काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) स्थित संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय सभागार में सोमवार को पंचांग संगोष्ठी हुई. इसमें काशी से प्रकाशित पंचांगों में एकरूपता लाने पर चर्चा हुई. तय हुआ कि 19 फरवरी को काशी के ज्योतिषाचार्यों, पंचांगकारों और विद्वतजनों की संगोष्ठी होगी. ताकि पंचांगों में एकरूपता लाई सके और धर्मावलम्बियों में तिथि-पर्व को लेकर कोई मतभेद न रह जाय.
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कार्यक्रम का शुभारम्भ मां सरस्वती और विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ. विभाग के छात्रों ने वैदिक मंगलाचरण और कुलगीत प्रस्तुत किये. अतिथियों का स्वागत किया गया. संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य ज्योतिष, ज्योतिषी, समाज और धर्म की प्रतिष्ठा को संरक्षित करने के साथ काशी से प्रकाशित होने वाले पंचांगों में व्रत, पर्वों में धर्मशास्त्रीय आधार से एकरूपता स्थापित करना है.
गणितीय और धर्मशास्त्रीय आधार पर एकरूपता लाने का हो रहा प्रयास
इस विषय पर गहन विमर्श और सर्वमान्य हल निकालने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पंचांग अनुभाग की ओर से सभी ज्योतिर्विदों, पंचांगकारों और विद्वत्जनों की माघ शुक्ल दशमी यानि 19 फरवरी सोमवार को सुबह दस बजे से संगोष्ठी आहूत की गयी है. आज की संगोष्ठी में काशी से प्रकाशित होने वाले सभी पंचांगकारों द्वारा संवत 2082 के प्रकाशित होनेवाले पंचांगों में एकरूपता लाने पर चर्चा हुई. पूरे वर्ष के सभी व्रत-पर्व आदि का परस्पर मिलान करते हुए गणितीय और धर्मशास्त्रीय आधार पर एकरूपता स्थापित करने का प्रयास किया गया. ताकि पंचांग से सम्बन्धित व्रत-पर्व-आदि में एकरूपता लाते हुए ज्योतिष शास्त्र की मर्यादा को संरक्षित किया जा सके.
लोक प्रसिद्ध शास्त्र रहा है ज्योतिष
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉक्टर सुभाष पांडेय और डॉक्टर विनय कुमार पांडेय ने बताया कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र अपनी उत्पत्ति काल से ही लोकोपकारक और लोक प्रसिद्ध शास्त्र रहा है. उत्सवधर्मी भारतीय समाज के व्रत-पर्व-उत्सव सहित सभी धार्मिक कृत्य भारतीय ज्योतिष के सिद्धान्तों पर आधारित पंचांग द्वारा ही निर्धारित और संचालित होते हैं. लेकिन विभिन्न मतों, सिद्धान्तों, विधियों से निर्मित पंचांगों में गणितीय मानों की भिन्नता के कारण भेद दिखाई देने लगा है. इससे ज्योतिष, ज्योतिषी और सनातन धर्म को लेकर समाज में अनास्था उत्पन्न हो रही है. इसको व्यवस्थित करने का दायित्व मुख्य रूप से वाराणसी के सभी पंचांगकारों और विद्वतजनों का ही है. क्योंकि कहीं भी धर्म एवं शास्त्र से सम्बन्धित भ्रान्ति उत्पन्न होने पर समग्र समाज काशी की ओर ही देखता है. परन्तु वर्तमान में काशी से प्रकाशित पंचांगों में भी गणितीय मानों की भिन्नता के कारण भेद दिखाई देता है.