अंधेरे मे डूबा दिल्ली की सबसे पुरानी हरदयाल लाइब्रेरी का भविष्य
चाँदनी चौक मेट्रो स्टेशन से निकाल कर टाउन हॉल की तरफ आगे बढ़ते ही 100 मीटर पर Hardayal Municipal Library से आपका आमना-सामना होगा. जैसे ही शहर में रात होती है, चांदनी चौक की हलचल भरी गलियाँ जगमगा हो उठती हैं और पुरानी दिल्ली का परिदृश्य दिखाई देने लगता है. अंधेरे में डूबी इस चमचमाती गली के बीच में, लाला हरदयाल म्यूनिसिपल हेरिटेज लाइब्रेरी है.
पुरानी दिल्ली के मध्य मे 161 साल पुरानी लाइब्रेरी आज बिना बिजली, बिना पानी, और अपनी मूल-भूत सुविधाओं से वंछित है. 1862 के अपने प्रारंभिक वर्षों में, पुस्तकालय को चांदनी चौक में लॉरेंस इंस्टीट्यूट (वर्तमान में टाउन हॉल) के भीतर अंग्रेजों के लिए एक रीडिंग रूम की तरह स्थापित किया गया था, जिसमें अधिकांश किताबें अंग्रेजों द्वारा दान की गई थीं.
MCD करता है देखभाल, लेकिन हालत है बेहाल
चाँदनी चौक के गांधी मैदान मे हरदयाल म्युनिसिपल लाइब्रेरी अब दिन के उजाले मे भी अंधेरे को अपने बुकशेल्फ मे पनाह दे रही है; कारण इस लाइब्रेरी की उम्र नहीं बल्कि राजनैतिक खींचतान के मामले है. वहाँ के स्टाफ मे आक्रोश है और वेतन ना मिलने पर लाइब्रेरी एक विशाल पेड़ बिना पत्तों की तरह हो चुकी है. करीब तीन साल से यहाँ पर ऑपरेटिंग कॉस्ट के लिए एक रुपए भी नहीं है. लाइब्रेरी मे मिलने वाली सारी सेवाएं अब नेस्तनाबूत हो चूंकि है. मोटी परत की धूल ने इन पुरानी किताबों का सांस लेना मुश्किल कर दिया है.
32 महीने से नहीं मिला वेतन
इतनी पुरानी लाइब्रेरी जो भारत के इतिहास का प्रारूप आज के समय मे दर्ज करती है उसकी कमर टूट चुकी है. करीब 32 महीने से वेतन न मिलने के कारण कर्मचारियों की नाराज़गी साफ जाहीर हो रही है. लाइब्रेरी मे कई सालों से काम कर रहे योगेश शर्मा ने बताया कि “32 महीने से वेतन न मिलने के कारण यहाँ पर काम कर रहे स्टाफ धरने पर बैठे थे. 495 दिन बाद जब प्रशासन ने मांगे सुनी तब यह धरना खत्म हुआ है. इस लाइब्रेरी से मेरी और हम सबके परिवार की भी उम्मीदें जुड़ी है”.
जंतर मंतर से लेकर एलजी हाउस तक हुआ धरना
495 दिन के धरने की आगज़ लाइब्रेरी के बाहर एक पेड़ के नीचे शुरू हुई थी. जब किसी तरह की राहत नहीं मिली तब 5 दिन तक दिल्ली के जंतर मंतर मे भी विरोध प्रदर्शन चलता रहा. इतना ही नहीं बल्कि तीन बार यह धरना दिल्ली एलजी हाउस तक भी जा पहुंचा. हालकि इसका अंत तब हुआ जब मेयर शैली ओबेरॉय ने आकार कर्मचारियों से बात की और उन्हे आश्वासन दिया कि जल्द से जल्द समस्या का सामाधान हो जाएगा.
लाइब्रेरी के लिए 11 करोड़ की ग्रांट है पेंडिंग
35 वर्षों से काम कर रहे ऐक्टिंग लाइब्रेरीअन राजेन्द्र जटाव ने बताया कि पिछले तीन वर्षों से लाइब्रेरी के लिए आने वाली ग्रांट रुकी हुई है. वित्तीय वर्ष 2021-22 के 2 करोड़ 26 लाख, 2022-23 के 4 करोड़ 11 लाख और 2023-24 के करीब 4 करोड़ 11 लाख रुपए अभी तक सरकार की तरफ से रिलीज नहीं हुए है. 5.5 लाख रुपए बिजली के बिल का भुगतान नहीं करने की वजह से पिछले दो महीने लाइब्रेरी बिना बिजली के चल रही है.
MCD का गठन ….
आपको बता दें कि दिल्ली नगर निगम विश्व की सबसे बड़ी नगर पालिका संगठन है. इसका गठन 7 अप्रैल 1958 को किया गया था. इसका उद्देश्य दिल्लीवासियों को बेहतर सुविधाएँ और उनके रख- रखाव के लिए एक जिम्मेदार संगठन का होना था.
2021 -22 में थी BJP की सरकार….
गौरतलब हैं कि 2021- 22 में MCD में भाजपा की सरकार थी. भाजपा ने लाइब्रेरी के लिए फंड तो जारी किया लेकिन उसके पीछे जांच लगा दी. जांच का आलम यह हुआ कि अभी तक लाइब्रेरी को एक भी ग्रांट का पैसा नहीं मिला हैं. हालकि आम आदमी पार्टी की सरकार मे भी लाइब्रेरी को किसी तरह की राहत नहीं मिली.
राजनीति की भेंट चढ़ती जा रही लाइब्रेरी…
दिल्ली की सबसे पुरानी लाइब्रेरी यानी ज्ञान का मंदिर अब दो पार्टियों के बीच राजनीतिक भेंट चढ़ता जा रहा है. आलम ऐसा हो चुका है कि वहां के कर्मचारियों को पिछले 400 से अधिक दिनों से धरने पर बैठे हुए थे. लेकिन अभी तक सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. ज्ञान का मंदिर कहे जाने वाली लाइब्रेरी अब एक राजनीतिक अखाड़ा बनकर तैयार हो गई है. MCD में जो भी सरकार अपना दावा ठोकती है वह सबसे पहले भ्रष्टाचार को लेकर हमला बोलते हैं लेकिन उस भ्रष्टाचार के बीच लाइब्रेरी के कई कार्यकर्ता और छात्र पिस्ते जा रहे हैं
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बच्चों को उठानी पड़ रही है मुश्किलें
वह स्थान जहां सपनें पन्नों मे उड़ते है और ज्ञान की ध्वनि लगातार बजती रहती है, उसे कहते है लाइब्रेरी. दिल्ली की हरदयाल म्युनिसिपल लाइब्रेरी भी बच्चों के लिए कुछ ऐसा ही हुआ करती थी. ना जाने कितने राष्ट्र सेवक इसी लाइब्रेरी से पढ़कर आज देश की सेवा कर रहे है. लेकिन बढ़ती समस्या ने अब बच्चों के सपनों पर पानी फेरना शुरू कर दिया है.
मोबाईल टॉर्च की रोशनी मे पढ़ रहे है बच्चे
अपनी मूल-भूत सुविधाओं से वंछित हरदयाल म्युनिसिपल लाइब्रेरी के छात्र अब मोबाईल टॉर्च और बैटरी वाली लाइट की रोशनी मे पढ़ाई कर रहे है. लाइब्रेरी मे करीब 4 बाथरूम है जिसमे से एक भी काम नहीं करते है. साफ पानी पीने की कोई सुविधा नहीं है. छात्रों से बात करने पर पता चल कि लाइब्रेरी में उनकी बेसिक नीड भी पूरी नहीं हो पा रही है. ऐसे मे किसी भी परीक्षा की तैयारी कर पाना उनके लिए बहुत मुश्किल हो चुका है.
शिक्षा के मंदिर में पसरा सन्नाटा
शिक्षा के मंदिर मे राजनीति और गूठबाज़ी ने कर लिया है कब्ज़ा. आलम यह है कि चाह कर भी हरदयाल म्युनिसिपल लाइब्रेरी अपने पुराने रूप मे नहीं आ पा रही है. बंद पंखों के नीचे किसी टॉर्च की रोशनी मे पढ़ाई करने वाला एक लड़का ऐसी व्यवस्था को देखकर हताश है. सवाल यह है कि आखिर इतनी पुरानी लाइब्रेरी और ये निष्पक्ष किताबों का क्या कसूर है? आखिर वो बच्चे जो हर दिन इसी लाइब्रेरी के किसी डेस्क पर अपने सपने बुन रहे, क्या उन्हे पढ़ाई करने का हक नहीं…. ?
इन अलमारियों मे बंद उन वीर सैनिकों की कहानी अब धूल फांक रही है. अगर यह किताबें कुछ बोल पाती तो शायद आज इनके सभी पाने रोते और इनके आँसू देश की शिक्षा प्रणाली पर दाग बनकर रह जाते.
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