कैंसर पीड़ित ने तीन घंटे तक बजाई वायलिन, ‘ एक प्यार का नगमा’ लोगों के छलके आंसू…
कहते है दुनिया में हौसले से बड़ी कोई और चीज नहीं है. और ये नजर आता है. कैंसर के उन मरीजों को देखकर जो दुनिया को भले ही अलविदा कहने वाले है. पर चेहरे पर कोई शिकन नहीं है. वो बस अपनी पूरी जिंदगी कुछ पलों में जी लेना चाहते है. ऐसे ही एक शख्स है. प्रसिद्ध वायलिन वादक अरविंद पांडेय जिन्हे आखरी स्टेज का कैंसर हैं. पर वो अपने संगीत को अपने से जुदा नही होने देना चाहते इसलिए बीएचयू के कैंसर अस्पताल में ही मरीजों का हौसला बढ़ाने और अपनी अंतिम इच्छा को पूरा करते हुए वायलिन का तार छेड़ दिया….देखिए मौत को चकमा देती ये कहानी……..
जीवन के अंतिम दौर की इच्छा पूरी…
दरअसल कोलन कैंसर से जूझ रहे अरविंद पांडेय अपने जीवन के अंतिम दौर में हैं. अब दवाएं भी काम नहीं कर रही हैं. उनकी अंतिम इच्छा थी कि वह मंच से वायलिन बजाएं और पूरी दुनिया उन्हें सुने. उनको सुनने के लिए कैंसर अस्पताल के चिकित्सक, मरीज और शहर के 150 से ज्यादा लोग मौजूद थे. अरविंद ने जब वायलिन वादन पूरा किया तो सभागार में मौजूद हर शख्स तालियां बजा रहा था, लेकिन उनकी आंखों की कोर नम थी. अरविंद को सुनने के लिए उनके शिष्य अमेरिका, बेंगलुरू और मुंबई से पहुंचे थे।
2017 से है कैंसर से पीड़ित…
अरविंद पांडेय ने बताया, ”साल 2017 में कैंसर डिटेक्ट हुआ. मुंबई में जाकर इलाज कराया और ठीक हुआ. कोविड के दौरान कैंसर फिर से उभर गया. उस समय मेडिकल सुविधाएं ठप थीं. ऐसे में समय से इलाज नहीं मिला. कंडीशन खराब होती चली गई. अंत में डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर लिए. 40 कीमोथेरेपी कराई अब बस संगीत का सहारा है. इन सब के बावजूद अरविन्द के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है. वो कहते है की मौत तो आनी है इससे डर कैसा है. अब तो हमारी अंतिम यात्रा यही से निकलेगी. यही लोग मुझे शांति देंगे मेरे शिष्य इस करवा को आगे बढ़ाएंगे।
बड़े मंच पर नही दी प्रस्तुति…
अरविंद पांडेय कहते हैं, ”उन्होंने बेहद साधारण जीवन जिया है. मैंने संकट मोचन संगीत समारोह के अलावा बड़े मंच पर प्रस्तुति नहीं दी है. मैंने 70 से ज्यादा वायलिन वादक तैयार किए हैं. मेरे छात्रों को इंडियन और वेस्टर्न सब कुछ आता है. मेरे छात्र अमेरिका और जापान समेत पूरी दुनिया में हैं. इसमें से कई छात्र तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर, एमडी डॉक्टर और प्रशासनिक सेवाओं में हैं. मेरी सबसे छोटी शिष्य 7 साल की तुषारिका सिंह राव्या हैं. आज की प्रस्तुति को सुनने के लिए मेरा एक शिष्य अमेरिका से आया है. बेंगलुरु और मुंबई से भी मेरे छात्र आए हैं।’
म्यूजिक का मोटिवेशन राज कपूर से मिला…
अरविंद ने कहा, “म्यूजिक का मोटिवेशन राजकपूर और मुकेश पर फिल्माए गाना ‘जाने कहां गए वो दिन’ से मिला और वायलिन वादक बनने की ठानी। साल 1992 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में B.MUS, M.MUS और डिप्लोमा कोर्स किया। यहां पर मेरी गुरु थीं, विश्व प्रसिद्ध प्रो. एन राजम। उनके साथ संकट मोचन संगीत समारोह में भी संगत किया। लेकिन, इस बीच शादी हो गई।
संगीत में बनाना चाहते थे करियर…
पीएचडी करके संगीत में करियर बनाना चाहते थे. मगर परिवार चलाने के लिए नौकरी की जरूरत थी. प्रो. गोपाल दास मिश्रा के अंडर में रिसर्च जॉइन भी किया, लेकिन कंटीन्यू नहीं रख सका। वाराणसी के आर्यन इंटरनेशनल स्कूल में म्यूजिक टीचर बना। कई बार वायलिन के क्षेत्र में आगे बढ़ने की सोची, लेकिन प्राइवेट नौकरी के सीमित समय और पारिवारिक जिम्मेदारियों में यह पाॅसिबल न हो सका. यहीं पर बच्चों को वायलिन सिखाता रहा।
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