दिल्ली ‘सेवा बिल’ से कितनी कम हो जाएगी केजरीवाल की शक्तियां?
केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक विधानसभा में पेश करने वाली है. इस बिल के विरोध में विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं. केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी ने पहले ही साफ कर दिया था कि वह इस बिल को मानसून सत्र में लाएगी. मंगलवार यानी 25 जुलाई को इस बिल को कैबिनेट की मंजूरी भी मिल गई है.
इस बिल का असर दिल्ली पर पड़ेगा और फिलहाल इसे लेकर सबसे ज्यादा चिंतित दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी (AAP) को है. दिल्ली सेवा विधेयक से दिल्ली के मुख्यमंत्री और दिल्ली सरकार की शक्तियां काफी हद तक कम हो जाएंगी. उनका अपने क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारियों पर पूरा नियंत्रण होगा और ये सारी शक्तियां उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार के पास चली जाएंगी.
जब इस बिल को अध्यादेश के रूप में लाया गया था, तभी से आम आदमी पार्टी इसे लेकर सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक खड़ी थी. इसके बाद विपक्षी एकता में शामिल होने के लिए आम आदमी पार्टी ने सभी विपक्षी दलों के सामने इस बिल के खिलाफ एकजुट होने की शर्त रखी है. इस बिल का केजरीवाल और दिल्ली सरकार की शक्तियों पर क्या असर होगा, उससे पहले इस बिल को समझने की जरूरत है.
यह बिल कहां से आया?
यह बिल केंद्र सरकार द्वारा 19 मई 2023 को लाए गए उस अध्यादेश की जगह लेगा, जिसके जरिए सरकार ने दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. इस बिल और उससे पहले के अध्यादेश के आने की शुरुआत साल 2015 से होती है. जब केंद्रीय गृह मंत्री ने एक अधिसूचना के जरिए दिल्ली में तैनात सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ ट्रांसफर और पोस्टिंग समेत कार्रवाई करने के सारे अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिए थे. दिल्ली के उपराज्यपाल.
यहीं से दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच खींचतान भी शुरू हो गई. दिल्ली सरकार के लिए काम करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति की कमी ने ही आम आदमी पार्टी को इस मुद्दे को अदालत में ले जाने के लिए मजबूर किया। मामला हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट, छोटी बेंच से लेकर बड़ी बेंच तक पहुंचा. आखिरकार 11 मई को देश की सर्वोच्च अदालत की पांच जजों की बेंच ने आदेश दिया कि दिल्ली सरकार को पुलिस, कानून व्यवस्था और भूमि को छोड़कर दिल्ली में कार्यरत सभी अधिकारियों पर कार्रवाई करने और ट्रांसफर-पोस्टिंग करने का अधिकार है.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटा…
इस आदेश से उपराज्यपाल की शक्तियां कम हो गईं और दिल्ली सरकार को वो शक्तियां मिल गईं जो अन्य राज्यों में चुनी हुई सरकारों को हैं. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के एक हफ्ते बाद ही केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया. इस अध्यादेश के मद्देनजर दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण (NCCSA) नामक एक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा, जो दिल्ली में तैनात अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग सहित अनुशासनात्मक कार्यवाही से संबंधित निर्णय लेगा.
NCCSA में तीन लोग होंगे – दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और प्रधान गृह सचिव. अथॉरिटी में बहुमत से फैसला लिया जाएगा और उस फैसले को दिल्ली के उपराज्यपाल के पास भेजा जाएगा. अगर उपराज्यपाल को उस फैसले पर आपत्ति है तो वह उसे वापस भेज सकते हैं. अगर प्राधिकरण और उपराज्यपाल के बीच किसी फैसले को लेकर विवाद होता है तो उपराज्यपाल का फैसला ही अंतिम फैसला माना जाएगा.
अब सरकार बिल लेकर आई…
इस अध्यादेश के बाद तय हुआ कि केंद्र सरकार इस संबंध में कानून बनाएगी और लोकसभा में बिल लाएगी. मानसून सत्र के कामकाज को लेकर बनी सूची में इसका जिक्र किया गया है. वहीं विपक्षी दल भी इसका विरोध करने के लिए जमकर तैयारी कर रहे थे. आम आदमी पार्टी ने विपक्षी समूह इंडिया में शामिल होने के लिए कांग्रेस के सामने शर्त रखी है कि पहले उसे इस बिल पर अपना रुख साफ करना होगा और सदन में इसके खिलाफ वोट करना होगा.
केंद्र सरकार इस बिल को जल्द ही लोकसभा में पेश करने की तैयारी में है. वहीं, विपक्षी पार्टियां भी इसका विरोध करने को तैयार हैं. जनता दल यूनाइटेड ने अपने सभी सांसदों को लोकसभा और राज्यसभा में उपस्थित होने के लिए व्हिप जारी किया है. विपक्ष उन सांसदों को भी सदन में लाने की तैयारी में है, जिनकी तबीयत ठीक नहीं है. इनमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और जेएमएम सांसद शिबू सोरेन भी शामिल हैं.
केजरीवाल पर क्या असर?
इस बिल को लेकर सबसे ज्यादा चिंता आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल को है. दरअसल दिल्ली ही आम आदमी पार्टी की राजनीति की शुरुआत और केंद्र है. वहीं, इस बिल की जड़ में भी दिल्ली है. इस बिल के आने के बाद दिल्ली सरकार और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की शक्तियां कम हो जाएंगी. ऐसे प्रभावित होंगी केजरीवाल और दिल्ली सरकार की शक्तियां-
-NCCSA में दिल्ली के मुख्यमंत्री को भी शामिल किया जा सकता है, लेकिन इसमें मौजूद दो प्रशासनिक अधिकारी – दिल्ली के मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव मिलकर अपना निर्णय बदल सकते हैं, क्योंकि इस प्राधिकरण में निर्णय बहुमत से लिया जाएगा और बहुमत प्रशासनिक अधिकारियों का है.
-अगर मुख्यमंत्री को प्राधिकरण में प्रशासनिक अधिकारियों का समर्थन मिलता है, तो भी एनसीसीएसए को निर्णय लेने के लिए उपराज्यपाल को सिफारिश भेजनी होगी. अंतिम फैसला उपराज्यपाल का ही होगा. यानी अथॉरिटी की राय का भी कोई मतलब नहीं रह जाएगा. सारे अधिकार उपराज्यपाल के पास ही होंगे.
-दिल्ली सरकार अपने अधीन काम करने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के अधिकार से वंचित हो जाएगी और न ही सरकार अपनी मर्जी से किसी अधिकारी का ट्रांसफर या पोस्टिंग कर सकेगी.
-इस बिल के बाद दिल्ली सरकार को सेवाओं से संबंधित कोई भी कानून बनाने का अधिकार नहीं होगा.
-उपराज्यपाल के जरिए केंद्र सरकार को दिल्ली में तैनात अधिकारियों और कर्मचारियों के कार्यकाल, वेतन, भत्ते और सेवा पर नियम बनाने की शक्ति मिल जाएगी.
-यदि सरकार के पास अपने ही क्षेत्र में तैनात अधिकारियों पर नियंत्रण रखने की शक्ति नहीं होगी तो विधायिका के साथ-साथ जनता के प्रति भी उसकी जिम्मेदारी कम हो जायेगी.
-अरविंद केजरीवाल का कहना है कि इस बिल के बाद दिल्ली में तानाशाही शुरू हो जाएगी, जिसका सर्वोच्च उपराज्यपाल होगा. लोग वोट किसी को भी दें, लेकिन दिल्ली को केंद्र सरकार चलाएगी.
Also Read: ज्ञानवापी पर CM योगी बोले, मस्जिद कहेंगे तो विवाद होगा, त्रिशूल अंदर क्या कर रहा ?