जिसके पिता थे बंधुवा मजदूर, मां दिहाड़ी लेबर, वो आज है 20 कंपनियों के मालिक

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इनकी मां दिहाड़ी मजदूरी पर काम करती थी और पिता बंधुवा मजदूर थे। परिवार में सदस्यों की संख्या दस थी और सभी एक झोपड़ी में रहते थे। मां-बाप के दिन रात मेहनत करने के बाद भी इन्हें भर पेट भोजन नहीं मिल पाता था, भूख के कारण पेट में लगने वाली आग, इन्हें आज भी याद है। ये कहानी है गांव के एक दलित परिवार में जन्मे मधुसूदन राव की, जो आज 20 कंपनियों के मालिक हैं, इसके अलावा मधुसूदन एमएमआर ग्रुप ऑफ़ कम्पनीज़ के संस्थापक और निदेशक भी हैं।

मधुसूदन का जन्म आंध्रप्रदेश के प्रकाशम जिले में हुआ था। तहसील का नाम कन्दुकुरु और गांव का नाम पलकुरु है। पिता का नाम पेरय्या और मां का नाम रामुलम्मा है।मधुसूदन के घर में कुल 10 लोग थे। माता-पिता और 8 बच्चे। 8 भाई-बहनों में इस मधुसूदन का नंबर पांचवां था। आठों भाई-बहन हमेशा फटे-पुराने और दाग़दार कपड़े पहने रहते।

नंगे पांव ही हर जगह जाते थे। ये बच्चे सपने तो देखते, लेकिन कार, बंगला, शापिंग मॉल के नहीं, बल्कि उनका सपना होता-भरपेट भोजन, पहनने को अच्छे कपडे और पांव में बार-बार कांटें न चुभें इसलिए चप्पलें मिल जाएं बस। दूसरों के लिए अच्छे कपड़े,चप्पल ये सब मामूली चीज़ें हो सकती थीं, लेकिन उन 8 बच्चों के लिए ये ऐसी चीज़ें थी, जो उस वक़्त शायद उनके नसीब में ही नहीं लिखी गयीं थीं।

एक झोपड़ी में दस लोग

आलम ये था कि सारा परिवार यानी सभी 10 लोग गांव में एक छोटी झोपड़ी में रहते थे। बचपन मेंमधुसूदन को समझ नहीं आता था कि जब गांव के काफी लोग अच्छे और पक्के मकानों में रहते हैं, तोउसका परिवार आखिर झोपड़ी में क्यों रहता है? मधुसूदन इस बात को लेकर भी हैरान रहते थे कि उसके मां-बाप आखिर करते क्या हैं? वे कहां जाते हैं?इस हैरानी की वजह ये थी कि हर दिन सुबह उसकी नींद खुलने से पहले ही उसके मां-बाप कहीं चले जाते थे। वे जब तक लौटकर आते बहुत देर हो गयी होती थी और उनके भाई बहन थक-हारकर सो जाते थे। अमूमन हर दिन ऐसे ही होता। मधुसूदन कभी-कबार ही अपने माता-पिता को देख पाते थे।

धीरे-धीरे आया समझ में

जैसे-जैसे मधुसूदन बड़े होने लगा उन्हें कई चीज़ें और बातें समझ में आने लगीं। उसे इल्म हुआ कि उसका परिवार ग़रीब है और एक बेहद पिछड़ी जाति से है। वो ये बात भी समझ गए कि उसके पिता एक ज़मींदार के पास बंधुआ मज़दूर हैं। दिहाड़ी पर काम करते हैं। उनकी मां हर दिन तम्बाकू की फैक्ट्री में जाकर काम करती है और उसे भी दिहाड़ी ही मिलती है। घर-परिवार चलाने के लिये बड़ी बहन को भी मां के साथ काम पर जाने के मजबूर होना पड़ता है।

स्कूल में पता चला कि उनके माता-पिता अशिक्षित हैं

मधुसूदन को जब स्कूल भेजा गया, तब उन्हें ये भी पता चला कि उनके माता-पिता अशिक्षित हैं। एक भाई को छोड़कर दूसरे सारे भाई-बहन भी पढ़ना-लिखना नहीं जानते। बड़ी मुश्किल से मां-बाप ने अपने दो बच्चों को स्कूल भिजवाना शुरू किया था। घर-परिवार में ग़रीबी कुछ इस तरह से हावी थी कि दिन-भर में बस एक बार खाना खा कर ही बच्चे खुश हो जाते थे।

गांव वाले करते थे घिनौना व्यवहार

मधुसूदन को सबसे चौंकाने वाली बात यह लगती  थी कि गांववाले उसके घरवालों के साथ बहुत ही घिनौना व्यवहार करते थे। घुंटनों के बल पर ज़मीन पर बैठकर, दोनों हाथ फैलाने पर ही कोई इन्हें पीने के लिए पानी दिया जाता था। गांववालों के तय किये नियमों के मुताबिक मधुसूदन के परिवार में कोई भी घुटनों के नीचे तक धोती नहीं पहन सकता था। औरतों के जैकेट पहनने पर पाबंदी थी। परिवार वाले जहां मर्ज़ी चाहे उठ-बैठ भी नहीं सकते थे। मधुसूदन और उनके परिवार में से किसी की परछाई पड़ जाने पर गांव के कुछ लोग उसे अपशकुन मानते और ऐसा होने पर उस शख्स को सजा देते थे।

स्कूल में कड़ी मेहनत

ऐसे हालात में जब मधुसूदन स्कूल जाकर पढ़ने लगे तो पढ़ते-लिखते उन्हें अहसास होने लगा कि उन्हें अपने परिवार को ग़रीबी और बंधुआ मजदूरी से बाहर लाने के लिए इस कदर पढ़ना होगा कि उन्हें अच्छी नौकरी मिले और वो उसके गांव से बहुत दूर और वो भी किसी बड़े शहर में। मधुसूदन ने स्कूल में बहुत मेहनत की। जमकर पढ़ाई-लिखाई की। टीचरों ने जैसा कहा वैसे ही किया। पहले दसवीं और फिर बारहवीं की परीक्षा पास की।

पॉलिटेक्निक में लिया दाखिला

बारहवीं के बाद एंट्रेंस एग्जाम पास कर पॉलिटेक्निक कॉलेज में दाखिला लिया। डिप्लोमा पूरा किया। वहींमधुसूदन अब जवान हो चुके थे। पढ़े-लिखे भी थे, इस वजह से परिवार की सारी उम्मीदें उन्हीं पर आ टिकीं, लेकिन डिप्लोमा करने के बाद जब नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने मां-बाप की तरह ही मजदूरी की। शहर में वॉचमैन का काम किया।

लिया उद्यमी बनने का फैसला

फिर एक दिन बड़ा फैसला लिया। फैसला था उद्यमी और कारोबारी बनने का। सपना पूरा करने के लिए मधुसूदन ने खूब मेहनत की। दिन-रात एक किया। लोगों की मान-मनुहार की। दर-दर की ठोकरें खाईं, लेकिन हार नहीं मानी।

आखिरकार एक दिन गांव के एक ग़रीब दलित परिवार में जन्मेमधुसूदन कारोबारी बन गए। उन्होंने साल-दर-साल अपने कारोबार को बढ़ाया। आज मधुसूदन 20 कंपनियों के मालिक हैं। उन्होंने हज़ारों लोगों को रोज़गार का मौका दिया है। उनकी गिनती अब देश के अनोखे और कामयाब उद्यमियों में होने लगी है। वो कईयों का रोल मॉडल बन चुके हैं।

ऐसे मिला पहला मौका

जीवन के एक अनछुए पहलू और अभी तक अनकही बड़ी महत्वपूर्ण घटना की जानकारी देते हुए मधुसूदन ने कहा, “एक दिन मैं टेलीफोन का एक खम्भा गाड़ने के लिए खुदाई कर रहा था। एक इंजीनियर मेरी तरफ आया और उसने पूछा क्या तुम पढ़े लिखे हो। मैंने जवाब में कहा- हां, मैंने पॉलिटेक्निक किया हुआ है।

इस जवाब के बाद उस इंजीनियर ने कहा कि तुम्हारे काम करने के तरीक़े को देखकर ही मैं समझ गया था कि तुम पढ़े-लिखे हो। कोई दूसरा मजदूर होता तो इस तरह सलीके से नाप लेकर खुदाई नहीं करता। मैंने सिर्फ तुम्हें ही देखा है, जिसने नाप लिया और साइंटिफिक तरीके से खुदाई की।”

तारीफ करने के बाद उस इंजीनियर ने मधुसूदन से पूछा, ” नौकरी करोगे?”ये सवाल सुनते ही मधुसूदन खुशी से बेकाबू हो गए। मधुसूदन उस इंजीनियर से गिड़गिड़ाने लगे। कहने लगे,”मुझे नौकरी की सख्त ज़रुरत है। मेरा परिवार मुझसे उम्मीदें लगाए बैठा है। मैं बस नौकरी के इंतज़ार में हूं।”

ऐसे मिला मधुसूदन को ठेका

मधुसूदन की मान-मनुहार का फायदा उन्हें मिला। वो इंजीनियर उन्हें अपने दफ्तर ले गया। मधुसूदन का इंटरव्यू शुरू हुआ। एक तरफ इंटरव्यू जहां चल रहा था, वहीं दूसरी तरफ एक बड़े ठेकेदार और उपठेकेदार के बीच एक ठेके को लेकर बहस चल रही थी। उपठेकेदार ज्यादा रकम मांग रहा था। ये देखकर मधुसूदन ने बड़े ठेकेदार से वो ठेका उन्हें दे देने की गुज़ारिश की। मधुसूदन ने बड़े ठेकेदार को भरोसा दिलाया कि वो मजदूरों से काम लेने के मामले में एक्सपर्ट है और उसका सार परिवार ठेके और मजदूरी का ही काम करता है। पहले तो उस बड़े ठेकेदार ने मधुसूदन से अपने इंटरव्यू पर ध्यान देने को कहा, लेकिन जब उस उपठेकेदार से उसकी बात नहीं बनी तब उसने मधुसूदन को वो ठेका दे दिया।

नहीं थे पैसे

ठेका तो मिल गया, लेकिन मधुसूदन के पास मजदूरों को एडवांस देकर उन्हें जुटाने और काम शुरू करवाने के लिए ज़रूरी पांच हज़ार रुपये भी नहीं थे। मधुसूदन ने अपने भाई-बहनों से मदद मांगी। उस मदद को बेशकीमती और उनकी ज़िंदगी में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाला बताते हुए मधुसूदन से कहा,”

बहन ने दिए पैसे

मेरी एक बहन ने मुझे नौ सौ रुपये दिए। यही रकम लेकर मैं मजदूरों के पास गया और उन्हें मेरे लिए काम करने को मनाया। नौ सौ रुपयों से काम शुरू हो गया। मुझे पहले ही दिन बीस हज़ार रुपये की आमदनी हुई। मेरे दिन बदल गए।”

ठेकेदार ने दिया एक लाख रुपये अडवांस

इसके बाद मधुसूदन ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। काम से खुश होकर बड़े ठेकेदार ने मधुसूदन को एक लाख रुपये अड्वान्स भी दिए। फिर आगे उन्हें एक के बाद एक नए ठेके मिलते गए। जब उनके हाथ में एक लाख रुपये आ गए तो उन्होंने अपने गाँव की ओर रुख किया।

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हुई बहन की शादी

ये रकम मधुसूदन के घरवालों के लिए काफी काम आयी। इसी रकम की वजह से उनकी एक बहन की शादी हो पायी। बहन की शादी कराने के बाद जब वे दुबारा हैदराबाद लौटे तब फिर मन लगाकर काम करने में जुट गए। ठेके मिलते चले गए, कमाई बढ़ती चली गयी।

सारी कमाई एक झटके में चली गयी

अब सब कुछ बदलने लगा था। गरीबी दूर हो गयी थी। लगातार तरक्की हो रही थी। लेकिन, इसी बीच एक ऐसी घटना हुई जिससे मधुसूदन फिर खाली हाथ हो गए। इस घटना ने उन्हें पूरी तरह से हिलाकर रख दिया। सारी कमाई एक झटके में चली गयी।

उस घटना का उल्लेख करते हुए मधुसूदन ने कहा, “मैंने जिन लोगों पर भरोसा किया था उन्हीं लोगों ने मुझे धोखा दिया। मुझसे विश्वासघात किया। पीठ में छुरा भोंपा। मैंने कुछ साथियों के कहने पर उनके साथ मिलकर एक कंपनी शुरू की थी। कंपनी ने काम भी अच्छा ही किया, लेकिन मेरे साथियों ने ऐसा धोखा दिया कि मेरी सारी कमाई ख़त्म हो गयी।”

घटना से मिली सीख

मधुसूदन ने साथियों के विश्वासघात की इस घटना की ज्यादा जानकारी नहीं दी लेकिन ये ज़रूर कहा कि ये भी उनके जीवन का एक बड़ा सबक था। उन्होंने कहा, “अच्छा ही हुआ जो ये घटना हुई। इस घटना ने मुझे और भी समझदार बनाया और इसके बाद ही मैं बहुत ही तेज़ी से आगे बढ़ा।”

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फिर से करने लगे नौकरी

इस विश्वासघात की मार मधुसूदन पर कुछ इस तरह से पडी थी कि उन्होंने ठेके और कारोबार का काम छोड़कर नौकरी करने में ही अपनी भलाई समझी। मधुसुधन ने एक इंजीनियरिंग संस्था में नौकरी करनी शुरू कर दी। यहीं नौकरी करते समय मधुसदन ने शादी भी कर ली।

पत्नी ने रखी कारोबार ने करने की शर्त

दिलचस्प बात ये है कि मधुसूदन की पत्नी पद्मलता और उनकी बहनों को ये बात मालूम थी कि मधुसूदन के साथ कारोबार में धोखा किया गया है। इसी वजह से पत्नी ने मधुसूदन के सामने ये शर्त रखी कि वे फिर कभी कारोबार नहीं करेंगे और सिर्फ नौकरी ही करेंगे। मधुसूदन शर्त मान गए,लेकिन उनका मन कारोबार की तरफ ही खींचा चला जा रहा था। उन्हें लगता था कि उनमें एक कामयाब उद्यमी बनने के सारे गुण हैं और ये गुण नौकरी करने में बेकार जा रहे हैं।

पत्नी को बिना बताए शुरू की कंपनी

मधुसूदन ने पत्नी को बताये बगैर एक कंपनी शुरू कर दी। कंपनी को ठेके मिलने लगे और काम चल पड़ा। इसी बीच एक दिन पत्नी ने घर पर आयी एक चिट्टी पढ़ ली ,जिससे उन्हें पता चल गया कि मधुसूदन फिर से कारोबार करने लगे हैं। नाखुश और नाराज़ पत्नी ने मधुसूदन से कई सारे सवाल किये। अपना गुस्सा ज़ाहिर किया।

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कारोबार बंद कर नौकरी पर ध्यान देने को कहा लेकिन, मधुसूदन ने अपनी पत्नी को ये कहकर समझाया, “मेरी तनख्वाह 21 हज़ार रुपये है। तुम्हारी तनख्वा भी करीब 15 हज़ार रुपये है. और घर में हर महीना 30 से 32 हज़ार रुपये ही आते हैं। तुम मुझे कारोबार करने की छूट दो तो मैं तुम्हें हर महीने कम से कम तीन लाख रुपये दूंगा। यानी पूरे साल में हम दोनों की तनख्वा का कुल जमा मैं तुम्हें सिर्फ एक महीने में दूंगा। फिर क्या था मेरी बात मान ली गयीं। ”

अपनी पत्नी की तारीफ़ में मधुसूदन ने कहा,” हर बार मुझे मेरी पत्नी से मदद मिली। उनका साथ मेरे लिए बहुत ही फायदेमंद और खुशहाली भरा रहा है। वो मेरी ताकत हैं।”

20 कंपनियों की स्थापना

इसके बाद मधुसूदन ने अपनी कामयाबी की कहानी को जिस तरह से आगे बढ़ाया और विस्तार दिया वो एक अद्भुत मिसाल है। मधुसूदन ने एक के बाद एक करते हुए अब 20 कंपनियों की स्थापना की। आईटी से लेकर फ़ूड प्रोसेसिंग तक अब उनकी कंपनियों की धाक है। मधुसूदन राव अपनी कामयाबी की वजह से अब भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में प्रसिद्ध हो गए हैं। वे दलित इंडियन चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स की आंध्रप्रदेश शाखा के अध्यक्ष भी हैं।

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