ओपेक देशों के तेल उत्पादन घटाने के फैसले का भारत पर क्या होगा असर, पढ़ें यहां

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ओपेक देशों ने हर रोज तेल का उत्पादन 20 लाख बैरल तक घटाने का फैसला किया है. जिसका असर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अधिकतर देशों पर पड़ सकता है. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से पहले ही अंतराष्ट्रीय बाजार जूझ रहा है. ओपेक के इस फैसले से अमेरिका की जो बाइ़डन सरकार भी चिंता में है, क्योंकि वहां भी तेल के दामों में लगातार बढ़ोत्तरी जारी है. उधर, अपने अमेरिका दौरे पर गए केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि भारत इसे लेकर वैश्विक दबाव में नहीं है और वो अपनी पसंद के किसी भी देश से तेल खरीद सकता है.

जानिए भारत को फायदा होगा या नुकसान…

ओपेक के इस फैसले का भारत पर भी काफी असर देखने को मिल सकता है. दरअसल, मौजूदा समय में ही भारत में तेल के दाम आसमान छू रहे हैं. ऐसे में अगर अंतराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमत बढ़ेंगी तो भारत में तेल के दाम अपने आप ही ऊपर जाएंगे, जिसका प्रभाव काफी ज्यादा संख्या में लोगों पर पड़ेगा. चिंता वाली बात है कि ओपेक ने यह फैसला ऐसे समय पर किया है, जब सर्दियां आने वाली हैं और सर्दियों में सिर्फ भारत में ही तेल की खपत पिछले दिनों के मुकाबले बढ़ जाएगी. दूसरी ओर, सऊदी अरब से भारत काफी तेल आयात करता है, इसलिए सऊदी ने तेल के दाम बढ़ाए तो भी भारत पर असर होगा ही होगा. ऐसे में अगर रूस ने भी तेल के दाम बढ़ा दिए तो भारत के लिए स्थिति चिंताजनक भी हो सकती है, क्योंकि पिछले कई महीनों से रूस भी भारत को बड़ी मात्रा में तेल बेच रहा है.

केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री ने कही ये बात…

क्या रूसी तेल खरीदना बंद करेगा भारत? अमेरिका में पूछे गए इस सवाल के जवाब में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने जवाब में कहा

‘भारत इसे लेकर वैश्विक दबाव में नहीं है और वो अपनी पसंद के किसी भी देश से तेल खरीद सकता है. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच रूस से तेल आयात को जारी रखने को लेकर भारत पहले भी कई बार अपना रुख स्पष्ट कर चुका है.’ दरअसल, हरदीप सिंह पुरी इन दिनों अमेरिका दौरे पर हैं.

न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, पुरी ने कहा

‘भारत जहां से चाहे वहां से तेल खरीदेगा, इसके पीछे बहुत आसान सी वजह है वो ये कि तेल उपभोग करने वाली हमारी जितनी बड़ी जनसंख्या है, उसके सामने इस पॉइंट पर चर्चा नहीं की जा सकती. क्या हमें किसी ने रूसी तेल खरीदने से मना किया है? जवाब है सीधी-साफ ना.’

उन्होंने कहा

‘यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम देश की जनता को तेल उपलब्ध कराएं, क्योंकि ऐसे बहुत से देश हैं, जहां आज एनर्जी क्राइसिस है. देश में एक दिन में 5 मिलियन बैरल तेल की खपत होती है. भारत में कंजम्प्शन लगातार बढ़ रहा है. हमें किसी ने नहीं कहा है कि आप इनसे तेल मत खरीदिए, इसे लेकर एक अंडरस्टैंडिंग बनी हुई है. अगर कोई जियो-पॉलिटिकल सिचुएशन है तो उसे लेकर देश आपस में बात कर सकते हैं.’

पुरी ने यह भी कहा

‘मुझे इसमें कोई संघर्ष नहीं दिख रहा है. ओपेक में ऐसे कई देश हैं, जो हमें तेल बेचते हैं, उन्होंने हमसे कभी पलटकर ये नहीं बोला है कि वो हमें तेल नहीं बेचेंगे. अगर आप भारत और चीन को तेल नहीं बेचेंगे तो आपके पास बड़े बाजार बचते ही कहां हैं.’

उन्होंने दृढ़ता दिखाते हुए कहा

‘अगर आप अपनी पॉलिसी को लेकर स्पष्ट हैं, तो जहां से भी आपको तेल खरीदना होगा, आप वहां से तेल खरीदेंगे. भारत एनर्जी खरीद को लेकर कुछ और स्रोतों के साथ चर्चा कर रहा है और इस क्रम में देश के बाहर भी कुछ असेट खरीदे जा सकते हैं.’

एनर्जी एसपेक्ट्स में मैक्रो रिसर्च के चीफ यासेर इलगुइंदी ने इस बारे में कहा

‘सबको अंदाजा था कि सऊदी अरब कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल 100 डॉलर या उससे ज्यादा करने की कोशिश में लगा हुआ है. लेकिन तेल उत्पादन में इतनी बड़ी कटौती से हर कोई हैरान है. तेल उत्पादन घटाना ओपेक प्लस के हालिया नीति के बिल्कुल उलट है. इससे पहले, कोरोना महामारी के दौरान मई, 2020 में जब तेल की मांग घट गई थी तो ओपेक प्लस देशों ने तेल के उत्पादन को कम किया था लेकिन उसके बाद से उत्पादन को धीरे-धीरे बढ़ाया ही जा रहा था.’

ओपेक प्लस देशों के तेल कटौती के फैसले को लेकर व्हाइट हाउस ने कहा कि ये फैसला बिल्कुल भी दूरदर्शी नहीं है. अमेरिका तेल की कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए अपने स्ट्रैटेजिक रिजर्व से एक करोड़ बैरल तेल निकालकर बाजार में अगले महीने तक सप्लाई कर देगा.

रूस को मिल सकता है फायदा…

रूस को ओपेक प्लस की इस कटौती का भी फायदा मिल सकता है. खुद रूस भी इस ग्रुप का हिस्सा है और जब से युक्रेन के साथ युद्ध कर रहा है, तबसे ही अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश उसकी तेल सप्लाई को कम से कम करने की कोशिशों में लगे हुए हैं. भारत को भी रूस काफी मात्रा में तेल सप्लाई कर रहा है. यहां तक कि पाकिस्तान को रूसी तेल की सप्लाई जारी है.

रूस की आर्थिक व्यवस्था ऊर्जा क्षेत्र पर भी काफी निर्भर करती है. ऐसे में पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद अभी तक रूस के तेल उत्पादन में अभी तक कोई कमी देखने को नहीं मिली है. रूस बाजार में औरों से कम दाम पर ही तेल की डील भी कर रहा है, जिस वजह से कई देश उससे तेल खरीद रहे हैं. हालांकि, ऐसा भी कहा जा रहा है कि अभी तक रूस यूरोपियन यूनियन के कड़े प्रतिबंधों से बंधा हुआ नहीं है, जो रूस के खिलाफ साल के आखिरी महीने तक लगाए जा सकते हैं.

यासेर ने कहा कि ये दिलचस्प है कि रूस ने इससे पहले तेल का उत्पादन घटाने के लिए नहीं कहा था. लेकिन अभी एक सप्ताह पहले ही रूस ने ओपेके देशों के सामने हर रोज 10 लाख बैरल तेल का उत्पादन कम करने के लिए कहा था. दरअसल, यूरोपियन यूनियन के प्रतिबंधों की वजह से आगे चलकर रूस को अपना तेल उत्पादन घटाना पड़ सकता है और इसीलिए रूस इस होने वाले नुकसान की भरपाई तेल के बढ़े हुए दाम से करने की फिराक में है.

बता दें रूस भी ओपेक प्लस संगठन का सदस्य है. ओपेक प्लस में कुल 24 सदस्य हैं, जिनमें सऊदी अरब समेत 13 ओपेक देश हैं, जबकि 11 अन्य गैर-ओपेक देश भी शामिल हैं. ओपेक प्लस देशों की एक मीटिंग में कच्चे तेल के उत्पादन को कम करने का फैसला लिया गया. हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं है कि ओपेक प्लस के सप्लाई कम करने के फैसले से बाजार में कच्चे तेल का दाम कितना ऊपर जाएगा. पूरे विश्व में हर रोज 100 मिलियन बैरल तेल की खपत होती है और ऐसे में इतना तय है कि प्रतिदिन दो मिलियन (20 लाख) बैरल की सप्लाई रुक जाने से मार्केट पर दिखने लायक असर तो जरूर पड़ेगा.

उधर, सऊदी अरब के इस कदम को तेल की कीमतें बढ़ाने की कोशिश के तौर पर ही देखा जा रहा है. तेल की कीमतें मार्च से जून महीने के बीच 120 डॉलर प्रति बैरल पहुंची थी, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती की चिंता ने कीमतों में आई उछाल को कम करना शुरू कर दिया था. सितंबर महीने में तो तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई थीं.

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