नालंदा परम्परा के अनुसार होगा शोध, ग्रंथों का होगा प्रकाशन-कुलपति प्रो. वाड्रन्छुक दोरजे नेगी

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भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने वाराणसी के सारनाथ स्थित केंद्रीय उच्च तिब्बती संस्थान का प्रो. वाड्रन्छुक दोरजे नेगी को 5 वर्षों के लिए कुलपति नियुक्त किया है. सोमवार को कार्यभार ग्रहण करने के बाद वह संस्थान में पत्रकारों से मुखातिब हुए. प्रो. नेगी इससे पहले विश्वविद्यालय के कुलपति पद का अतिरिक्त प्रभार का निर्वहन कर रहे थे.

प्रो. वाड्रन्छुक दोरजे नेगी ने बताया कि वह तेरह अप्रैल 2023 से विश्विद्यालय के कुलपति के पद का अतिरिक्त प्रभार का निर्वहन कर रहे थे. कुलपति नियुक्त होने के बाद उन्होंने अपनी प्राथमिकताएं बताई. कहाकि विश्वविद्यालय के उन ग्रन्थों का अनुवाद और प्रकाशन करना है जो मूल रूप से संस्कृत भाषा में लिखे गए थे.

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अब तिब्बती अनुवाद में उपलब्ध हैं यह ग्रंथ

लेकिन कालक्रम में वह विलुप्त हो गए. लेकिन यह ग्रंथ तिब्बती अनुवाद के रूप में आज भी उपलब्ध है. इस कार्य को दक्षता से करने के लिए तिब्बती शास्त्रीय विद्वानों की आवश्यकता है. प्रो. नेगी ने बताया कि नालंदा परम्परा को ध्यान में रखते हुए स्तरीय शोध योजनाओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हाल में ही अनुसंधान संहिता का प्रकाशन किया गया है. उसी के अनुरूप शोध करने के लिए छात्र-छात्राओं को प्रेरित किया जाएगा. ताकि उच्च स्तरीय शोध प्रबंध तैयार किया जा सके. शोध एवं प्रशासन के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संस्थाओं के साथ सहयोग को बढ़ावा दिया जाएगा. कुलपति ने कहा कि नई शिक्षा नीति के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए छात्र संख्या को बढ़ावा देना है. योग, विपश्यना, संस्कृत, पाली भाषा के साथ सोवा रिम्पा, भोट ज्योतिष, तिब्बती थनका पेंटिंग, तिब्बती काष्ट कला, एक वर्षीय ऑनलाइन डिप्लोमा, व्यावसायिक पाठ्यक्रम शीघ्र ही संचालित किए जाएंगे. सांध्यकालीन कक्षाएं भी शुरू की जाएंगी.

बौद्ध परम्परा को पुनः स्थापित करेंगे

उन्होंने कहाकि वर्ष 1967 में स्थापित इस विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य 13वीं शदी के बाद विलुप्त हो रहे बौद्ध धर्म को पुनः स्थापित करना है. वर्तमान समय में केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान में लगभग 2000 छात्र-छात्राएं अध्यनरत हैं. प्रेस वार्ता के दौरान मौके पर कुलसचिव सुनीता चंद्रा, उप कुलसचिव हिमांशु पांडेय आदि रहे.

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