Dastan-e-Uttar Pradesh: जानें कब से अस्तित्व में आया उत्तर प्रदेश ?

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Dastan-e-Uttar Pradesh: 4000 हजार सालों की अच्छी, बुरी यादें समेटे मैं हूं उत्तर प्रदेश …किसी ने खंगाला तो किसी ने पन्नों में दबा दिया लेकिन जो मेरे अंदर रचा बसा है वो मैं आज कहने जा रहा हूं और शायद यह सही समय है अपने इतिहास के पन्नों को एक बार फिर से पलटने का. क्योंकि जिस काल से मेरा अस्तित्व बना एक बार मैं फिर उसी कालक्रम का साक्षी बन पाया हूं. यह सब शायद आपको समझ न आ रहा हो क्यों कभी किसी ने इस इतिहास के पन्नों को पलटा ही नहीं …लेकिन आज मैं अपने अस्तित्व के दूसरे पन्ने के साथ आपको सुनाने जा रहा हूं अपने अस्तित्व में आने के काल यानी वैदिक काल की कथा…..

आर्यकाल में मिलता है उत्तरप्रदेश का उल्लेख

आप यदि प्रारंभिक वैदिक काल को देखेंगे तो, शायद ही आपको कहीं वर्तमान उत्तर प्रदेश का सीधा उल्लेख देखने को मिले, यहां तक की उत्तर प्रदेश की मशहूर नदियों का भी उल्लेख आर्यों के आने के बाद ही मिलता है, क्योंकि आर्यों के आने तक मानव जीवन कबीलों में ही व्यतीत हुआ करता था. इसके बाद वैदिक काल की शुरूआत के कुछ सालों के बाद आपको सप्त सिंधु की जगह ब्रह्मर्षि देश या मध्य देश का उल्लेख देखने को मिलता है और फिर यही वह काल था जब से उत्तर प्रदेश भारत का एक पवित्र स्थान, एक प्रमुख केंद्र के रूप में अस्तित्व में आना शुरू हो गया था.

इसके साथ ही मध्य वैदिक काल आते आते उत्तर प्रदेश में नए राज्यों का निर्माण भी शुरू हो गया था. इनमें नये राज्य के तौर पर कुरू – पांचाल में काशी और कोसल एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र के रूप में अस्तित्व में आए थे. उस समय कुरू और पांचाल के लोगों को वैदिक संस्कृति के मुख्य प्रतिनिधि के रूप में देखा जाने लगा था. वे संस्कृत के महान ज्ञानियों के तौर पर जाने लगे थे. यहां तक कि उपनिषदों में भी पांचाल परिषद का ज़िक्र हुआ है, जिसमें अश्वमेध यज्ञ का भी उल्लेख है. उपनिषदों में जितने भी ऋषियों का वर्णन है उनमें से अधिकतर के आश्रम वर्तमान उत्तर प्रदेश में ही थे जैसे : भरद्वाज, वशिष्ठ, वाल्मीकि, अत्रि, याज्ञवलक्य आदि…

इन धार्मिक घटनाओं का साक्षी रहा उत्तर प्रदेश

इसके साथ ही जिस सांस्कृतिक विरासत की नींव मध्य वैदिक काल में स्थापित हुई वह उत्तर वैदिक काल तक बनी रही है. वहीं रामायण काल में यह संस्कृति रामायण काल में जहां कोसल के शौर्य राजवंश के इर्दगिर्द घुमती रही. इस बात को उत्तर प्रदेश वासी आज भी विश्वास के साथ कहते हैं कि, महर्षि वाल्मीकी का आश्रम ब्रम्हवर्त यानी कानपुर के बिठूर में नैमिषारण्य यानी सीतापुर के आसपास है जहां सुता ने महाभारत सुनाई थी. इतना ही नहीं हिंदू धर्म का दो पवित्र ग्रंथों और हिंदू धर्म में सर्वाधिक पूजे जाने वाले भगवान राम और कृष्ण का जन्म भी उत्तर प्रदेश की पवित्र भूमि पर ही हुआ है. वे क्रमशः अयोध्या और मथुरा में जन्मे थे और आज के समय में यह दोनों स्थल बड़े धार्मिक स्थलों के रूप में स्थापित है.

आज का अयोध्या, जिसे मध्य वैदिक काल में औध या अवध के नाम से जाना जाता था. यह दक्षिण – मध्य उत्तर प्रदेश का काफी महत्वपूर्ण शहरों में से एक था. वर्तमान समय में इसे फैजाबाद शहर के पूर्व में घाघरा नदी पर बसाया गया है. हिंदुओं के सात पवित्र शहरों में से एक अयोध्या के धार्मिक जुड़ाव ने ऐसे साक्ष्य दिए हैं कि तत्कालीन शहर बेहद समृद्ध था और एक बड़ी आबादी का भरण-पोषण करने वाला राज्य था. इतिहास में अयोध्या उस समय कोसल राज्य की राजधानी रही थी, जो बाद में बौद्ध काल (6ठी-5वीं शताब्दी ईसा पूर्व) तक आते-आते श्रावस्ती राज्य का प्रमुख शहर बन गया था.

मधुवन ऐसे बना मथुरा

अयोध्या की भांति ही मथुरा भी उत्तर प्रदेश दस मुख्य धार्मिक स्थलों में से एक है और भारतीय उपमहाद्वीप में खासकर हिंदूओं के लिए काफी महत्वपूर्ण स्थल रहा है. इसके साथ ही मथुरा भगवान कृष्ण की जन्मस्थली होने की वजह से हिंदुओं के सात पवित्र शहरों में से एक है. वहीं भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण के मुताबिक इस शहर सबसे पहले उल्लेख रामायण में मिलता है. इस शहर को लेकर रामायण में लिखा गया है कि इस शहर में इक्ष्वाकु वंश के राजकुमार शत्रुघ्न ने लवनासुर नामक एक राक्षस का वध कर दिया था. इस के पश्चात इस शहर को मधुवन के नाम से जाना जाने लगा, क्योंकि बताते हैं कि इस स्थान पर घने जंगल हुआ करते थे. यही नाम पहले मधुवन, फिर मधुपुरा और फिर मथुरा नाम से जाना जाने लगा.

व्यापार का मुख्य केंद्र रहा मथुरा

पुरातात्विक उत्खनन मथुरा का विकास गांव के तौर पर बताया जाता है, जो वैदिक काल में अस्तित्व में आया होगा. इसके साथ ही बताते हैं कि, यह क्षेत्र गंगा और यमुना नदी के नजदीक होने की वजह से प्रारंभिक अवस्था से ही व्यापार का मुख्य केंद्र रहा होगा. इसके पश्चिमी तट और मालवा (मध्य भारत) से दक्षिण की ओर व्यापार होता था. पुरातत्वविभाग ने भी राखीगढ़ी से लाल बलुआ पत्थर के टुकड़े की खोज की है, जो 3000 हज़ार साल पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता के समय का बताया जाता है और पहले इसे ग्रिंडस्टोन के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. उस समय मूर्तियों के निर्माण करने के लिए लाल बलुआ पत्थर बहुत महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक माना जाता था.

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वैदिक काल को उत्तर प्रदेश की भ्रूण अवस्था भी कहा जा सकता है. यह स्थान पहले से ही अपनी भौगोलिक स्थिति से लाभ उठाता रहा है. हिमालय की तलहटी और वर्ष भर बहने वाली दो महत्वपूर्ण नदियों का मैदान होने से यह स्थान किसी भी मानव सभ्यता की शुरुआत के लिए एक अच्छा स्थान था, जो अंततः हुआ भी…।

इस कड़ी में कल पढ़े बौद्धकाल का उत्तर प्रदेश …

 

 

 

 

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