिहारी.”

साल 1998: कहा जाता है कि 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद अटल ने थोड़ा नारा बदला था.उन्होंने विज्ञान और तकनीक के बढ़ते महत्व को रेखांकित करते हुए कहा “जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान.”

साल 2004: कहा जा रहा है कि साल 2004 में कांग्रेस को सत्ता से हटाने के बाद बीजेपी ने ” शाइनिंग इंडिया ” का नारा दिया था लेकिन सोनिया गाँधी ने नारा दिया था “आम आदमी को क्या मिला?”, लोगों ने इसी नकारते हुए कांग्रेस को चुना था.

साल 2014: लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा ने हर- हर मोदी घर- घर मोदी,अच्छे दिन आएंगे और ‘अब की बार मोदी सरकार’ का नारा दिया था जबकि विपक्ष की तरफ से कांग्रेस ने ‘हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की’ और ‘कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’ का नारा दिया था.

साल 2019: 2019 लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस समय बीजेपी सत्ता में वापसी सुनिश्चित करने के लिए जोर लगा रही थी उसी बीच राहुल गाँधी के द्वारा राफेल घोटाले को लेकर कांग्रेस ने कहा” चौकीदार चोर है” तो BJP ने मौका भुनाया और नारा दिया ” मैं भी चौकीदार” और ‘मोदी है तो मुमकिन है’.

साल 2024: देश में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए जहाँ बीजेपी ने इस बार नारा दिया है- “अब की बार 400 पार”. तो वहीँ, दूसरी तरफ चुनावी सभा में ‘मोदी की गारंटी’ पर फोकस कर रही है. जबकि दूसरी तरफ लालू यादव ने पटना में इंडिया ब्लॉक की रैली को संबोधित करते हुए वंशवादी राजनीति का मुद्दा उठाने के लिए पीएम मोदी पर निशाना साधा और पूछा कि पीएम का परिवार क्यों नहीं है. फिर क्या PM MODI ने RJD मुखिया की इस बात पर करारा पलटवार करते हुए कहा कि “140 करोड़ भारतीय उनका परिवार है” और इसी के बाद पार्टी के शीर्ष नेताओं ने ‘मोदी का परिवार’ अभियान शुरू कर दिया.

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