बेटी बनी देव दूत, लावारिस लाशों का करवा रही है अंतिम संस्कार
कोरोना की वजह से खून के रिश्ते भी अपनों का साथ नहीं दे पा रहे हैं। जिंदगी की जब जान पर बन आई है तो कोरोना में अपनों को भी साथ छोड़ना पड़ा है। आज कई तरह की विषम परिस्थितियों का सामना करने को लोग मजबूर है। पूरा का पूरा परिवार कोरोना उपचाराधीन होने की स्थिति में दुर्भाग्य से यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो ऐसे में उनको चार कंधे देने वाला कोई नहीं मिलता है। ऐसे ही परिवारों की मदद के लिए आगे आईं है लखनऊ की बेटी वर्षा वर्मा, जो कि हर दिन शवों को श्मसान घाट पहुंचाने का काम कर रही हैं।
‘एक कोशिश ऐसी भी’
वर्षा वर्मा ने कोरोना जैसे कठिन समय में जरूरतमंदों का हाथ थाम रखा है। गोमतीनगर विस्तार की रहने वाली वर्षा वर्मा एनजीओ ‘एक कोशिश ऐसी भी’ के जरिए लोगों के लिए मसीहा बनी हैं। कोरोना से जंग लड़ रहे परिवारों को बेड, ऑक्सीजन, दवाएं मुहैया कराने के साथ ही वर्षा अंतिम संस्कार भी करा रहीं हैं।
किराए की गाड़ी से पहुंचा रही मदद
वर्षा ने बताया कि जिन परिवारों में सभी सदस्य पॉजिटिव हैं या धन अभाव के कारण जो लोग किसी अपने को खोने के बाद उनका अंतिम संस्कार नहीं करा पा रहे हैं। उन परिवारों की मदद हम लोग कर रहे हैं। मेरी टीम ने एक गाड़ी को किराए पर लिया है जो पूरा दिन लोगों के अंतिम संस्कार की क्रिया को कराने में लोगों की मदद कर रही है।
समाजिक संस्थाओं को आगे आने की जरुरत
वर्षा ने बताया कि प्रदेश के मुख्यमंत्री जब कोरोना संक्रमित होने के बावजूद नवरात्रि के नौ पावन व्रत कर दिन रात प्रदेश को कोरोना के कहर से बचाने में निरंतर काम कर रहें हैं तो ऐसे में हम सभी सामाजिक संगठनों की भी जिम्मेदारी है कि आगे आकर लोगों की मदद करें।
लावारिस लाशों का बनतीं हैं कंधा
तीन सालों में 500 लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करा चुकीं वर्षा वर्मा ने कोरोना काल में 75 शवों का अंतिम संस्कार कराया है। उन्होंने बताया कि हम लावारिस लाशों का कंधा बनते हैं। गरीब परिवारों को राशन की सुविधा संग बेसहारा बुजर्गों के इलाज का काम निरंतर मेरी संस्था द्वारा किया जा रहा है।
आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश
वर्षा ने अपनी संस्था और लोगों की मदद से 20-25 महिलाओं को रोजगार की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया है। उन्होंने बताया कि गरीब और शोषित महिलाओं को रोजगार के साधन मुहैया करा उनको आत्मनिर्भर बनाने में मदद की है। इसके साथ ही लगभग 2500 बेटियों को आत्मरक्षा के गुरों की ट्रेनिंग भी संस्था के जरिए दी है।
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महिलाओं को किया जागरूक
बता दें कि साल 2013 से अपनी एनजीओ ‘एक कोशिश ऐसी भी’ के जरिए अब तक वो 7,500 बेटियों की शिक्षा में मदद कर चुकी हैं। मिशन शक्ति के तहत उन्होंने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, महिला सुरक्षा, महिला सेहत मुद्दों पर राजधानी में कार्यशाला का आयोजन कर लगभग 1,000 महिलाओं को जागरूक किया है।
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