रसूखदारों की पूरी कोशिश ‘बेटा बचाओ’ पर केंद्रित
जब कभी कानून उल्लंघन का मामला सामने आता है तो इसी के साथ यह भी सामने आता है कि नियम-कायदे आम आदमी के लिए कुछ और होते हैं तथा विशेषाधिकार प्राप्त तबके और उनके बिगड़ैल औलादों के लिए कुछ और। चंडीगढ़ में हरियाणा भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष सुभाष बराला के बेटे और उसके एक दोस्त द्वारा हरियाणा के एक वरिष्ठ आईएस अफसर की बेटी का पीछा करने, रोकने और लगभग अगवा करने के मामले में भी यही साबित हो रहा है।
read more : मेधा के अहिंसक आंदोलन से डर गई शिवराज सरकार!
चंडीगढ़ पुलिस के एक अफसर ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर मीडिया से कहा, “जब से यह बात सामने आई है कि गिरफ्तार युवक हरियाणा भाजपा अध्यक्ष का बेटा है, रसूखदारों की पूरी कोशिश ‘बेटा बचाओ’ पर केंद्रित हो गई है। चंडीगढ़ पुलिस पर मामले को कमजोर करने के लिए दबाव डाला जा रहा है।”
पुलिस के रवैये ने निश्चित ही हैरानी
‘बेटा बचाओ’ हरियाणा भाजपा नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कन्या सशक्तीकरण अभियान ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का गुणगान करते रहने पर किया गया कटाक्ष है।पीड़िता (29) और उसके पिता को मामले के शुरू में चंडीगढ़ पुलिस की कार्रवाई पर तब काफी संतोष हुआ था जब मुख्य आरोपी विकास बराला (23) और उसके दोस्त आशीष कुमार (22) को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन, उसके बाद से उन्हें चंडीगढ़ पुलिस के रवैये ने निश्चित ही हैरानी हो रही है।
अपहरण की कोशिश की
दोनों आरोपियों ने पीड़िता की कार का अपनी एसयूवी से पीछा किया था और उसका रास्ता रोकने की कोशिश की थी। इनमें से एक ने कार का दरवाजा खोलने की कोशिश की थी और खिड़की के शीशे खटखटाए थे लेकिन वह कार को भगा ले जाने में कामयाब रही थी। बाद में उसने पुलिस को मामले की जानकारी दी और फेसबुक पर लिखा कि लड़कों ने उसके अपहरण की कोशिश की थी।
‘अगवा का प्रयास’ और ‘शीलभंग’ को साफ दर्ज
पीड़िता ने लिखा, “इन लड़कों ने सोचा कि या तो वो मेरी कार में घुस आएंगे या फिर अपनी गाड़ी में मुझे खींच लेंगे, सिर्फ इस सोच के साथ कि उनकी पृष्ठभूमि रसूखदार लोगों की है।”प्राथमिकी में पुलिस ने ‘अगवा का प्रयास’ और ‘शीलभंग’ को साफ दर्ज किया था लेकिन आरोपियों के खिलाफ मामला संबंद्ध धाराओं में दर्ज नहीं किया गया। उन पर कमजोर जमानती धाराएं लगाई गईं। नतीजा यह हुआ कि आरोपी चंद घंटों में ही जमानत पर छूट गए।
गैरजमानती धाराएं नहीं लगाईं
पुलिस उपाधीक्षक सतीश कुमार ने माना कि पीड़िता ने ‘अगवा का प्रयास’ और ‘शीलभंग’ का उल्लेख किया था लेकिन सीआरपीसी के सेक्शन 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान में उसने इसका उल्लेख नहीं किया। इस वजह से पुलिस ने कड़ी, गैरजमानती धाराएं नहीं लगाईं।अगवा के प्रयास’ को मामले से पूरी तरह निकाल दिया गया है। मीडिया और सामाजिक व राजनैतिक हलकों में आलोचना के बाद अब चंडीगढ़ पुलिस ने कहा है कि वह मामले में कानूनी सलाह ले रही है। मामले और इसकी जांच पर वरिष्ठ अफसरों की चुप्पी बता रही है कि वे दबाव में हैं।चंडीगढ़ से सांसद किरन खेर ने मामले से यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया है कि उनका चंडीगढ़ पुलिस पर कोई नियंत्रण नहीं है।
इस्तीफे की संभावना से इनकार
केंद्रशासित होने के कारण चंडीगढ़ सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के नियंत्रण में आता है। चंडीगढ़ के प्रशासक वी. पी. सिंह बाडनोर पंजाब के राज्यपाल भी हैं। वह राजस्थान से भाजपा सांसद रह चुके हैं। अपनी पारदर्शी छवि और स्वच्छ प्रशासन का दावा करने वाले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर राज्य भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला का यह कह कर बचाव कर रहे हैं कि उनके बेटे का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने सुभाष बराला के इस्तीफे की संभावना से इनकार किया।
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)