गांव तक नहीं पहुंची एंबुलेंस तो चार किलोमीटर पैदल चल अस्पताल पहुंची महिला
आजादी के 75 वर्ष बीतने के बाद भी झारखंड के हजारीबाग जिले के इचाक प्रखंड के डाडी घाघर पंचायत अंतर्गत पूरनपनिया गांव में आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, गांव तक पहुंचने के लिए एक सड़क नहीं है, दुर्गम जंगली रास्तों से होकर ग्रामीण पैदल चलने को विवश हैं. एक तरफ सरकार गांव से लेकर शहर तक सड़कों के जाल बिछाने के दावे करती है दूसरी और उन दावों की पोल खोलती एक बेहद ही मार्मिक तस्वीर हजारीबाग जिले के इचाक प्रखंड के पूरनपनिया गांव से निकलकर सामने आई है.
दरअसल सड़क के अभाव में पूरनपनिया गांव के रहने वाले सुरेंद्र किस्कू की पत्नी मुन्नी देवी को प्रसव पीड़ा होने पर अस्पताल जाने के लिए लगभग 4 किलोमीटर से ज्यादा का सफर पैदल दुर्गम रास्तों के सहारे तय करना पड़ा, क्योंकि गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस गांव तक सड़क के अभाव में नहीं पहुंच सकी. लगभग 4 किलोमीटर से ज्यादा पैदल सफर करने के बाद गर्भवती महिला मुन्नी देवी ममता वाहन के सहारे इचाक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची जहां उसने एक बच्ची को जन्म दिया.
गांव में बुनियादी सुविधा के नाम पर न तो सड़क है, ना बिजली…
बता दें कि सड़क के अभाव में पूरनपनिया गांव के लोग किसी के बीमार पड़ने पर या तो उसे पैदल या फिर डोली बनाकर या खटिया के सहारे ढोकर अस्पताल लेकर जाते हैं, पूरनपुनिया गांव के लोगों ने कहा कि आजादी के इतने वर्ष होने के बावजूद आज तक गांव में बुनियादी सुविधा के नाम पर न तो सड़क है, ना बिजली है और ना ही पीने की पानी, जब भी चुनाव आता है जनप्रतिनिधि पहुंचते हैं. सभी समस्याओं को दूर करने का दावा करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद अब तक किसी भी सरकार या जनप्रतिनिधि ने पूरनपुनिया गांव की मूलभूत समस्या को दूर करने के दिशा में कोई कार्यवाही की है.
हजारीबाग इचाक प्रखंड के पूरनपुनिया गांव की घटना से पूर्व झारखंड के नक्सल प्रभावित जिलों में से एक लातेहार जिला के महुआडांड़ प्रखंड अंतर्गत ग्वालखाड़ गांव सड़क के अभाव में कोरबा आदिम जनजाति समुदाय की 60 वर्षीय वृद्ध महिला लालो कोरवाईन को एक टोकरी में बैठाकर बांस के सहारे उसके पति देवा कोरबा और बेटे सुंदरलाल कोरवा ने तकरीबन 7 किलोमीटर का सफर तय कर पेंशन की राशि निकालने के लिए महुआडांड़ प्रखंड मुख्यालय पहुंचाया था.