‘इंसेफ्लाइटिस’ के आगे बेबस हुए सीएम योगी!
उत्तर प्रदेश के सीएम योगी ने जब से यूपी की सत्ता पर काबिज हुए हैं, तब से इंसेफ्लाइटिस से उनकी जंग और तेज हो गई थी, इस बीमारी से लड़ने के लिए बच्चों का टीकाकरण भी किया गया, करोड़ों रुपए सरकार खर्च कर रही है बावजूद उसके इस बीमारी से तमाम बच्चों की मौत हो गई। क्या योगी सरकार द्वारा चलाए जा रहे इस अभियान को सिर्फ कागजों पर ही उतारा जा रहा है, जिसकी वजह से इंसेफ्लाइटिस जैसी गंभीर बीमारी हर हर साल बच्चों को अपना निवाला बना रही है।
टीकाकरण के बाद भी नहीं थम रहा मौतों का सिलसिला
यीएम योगी कहते हैं कि वो जब से गोरखपुर के सांसद बने हैं तभी से इस बीमारी के खिलाफ सड़क से लेकर संसद तक इसके लिए लड़ते रहे हैं, लेकिन अगर जमीनी तौर पर देखा जाए तो परिणाम कुछ भी नजर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में इस साल भी तमाम बच्चों की मौत योगी सरकार पर इस बीमारी के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई पर सवालिया निशान खड़े कर रही है।
इंसेफ्लाइटिस से योगी की लड़ाई सिर्फ दिखावा
जब सरकार दावा कर रही है कि प्रदेश के 89 लाख बच्चों का टीकाकरण हो चुका है तो फिर इतने सारे बच्चों की मौत कैसे हो गई?क्या बीमारी के नाम पर सिर्फ पैसों का बंदरबाट किया जा रहा है? या फिर जनता को गुमराह किया जा रहा है? हाल ही में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एक साथ हुईं कई बच्चों की मौत ने भी यह साबित कर दिया है कि इंसेफ्लाइटिस से योगी की लड़ाई महज एक दिखावा है जिसका नतीजा सबके सामने है।
हम बात कर रहे हैं जैपनीज इंसेफ्लाइटिस की जिसकी वजह यूपी के पूर्वी इलाके जिसमें गोरखपुर भी शामिल है, यीएम योगी की इंसेफ्लाइटिस से लड़ाई बहुत पुरानी है सीएम योगी जब से गोरखपुर के सांसद बने तभी से इस घातक बीमारी से जनता के लिए सड़क से लेकर संसद तक इस बीमारी से लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन उसके बाद भी इस बीमारी से हर साल सैकड़ों बच्चे मौत के मुंह में चले जाते हैं।
25 मई को हुई थी शुरुआत
आप को बता दें कि यूपी के सीएम बनने के बाद 25 मई को मुख्यमंत्री ने कुशीनगर जिले के मुसहर बस्ती में 5 बच्चों को इंसेफ्लाइटिस का टीका लगाकर इस अभियान की शुरूआत की थी। इस अभियान के तहत 1-15 साल तक के बच्चों का टीकाकरण होना था। इसअभियान को 38 जिलों में 10 जून तक चलाया गया। इस दौरान प्रदेश के करीब 89 लाख बच्चों का टीकाकरण किया गया । इस अभियान को सफल बनाने के लिए पं. दीनदयाल उपाध्याय कैंप लगाकर बच्चों को टीकाकरण किया गया।
क्या है इंसेफ्लाइटिस
इंसेफलाइटिस एक घातक बीमारी है जो फ्लैविवाइरस के संक्रमण से होती है। सबसे पहले इस बीमारी को 1871 में जापान में देखी गई जिसकी वजह से जैपनीज नाम जोड़ा गया। ये बीमारी मच्छरों से फैलती है क्योंकि ये मच्छर ही इस बीमारी के वाहक माने जाते हैं। जैपनीज इंसेफलाइटिस एक ट्रॉपिकल बीमारी है मतलब(ये वो बीमारी है जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में झुग्गी-झोपड़ियों) में रहने वाले लोगों को अपना शिकार बनाती है।
कब हुई भारत में शुरूआत?
जैपनीज इंसेफलाइटिस का पता तमिलनाडु राज्य में सबसे पहले साल 1955 में पता चला था। उसके बाद धीरे-धीरे इस बीमारी ने भारत के कई राज्यों में अपना प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया। इस बीमारी ने धीर-धीरे कर्नाटक,त्रिपुरा,आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैल गई। वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाके गोरखपुर, गोंडा, देवरिया,महाराजगंज और बस्ती जैसे जिलों में एक महामारी की तरह फैल गई।
Also read : बाढ़ से डूब रहीं है करोड़ों की सम्पत्ति
सबसे पहले ये बीमारी पूर्वी उत्तर प्रदेश में साल 1978 में दिखाई दी जिसमें करीब 528 लोगों की मौत हुई थी। पिछले कुछ समय में इस बीमारी से होने वाली मौंतों में लगातार इजाफा हो रहा है।पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में सबसे ज्यादा मौतें होती है हर साल बावजूद इसके सरकार कोई कड़े इंतजाम नहीं कर रही है। जुलाई से लेकर नवंबर तक गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में सबसे ज्यादा मौंते इसी बीमारी से होती हैं
जैपनीज इंसेफलाइटिस के लक्षण
संक्रमण होने के बाद सिरदर्द और बुखार आना इसके मुख्य लक्षण हैं लेकिन जब बीमारी बढ़ जाती है तो सिरदर्द, बुखार, और गर्दन में अकड़न आ जाती है इसके अतिरिक्त मांसपेशियों में दर्द होने लगता है। इस बीमारी से संक्रमित व्यक्ति को झटके भी महसूस होते हैं और कभी-कभी रोगी कोमा में चला जाता है। इस बीमारी से बच्चों में गंभीर समस्याएं होने लगती है और लकवे की संभावना भी बढ़ जाती है साथ ही सोंचने समझने की शक्ति भी कम हो जाती है।
कैसे लगाएं पता
इस बीमारी का पता लगाने के लिए सेरीब्रोस्पाइनल फ्लूइड की जांच से बीमारी का पता लगाया जा सकता है। इस बीमारी का कोई विशेष इलाज नहीं है लेकिन फिर भी अगर सही समय से बीमारी के बारे में पता चल जाए तो पीड़ित की जान बचाई जा सकती है।
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)