Women’s Day Special: वह महिला पत्रकार जिसने पुरूष प्रधान पेशे में पुरूषों के दांत कर दिए थे खट्टे…
Women’s Day Special: विश्व भर में आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया रहा है. यह दिवस महिलाओं के सम्मान और उनके सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उत्थान को मजबूत बनाने के उद्देश्य से मनाया जाता है. देश में महिलाओं की स्थित हमेशा से ही सोचनीय रही है. बात हो अगर अधिकारों की तो, पुरूष प्रधान समाज में उनका अस्तित्व ना के बराबर ही आंका जाता है. हालांकि यह स्थिति आधुनिकता के दौर में काफी हद तक सुधरी है, लेकिन इस सुधार पर गर्व कर हाथ पर हाथ धर बैठ जाया जाए इतनी भी नहीं सुधरी है. क्योंकि, आज भी देश में ऐसे तमाम क्षेत्र, हिस्से हैं जहां महिलाओं के स्तर में बदलाव की जरूरत है और उससे भी ज्यादा महिलाओं की सोच में बदलाव लाने की जरूरत है.
लेकिन यदि आज महिला सशक्तिकरण का नारा बुलंद हो पाया है तो उसकी वजह इंदिरा गांधी, सरोजनी नायडू, किरण बेदी और हेमंत कुमारी देवी जैसी महिलाएं हैं. इसमें से हेमंत कुमारी देवी ने पुरूष प्रधान पेशे पत्रकारिता में आकर महिलाओं का जो लोहा मनवाया है वह काफी सराहनीय है. हेमंत कुमारी देवी ने उस समय में पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा था जब इस क्षेत्र क्या किसी भी क्षेत्र में महिलाओं का जाना मुश्किल हुआ करता था. इसके बाद भी पुरूष प्रधान समाज से लड़ते हुए हेमंत कुमारी ने न सिर्फ पत्रकारिता जगत में खुद की पहचान बनाई बल्कि बाकि महिलाओं का इस क्षेत्र में आने के लिए रास्ता भी बनाया. लेकिन यह सब कहने में जितना आसान लगता है उतना आसान रहा नहीं होगा. ऐसे में महिला दिवस के अवसर आइए जानते पुरूष प्रधान में महिला पत्रकार हेमंत कुमारी देवी के अस्तित्व निर्माण का संघर्ष…..
बचपन में सिर से उठ गया था मां का हाथ
हेमंत कुमारी देवी को पहली महिला पत्रकार के रूप में पहचान मिली. इन्होंने ही पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं के लिए रास्ता बनाया था. लेकिन पत्रकारिता में आने के बाद वे पत्रकारिता तक ही सीमित नहीं रही बल्कि उन्होंने पत्रकारिता के साथ संपादन, लेखन और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर भी अपनी पहचान बनाई. पत्रकारिता में उनका योगदान अद्वितीय है. वहीं बात करें अगर उनके निजी जीवन की तो, हेमंत कुमारी का जन्म 1868 में एक बंगाली परिवार में हुआ था. उनकी माता जी का बचपन में ही देहांत हो गया था. उनका पालन पोषण उनके पिता नवीनचंद राय किया था. उनके पिता लाहौर के ओरिएंटल कॉलेज में प्राचार्य पद पर कार्यरत थे. वह समाज सुधारक और ब्रह्म समाजी थे. वह विधवा विवाह और महिलाओं की शिक्षा के दृढ़ समर्थक थे.
लाहौर के क्रिश्चन गर्ल्स स्कूल में हेमंत कुमारी देवी की पढ़ाई हुई थी. उनके घर में पढ़ाई-लिखाई का वातावरण शुरू से ही रहा था. उनके पिता भी लेखक थे. यही कारण था कि अंग्रेज़ी के अलावा स्कूल में हिंदी, बांग्ला और संस्कृत भी पढ़ना सीख गयी थी. हेमंत कुमारी देवी को न सिर्फ धार्मिक शिक्षा दी गई, बल्कि उनकी शिक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया गया था. हेमंत कुमारी देवी कोलकाता में अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने के बाद फिर से लाहौर लौट आई. वह अपने पिता के साथ सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होने के साथ बैठकों में भाग लेने लगीं. उसी समय, महिलाओं की स्थिति को देखकर उन्होंने इस दिशा में कार्रवाई करने का निर्णय लिया.
ब्रिटिश शासन के दौरान हेमंत कुमारी ने पत्रकारिता में रखा था पहला कदम
ब्रिटिश शासन में उच्च पदों पर नियुक्त महिलाओं से उम्मीद की जाती थीं, जिसमें वे विभिन्न भूमिकाओं में काम कर रही थीं. यही वह दौर था जब महिलाएं पत्रकारिता में भी आनी शुरू हुई थी. साल 1880 से 1885 तक तीन महत्वपूर्ण महिला पत्रिकाओं की शुरुआत हुई, जिनका संपादन महिलाएं करती थीं. 1888 में हेमंत कुमारी देवी ने इसकी पहली पत्रिका, “सुगृहणी” का संपादन करने के साथ ही पत्रकारिता में एक महिला के तौर पर पहला कदम रखा था. यह पत्रिका हिंदी में प्रकाशित होती थी. हिंदी नवजागरण काल में किसी महिला ने पहली बार एक पत्रिका का संपादन किया था.
विद्या और साध्विता के भूषण से जब नारी अलंकृत होती है तब मैं उसे अंलकृता समझती हूं. सोने से भूषिता होने से ही अंलकृत नही होती” यह पंक्तियां है, भारत की पहली महिला पत्रकार हेमन्त कुमारी देवी की है जो विद्या और नारीत्व के गुणों को परिभाषित करते हुए पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया , जब देश अंग्रेजों का गुलाम था और नारी शिक्षा का अभाव था. उस समय, जब देश अंग्रेजी शासन के अधीन था, किसी महिला का पत्रकारिता में प्रवेश करना महत्वपूर्ण था और संपादक की भूमिका भी लेना उसके कहीं अधिक महत्वपूर्ण था.
इस वजह से एक दशक के बाद बंद हो गयी थी पत्रिका
वहीं हेमंत कुमारी के द्वारा संपादित की जा रही पत्रिका सुगृहणी ने महिलाओं संबंधित मुद्दे पर अपनी राय पेश करते हुए बहुत कम समय में ही बड़ी पहचान बना ली थी. इस पत्रिका में हेमंत कुमार स्वयं द्वारा विशेष पर्दा प्रथा, महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और शारीरिक स्वायत्ता को लेकर प्रमुख लेख प्रकाशित करती थीं. महिलाओं को शिक्षित करने के लिए उनकी पत्रिका के मुख्य पेज पर हमेशा एक संदेश होता था. पत्रिका के बंद होने के बाद भी देवी ने महिलाओं के सरोकार में काम करना जारी रखा. वह 1899 में फिर से सिलहट में रहने लगी. उन्होंने एक महिला समिति बनाई. साथ ही वहां जाकर उन्होंने दूसरी क्षेत्रीय भाषा की पत्रिका निकाली. हेमंत कुमारी देवी ने उम्र के साथ भी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपना काम जारी रखा. वह समाज सेवा का अवसर मिलते ही उससे जुड़ने में कभी पीछे नहीं हटीं.
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पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं का आंकड़ा
हेमंत कुमारी देवी ने एक अच्छी पत्रकार, संपादक, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षिका के बाद एक अच्छी प्रशासक भी बन गई. 1924 में वे देहरादून नगरपालिका के कमिश्नर बनीं. उन्होंने दस वर्षों तक इस पद पर काम किया. 1953 में वह हमेशा के लिए चली गईं. हेमंत कुमारी देवी ने अपने काम की वजह से अपना नाम इतिहास में दर्ज करवाया था. आधुनिकता के दौर में पत्रकारिता ने अपने मायने काफी हद तक बदल दिये हैं. आज यह पेशा मात्र पुरूषों का नहीं रहा है बल्कि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑनलाइन पोर्टलों में 26.3% शीर्ष पदों पर महिलाएं हैं, जबकि टीवी चैनलों में 20.9 % और पत्रिकाओं में 13.6% महिलाएं ब्यूरो प्रमुख, प्रधान संपादक, कार्यकारी संपादक या इनपुट/आउटपुट संपादक पदों पर हैं.