एक IPS की कहानी, बनना चाहता था Journalist, हालात ने बनाया IPS

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यूपी की सत्ता संभालते ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश की राजधानी लखनऊ की कानून व्यवस्था को सुधारने का जिम्मा, अपनी ईमानदार औऱ कर्तव्यनिष्ठा के साथ जिम्मेदारी निभाने वाले तेजतर्रार आईपीएस दीपक कुमार(Deepak Kumar) को सौंप दी। दीपक कुमार 2005 आईपीएस बैच के अधिकारी हैं, लेकिन उनके अंदर एक पत्रकार भी जिंदा है क्योंकि उनका सपना था कि वो बीबीसी के पत्रकार बनेंगे लेकिन कुछ हालातों ने उन्हें आईपीएस बना दिया। बिहार के बेगूसराय जिले से ताल्लुक रखने वाले दीपक कुमार अपनी ईमानदार छवि के लिए जाने जाते हैं और किसी भी तरह की लापरवाही को कतई बर्दाश्त नहीं करते हैं। यही वजह है कि सीएम योगी ने राजधानी की कमान उनके हाथों में सौपी है।

जर्नलिस्ट कैफे डॉट कॉम ने दीपक कुमार से खास बातचीत की। इस दौरान हमने दीपक कुमार से जुड़े कई पहलुओं पर बात की, जिसका उन्होंने बहुत बेबाकी से जवाब दिया।

बिहार के बेगूसराय में हुआ जन्म

दीपक कुमार का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के रामदीरी गांव के एक किसान परिवार में हुआ। दीपक दो भाई और एक बहन हैं। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा बेगूसराय और नेतरहाट से पूरी की। इसके बाद दीपक कुमार ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में बीए किया। दीपक ने दिल्ली के कैंपस लॉ सेंटर से एलएलबी भी की है।

पत्रकार बनना चाहते थे आईपीएस दीपक कुमार

जर्नलिस्ट कैफे डॉट कॉम से खास बातचीत में एसएसपी दीपक कुमार ने बताया है कि बचपन से ही उनका झुकाव पत्रकारिता की तरफ रहा और वो बीबीसी के पत्रकार बनना चाहते थे। लेकिन परिवार और उनके मित्रों का झुकाव सिविल सर्विसेज की तरफ होने के कारण उन्होंने इसकी तैयारी करनी शुरू की और पहले ही कोशिश में सिविल की परीक्षा पास कर ली।

2003 में दानिक्स कैडर में हुआ चयन

दीपक कुमार आईपीएस चुने जाने से पहले 2003 में दानिक्स कैडर में भी सेलेक्ट हुए थे। दानिक्स कैडर में उनको दिल्ली पुलिस में एएसपी बनाया गया था। वहीं, एसपी पद पर कार्य करते हुए दीपक कुमार ने सिविल सर्विस का एग्जाम दिया और पहली ही बार में आईपीएस में सेलेक्ट हुए।

साल 2007 में बतौर एएसपी तैनात

साल 2007 में दीपक कुमार ने एएसपी के रूप में बनारस में तैनात हुए। इसके बाद दीपक कुमार को एएसपी गाजियाबाद के रूप में तैनाती दी गई। यहां पर उनके काम को लोगों ने खूब सराहा। यहां उन्होंने 6 महीने 11 दिन तक ड्यूटी की।

हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी

यह वह समय था जब दीपक कुमार(Deepak Kumar) अगर सड़क पर निकलते, तो उनसे मिलने के लिए हजारों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता था। लोग उन्हें पसंद करने लगे थे। यहां उन्हें लोगों ने खूब प्यार दिया। बता दें कि जब वो गाजियाबाद से बिदा हो रहे थे तो उन्हें स्टेशन पर छोड़ने के लिए हजारों की भीड़ पीछे चल दी। दीपक कुमार जब भी वहां की बात करते हैं तो उनके चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान और आंखों में चमक आ जाती है।

2009 में कप्तान बनकर बागपत का जिम्मा संभाला

इसके बाद उन्हें 2009 में बागपत में बतौर कप्तान पोस्ट किया गया। बागपत की जनता ने भी उन्हें खूब प्यार दिया। आईपीएस दीपक कुमार वह शख्स हैं जो किसी भी काम में लापरवाही कतई बर्दाश्त नहीं करते। बागपत में उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि वहां के लोग आज भी उन्हें याद करते हैं। बागपत में उन्होंने करीब ढाई साल तक कार्य किया। खास बात यह रही कि बागपत में इतने लंबे समय तक कोई भी अधिकारी टिका नहीं।

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इसके बाद वह सोनभद्र और रायबरेली में भी एसपी रहे। इस दौरान उन पर कई बार राजनीतिक दबाव भी बनाने की कोशिशें की गई, लेकिन अपनी ईमानदार छवि के लिए जाने जाने वाले दीपक कुमार ने उनकी एक नहीं मानी। यही वजह रही कि उनका तबादला पीएसी में कर दिया गया।

साल 2013 में मिला मेरठ का जिम्मा

साल 2013 में दीपक कुमार(Deepak Kumar) ने एसएसपी के तौर पर मेरठ जैसे संवेदनशील जिले का जिम्मा संभाला।  यह वही समय था जब मुजफ्फरनगर में दंगे भड़क उठे और इन दंगों की आंच आसपास के जिलों में भी पहुंच रही थी। लेकिन मेरठ ही एक मात्र ऐसा जिला रहा, जहां एक भी दंगा नहीं हुआ था।

राजनैतिक दबाव में काम नहीं करते एसएसपी दीपक

अपनी ईमानदार और साफ सुथरी छवि के लिए जाने जाने वाले दीपक कुमार(Deepak Kumar) ने कभी भी राजनैतिक दबाव काम नहीं किया, यही वजह रही कि उनका 15 बार ट्रांसफर किया जा चुका है। बता दें कि साल 2016 में मुजफ्फरनगर में कार्यरत रहने के दौरान उन्हें डीजी का एकमंडेशन मिला।

काम की वजह से परिवार को नहीं दे पाते हैं समय

आईपीएस दीपक कुमार(Deepak Kumar) अपने काम को लेकर किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करते हैं और जिले की कानून व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए 24 घंटे नजर रखते हैं। यही वजह है कि वह अपनी 7 साल की बेटी कृपालिनी को भी समय नहीं दे पाते हैं।

परिवार को समय न दे पाने की शिकायत उनकी पत्नी मोनी शांडिल्य अक्सर उनसे करती रहती हैं। आईपीएस दीपक कुमार(Deepak Kumar) की पत्नी यूके से एमबीए कर चुकी हैं, और खुद का व्यवसाय करती हैं।

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