भगवान परशुराम ने शुरू की थी कांवड़, यूपी के बागपत में किया था अभिषेक
भगवान भोलेनाथ को मनाने के लिए सावन मास को काफी उत्तम माना गया है। हिंदू ग्रंथों में भी सावन का महत्व अधिक बताया गया है। भगवान का अभिषेक करने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से गंगा जल भरकर कांवड़ लाते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कांवड़ का प्रारंभ कैसे हुआ था। किसने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की थी। आज हम आपको कांवड़ से जुड़ी कई रोचक जानकारियां बताने जा रहे हैं।
कैसे शुरु हुई कांवड़ यात्रा
कांवड़ यात्रा हिंदुओं के लिए अश्वमेघ यज्ञ के फल के समतुल्य माना गया है। कांवड़ यात्रा का इतिहास काफी पुराना है। मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। परशुराम गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर आए थे। भगवान परशुराम ने यूपी के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का गंगाजल से अभिषेक किया था। बताया जाता है कि जब भगवान परशुराम ने भगवान शिव का गंगा जल से अभिषेक किया था। उस समय सावन मास ही चल रहा था। इसी मान्यता पर कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। आज भी इस परंपरा का पालन किया जा रहा है।
परशुराम ने निकाली थी पहली कांवड़
परशुराम, इस प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। सबसे पहले जान लेते हैं कि कांवड़ यात्रा क्या होती है। दरअसल धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल चढ़ाने की परंपरा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है। ये जल एक पवित्र स्थान से अपने कंधे पर ले जाकर भगवान शिव को सावन की महीने में अर्पित किया जाता है।
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कांवड़ में भरते हैं गंगा जल
भगवान शिव के भक्त बांस की लकड़ी पर दोनों ओर टिकी हुई टोकरियों के साथ गंगा के तट पर पहुंचते हैं और टोकरियों में गंगाजल भरकर लौट जाते हैं। कांवड़ को अपने कंधों पर रखकर लगातार यात्रा करते हैं और अपने क्षेत्र के शिवालयों में जाकर जलाभिषेक करते हैं।
सावन मास में निकलती है कांवड़
कावड़ के जरिए जल की यात्रा का यह पर्व भगवान शिव की आराधना का पर्व माना जाता है. एक बार कांवड़िए जल स्रोत से जल भर कर इसे भगवान शिव तक पहुंचे से पहले जमीन पर नहीं रखते. इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि जल से सीधे प्रभु को जोड़ा जाए, जिससे यह धारा प्राकृतिक रूप से भगवान भोलेनाथ पर बनी रहे
परंपरानुसार भिन्न होती हैं कांवड़
इनमें स्थूलकावड़, कंधीकावड़, नागकावड़, सिन्धू कावड़, पंचमुखी कावड़, त्रिशूलकावड़, रामकावड़, शंकरकावड़ आदि शामिल हैं. ये कांवड़ प्रकार भक्तों के आदर्शों, परंपराओं और भाग्य के अनुसार विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चुने जाते हैं.
सावन के महीने में शिवभक्त महादेव को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा निकालते हैं। शिवभक्त कांवड़ में जल भरकर शिवधाम तक पहुँचते हैं और भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्रावण मास में भगवान शिव अपनी ससुराल यानी हरिद्वार के कनखल में रहते हैं।
आम की लकड़ी से बनती है कांवड़
कावड़ आम या सेमला के पेड़ की लकड़ी से बनाई जाती है। एक कावड़ निर्माता एक बढ़ई और कलाकार के कौशल को जोड़ता है। काम का पहला चरण लकड़ी का ढांचा बनाना है।